पांच प्रतिशत की विकास दर आम तौर पर कम नहीं होती लेकिन भारत के लिए यह परीक्षा की घड़ी साबित हुई और चुनावों में मनमोहन सिंह की सरकार की हार की वजह. कभी लगभग 10 फीसदी तक पहुंचे भारत के विकास दर में लगातार कमी अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संकट के कारण तो हुई लेकिन मनमोहन सिंह की सरकार उसे रोकने के लिए जरूरी कदम उठाने में नाकाम रही. सरकारों से समय पर अपेक्षित कदम की उम्मीद की जाती है ताकि सुधारों के जरिए अर्थव्यवस्था पर पड़ रहे असर को कम किया जा सके. लेकिन कांग्रेस सरकार दिक्कतों को पहचानने और उचित कदम उठाने में देर करती रही.
अब नरेंद्र मोदी की सरकार पर विकास दर को और तेज करने की जिम्मेदारी है. मध्यवर्ग की बढ़ती आकांक्षाओं और हर साल बेरोजगारों की लंबी कतार में शामिल हो रहे नौजवानों को उम्मीद की किरण देने के लिए मैनुफैक्चरिंग पर जोर दिए जाने की जरूरत है. रेल, रोड और नौवहन जैसे ढांचागत संरचनाओं में भी भारी निवेश की मांग काफी समय से होती रही है. देश के विशाल बाजार में माल हर जगह नहीं पहुंचा सकने की कमजोरी विकास को प्रभावित कर रही है. अब तेज फैसला लेने की जरूरत होगी.
लेकिन मनमोहन सिंह के कार्यकाल के आखिरी सालों में विदेशी निवेशकों का भरोसा गिरा है. वोडाफोन पर करोड़ों के टैक्स जुर्माने के लिए कानून बदलने और दवा के पेटेंट पर बायर के साथ लंबे मुकदमे जैसी घटनाओं से विदेशी निवेशकों में असुरक्षा की भावना आई है. निवेशकों के लायक माहौल बनाने के लिए अब आर्थिक सुधारों के नए चरण की जरूरत होगी. पिछले सालों में विदेशी निवेशक न्याय प्रणाली में सुधार की भी मांग करने लगे हैं क्योंकि भारत में मुकदमा काफी लंबा खिंचता है.
सड़कों पर गायों के साथ बीएमडब्ल्यू की शानदार कारें घूमती हैं. कहीं गरीबी से जूझ रहे लोग, तो कहीं अपने घरों पर हेलीपैड बनाते रईस हैं. भारत अव्यवस्थित है विरोधाभासों से भरे भारत का भविष्य कैसा रहेगा.
तस्वीर: picture-alliance/dpaशून्य का आविष्कार करने वाले आर्यभट्ट ने चौथी सदी में ही बता दिया था कि दिन और रात की लंबाई पृथ्वी के घूमने से तय होती है. अब 2014 में तकनीकी तौर पर सक्षम भारत चांद पर अपना पहला अंतरिक्ष यान पहुंचा देगा.
तस्वीर: picture-alliance/dpa...फिरा न मन का फेर. आधुनिक तकनीक और सुपरपावर बनने का ख्वाब देखता भारत आज भी अंधविश्वास, जातिवाद और सांप्रदायिकता के विवादों में फंसा हुआ है.
तस्वीर: Roberto Schmidt/AFP/Getty Images1990 की दशक में भारत में विकास की रफ्तार आसमान छूने लगी. मल्टीनेशनल कंपनियों ने भारत में पढ़े लिखे युवा का फायदा उठाया और सस्ते दामों में कॉल सेंटर खुलने लगे. विकास दर 8-9 प्रतिशत तक पहुंच गई.
तस्वीर: STR/AFP/Getty Imagesसरकार के खिलाफ लोग सड़कों पर आखिर उतर ही आए. 2012 दिसंबर में 23 साल की एक महिला के बलात्कार ने जनता को हिला दिया. महिलाओं का अपमान और उनकी सुरक्षा में कमी, इसके खिलाफ देश भर में प्रदर्शन हुए. नई दिल्ली में पिछले साल बलात्कार के 585 मामले दर्ज किए गए.
तस्वीर: Reutersभारत में विकास ने नौकरियां पैदा की हैं, पढ़े लिखे पेशेवरों की किस्मत खुली है और जीवन स्तर बेहतर हो गया है. लेकिन अब भी 25 प्रतिशत लोग पढ़ लिख नहीं सकते. करीब 35 प्रतिशत महिलाएं अनपढ़ हैं और गरीबी अनौपचारिक आंकड़ों के मुताबिक 30 प्रतिशत है.
