पोलैंड की सुरक्षा एजेंसी एबीडब्ल्यू ने दावा किया है कि उसने रूस के दो हाइब्रिड वॉर नेटवर्क्स को खत्म किया है. पोलैंड का आरोप है कि "येकातेरिना सी" नाम की रूसी महिला इन नेटवर्कों से जुड़ी थीं. पोलैंड का आरोप है कि रूस फेक न्यूज और इतिहास को अलग ढंग से पेश कर पोलिश लोगों को यूक्रेन के प्रति भड़का रहा है. पोलैंड के लोग आम तौर पर रूस को पसंद नहीं करते. एबीडब्ल्यू के मुताबिक रूस हाइब्रिड वॉर का सहारा लेकर पोलैंड की जनता के नजरिए को बदलने की कोशिश कर रहा है. वह क्रीमिया के अलगाव को जायज ठहराने में लगा है.
हाइब्रिड वॉर असल में एक छद्म युद्ध है. यह वह सैनिक रणनीति है जिसमें राजनीतिक युद्ध में परंपरागत युद्ध को अनियमित युद्ध, साइबर युद्ध और मनोवैज्ञानिक युद्ध के साथ ब्लेंड किया जाता है. यह लड़ाई सिर्फ हथियारों से नहीं लड़ी जाती, यह जनता की सोच को बदलने में लगी रहती है. हाइब्रिड वॉर के तहत अफवाहें, गलत जानकारियां और फेक न्यूज फैलाई जाती है. लगातार ऐसा करते रहने से आम जनता की सोच बदलने लगती है. इंटरनेट और सोशल मीडिया के दौर में ऐसा करना पहले के मुकाबले कहीं ज्यादा आसान है.
हथियारों और सेना के बल पर होने वाली लड़ाई में जान माल का बहुत नुकसान होता है. ऐसे युद्ध बेहद खर्चीले भी होते हैं. लेकिन हाइब्रिड वॉर इनसे अलग है. यह लगातार आम लोगों की सोच पर चोट करता रहता है. रक्षा विशेषज्ञों के मुताबिक 2006 में लेबनान युद्ध के दौरान हिज्बुल्लाह ने एक खास रणनीति का सहारा लिया. हिज्बुल्लाह ने गलत जानकारियों और तथ्यों को अपने हिसाब से पेश कर लोगों की विचारधारा पर असर डाला. तब से ही "हाइब्रिड वॉरफेयर" शब्द सामने आया. अब यह आधुनिक युद्धनीति का हिस्सा बनता जा रहा है. हाइब्रिड वॉर में जनमानस की सोच, साइबर स्पेस और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस मुख्य हथियार हैं.
सेना सुरक्षा के लिए होती है. बहुत से देश अपनी सैनिक ताकत का प्रदर्शन करने में गर्व महसूस करते हैं लेकिन कुछ देशों के पास कोई सेना नहीं है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/Z. Kurtsikidzeमध्य अमेरिकी देश कोस्टा रिका में सेना नहीं है. 1948 में राष्ट्रपति चुनावों में धांधली के खिलाफ हुए जनविद्रोह के साथ विद्रोहियों ने सत्ता पर कब्जा कर लिया और नया संविधान बनाया. नए संविधान में सेना को समाप्त कर दिया गया. 1953 से देश में 14 राष्ट्रपति चुनाव हो चुके हैं और सभी शांतिपूर्ण रहे हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpaकेंद्रीय यूरोप के इस छोटे से देश ने 1868 में अपनी सेना को भंग कर दिया. कारण आर्थिक थे. सेना बहुत महंगी हो गई थी. युद्ध के समय सेना बनाने की संभावना रही, लेकिन युद्ध कभी आया नहीं. लिष्टेनश्टाइन काले धन को लेकर चर्चा में रहता है. इस देश का प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद कतर के बाद दूसरे नंबर पर है.
तस्वीर: Fotolia/S.A.N.समोआ 1962 में न्यूजीलैंड की गुलामी से आजाद हुआ था. स्वतंत्रता के बाद से ही उसके पास कोई सेना नहीं है. 1962 की एक मैत्री संधि के अनुसार न्यूजीलैंड ने जरूरत पड़ने पर उसकी सुरक्षा का आश्वासन दिया है. पश्चिमी समोआ द्वीप समूह से बना देश पोलेनेशिया का हिस्सा है. भारत प्रशांत के द्वीप राज्यों के साथ निकट सहयोग करता है.
तस्वीर: picture-alliance/DUMONT Bildarchivयूरोप में स्थित यह देश 1278 में बना. अंडोरा के पास अपनी सेना नहीं है लेकिन स्पेन और फ्रांस ने उसे जरूरत पड़ने पर सुरक्षा देने की गारंटी ली है. 468 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला अंडोरा अपने स्की रिजॉर्ट और ड्यूटी-फ्री दुकानों के लिए जाना जाता है. इसे टैक्स बचाने वालों का स्वर्ग भी माना जाता है.
तस्वीर: picture-alliance/Thomas Muncke2014 में बने भारत प्रशांत द्वीप सहयोग संगठन में समोआ और तुवालू भी हैं. 2015 में जयपुर में संगठन के 14 सदस्य देशों का सम्मेलन हुआ. तुवालू का क्षेत्रफल सिर्फ 26 वर्ग किलोमीटर है और वहां की आबादी 10,000 है. यह राष्ट्रकुल का सदस्य है और यहां संसदीय राजतंत्र है.
तस्वीर: APइटली की राजधानी रोम में स्थित यह दुनिया का सबसे छोटा देश है. इस देश का क्षेत्रफल सिर्फ 0.44 वर्ग किलोमीटर है और आबादी है 840. इस तरह से सबसे कम आबादी वाला देश भी. यह कैथोलिक गिरजे का मुख्यालय है जहां गिरजे के प्रमुख पोप और चर्च के दूसरे अधिकारी रहते हैं.
तस्वीर: picture-alliance/Arco/Schoeningएक बड़े द्वीप और छह छोटे छोटे द्वीपों से बने ग्रेनेडा का क्षेत्रफल 344 वर्ग किलोमीटर है और उसकी आबादी 105,000 है. ग्रेनेडा कैरिबिक और अटलांटिक के बीच स्थित है और इसे मसालों के लिए भी जाना जाता है. 1983 में सैनिक विद्रोह और अमेरिकी हस्तक्षेप के बाद से यहां नियमित सेना नहीं.
तस्वीर: shaggyshoo/ndप्रशांत महासागर में स्थित द्वीप राष्ट्र 21.10 वर्ग किलोमीटर बडा़ है. इसकी आबादी करीब 10,000 है. नाउरू माइक्रोनेशिया के द्वीपों का हिस्सा है. ऑस्ट्रेलिया के साथ हुए एक समझौते के तहत नाउरू की सुरक्षा की जिम्मेदारी ऑस्ट्रेलिया ने ली है.
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