तस्वीर: Punit Paranjpe/AFP/Getty Imagesऐश्वर्य और समृद्धता की राह पर चलते भारत में आज भी बच्चों को पूरा खाना नहीं मिलता. संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक तीन साल से कम उम्र के बच्चों में से 46 प्रतिशत अपनी उम्र के हिसाब से छोटे दिखते हैं.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photoभारत में अच्छी सड़कें ज्यादातर राजधानी दिल्ली या राज्यों की राजधानी में मिलेंगीं. सरकार का कहना है कि विदेशी निवेश को बढ़ाने से मूलभूत संरचना की कमी को खत्म किया जा सकेगा.
तस्वीर: picture alliance/Reinhard Kungelदेश के भीतर महिलाओं को सुरक्षा न दे पाने वाली सरकार देश की बाहरी सुरक्षा के लिए बजट बढ़ा रही है. कुछ ही सालों में भारत ग्रेट ब्रिटेन से ज्यादा पैसे हथियारों में लगाएगा. लेकिन भारत के रक्षक खुद झुंझला रहे हैं- एक पायलट का कहना है कि मिग 21 उड़ाना संविधान में जीवन के अधिकार के खिलाफ है.
तस्वीर: dapdसंरचना में कमी, भ्रष्टाचार और अव्यवस्था ने आम जनता की जिंदगी को आजाब बना दिया है. बढ़ते विकास ने भारत की ऊर्जा जरूरतों को तो बढ़ाया है, लेकिन गैर जिम्मेदाराना व्यवहार ने भी जरूरी सेवाओं में अडंगा डाला है.
तस्वीर: DW/Prabhakar Maniसड़कें हों, सरकारी दफ्तर हों या राशन- भारत में भ्रष्टाचार आम जिंदगी का हिस्सा बन गया है. भ्रष्टाचार के खिलाफ अन्ना हजारे का आंदोलन और लोकपाल की मांग लेकिन कुछ ही हद तक सफल हो पाया है.
तस्वीर: APअर्थशास्त्री 1990 से पहले भारत के विकास दर को अकसर „हिंदू विकास दर“ कहते थे, यानी जब विकास 3.5 प्रतिशत से ज्यादा नहीं होता था और अर्थव्यवस्था भी किस्मत की मारी लगती थी. अब हालत कुछ अलग नहीं, विकास दर 6 प्रतिशत से कम है और चंद्रयान की तरह महंगाई भी चांद पहुंचती दिख रही है.
तस्वीर: Reutersउत्तराखंड में बाढ़ के बारे में भारतीय स्पेस एजेंसी इसरो का कहना है कि यह पहाड़ी इलाकों में अंधाधुंध निर्माण की वजह से हुआ है. हिमालय पर तीर्थ करने पहुंचे हजारों यात्रियों में से इस आपदा में करीब पांच हजार लोग मारे गए.
तस्वीर: Manan Vatsyayana/AFP/Getty Imagesभारत का भविष्य कैसा होगा, कहना मुश्किल है. लेकिन सुंदर सपने बुनने में कम से कम बॉलीवुड पीछे नहीं. आल्प्स की पहाड़ियों में नाचते फिल्मी सितारे रोजमर्रां की जानलेवा सच्चाई को भूलने में मदद करते हैं.
तस्वीर: Rapid Eye Movies भारत अभी भी विदेशी निवेशकों के लिए आकर्षक बना हुआ है. मोदी सरकार के साथ जल्द से जल्द संबंध बनाने की पश्चिमी देशों और यहां तक कि चीन के भी प्रयास दिखाते हैं कि भारतीय बाजार से कोई वंचित नहीं रहना चाहता. कारोबार का मकसद मुनाफा होता है. लाभ न दिखे तो कोई भी किसी बाजार में दिलचस्पी नहीं दिखाएगा. इसलिए भारत को बातचीत के जरिए सभी पक्षों के लिए मान्य समाधान ढूंढने के रास्ते खोजने होंगे.
मोदी सरकार के सामने पहला मौका इस साल के बजट का होगा जब वह अपने इरादे साफ कर पाएगी. जरूरत ऐसे बजट की है तो आम लोगों को राहत पहुंचाए, उनकी क्रयशक्ति बढ़ाए, मुद्रास्फीति पर काबू पाए और नए रोजगारों के सृजन के लिए उद्यमियों को प्रोत्साहन मिले. मोदी सरकार के पहले बजट को इसी कसौटी पर परखा जाएगा.
ब्लॉग: महेश झा
संपादन: अनवर जे अशरफ