एनडीए सरकार के नए कृषि कानूनों को लेकर सरकार और इन कानूनों के विरोधियों के बीच संघर्ष गहराता जा रहा है. पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने घोषणा की है कि वो कानूनों के विरोध में भगत सिंह के गांव में धरने पर बैठेंगे.
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पंजाब कृषि कानूनों के खिलाफ हो रहे प्रदर्शनों का केंद्र बना हुआ है. राज्य की राजनीति में सक्रिय तीनों ही पार्टियां, सत्तारूढ़ कांग्रेस और विपक्ष में बैठी अकाली दल और आम आदमी पार्टी, नए कानूनों के खिलाफ हैं और तीनों के बीच विरोध के प्रदर्शन को लेकर होड़ लगी हुई है. अकाली दल शुरू में कानूनों के समर्थन में था लेकिन पंजाब में राजनीति के गरमा जाने पर विरोध में इतना कड़ा रुख अपना लिया कि पहले केंद्र सरकार से इस्तीफा दिया और फिर एनडीए गठबंधन से भी. अमरिंदर सिंह के धरने को इसी होड़ में दूसरी पार्टियों को आगे निकल जाने से रोकने की दिशा में एक प्रयास माना जा रहा है.
28 सितंबर को स्वतंत्रता सेनानी भगत सिंह का जन्म दिन मनाया जाता है और पंजाब में उनके प्रतिष्ठित दर्जे को देखते हुए मुख्यमंत्री भगत सिंह के पैतृक गांव खटकर कलां में धरने पर बैठेंगे. धरना शुरू करने से पहले उन्होंने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने तीनों कानूनों पर हस्ताक्षर कर उन्हें अपनी मंजूरी दे दी है.
मीडिया में आई खबरों के अनुसार सिंह ने कहा कि राष्ट्रपति की मंजूरी से किसानों को एक बड़ा धक्का लगा है जो केंद्र द्वारा उनके हितों पर किए गए हमले के खिलाफ सड़क पर उतरे हुए हैं. उन्होंने यह भी कहा कि मौजूदा स्वरूप में इन कानूनों के लागू होने से पंजाब की अर्थव्यवस्था की जीवन-रेखा यानी कृषि बर्बाद हो जाएगी. सिंह ने यह भी कहा है कि उनकी सरकार कानूनी विशेषज्ञों से भी सलाह ले रही है और जानने की कोशिश कर रही है कि क्या राज्य सरकारें राज्य के कानूनों में बदलाव कर के किसानों को केंद्र के इन कानूनों के दुष्प्रभाव से बचा सकती हैं. संविधान में कृषि राज्यों की सूची में है यानी राज्य सरकारों को उस से संबंधित कानून और नीति बनाने का पूरी अधिकार है.
इसी बीच देश के अलग अलग कोनों में कृषि कानूनों के खिलाफ प्रदर्शन अभी भी चल रहे हैं. दिल्ली में कुछ किसानों ने सोमवार सुबह विरोध में एक ट्रैक्ट्रर को आग लगा दी.
कर्नाटक में किसान संगठनों ने सोमवार को राज्य व्यापी बंद बुलाया है. कांग्रेस शासित छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश सिंह बघेल ने कहा है कि वो इन कानून के खिलाफ छत्तीसगढ़ विधान सभा में प्रस्ताव ले कर आएंगे.
रविवार 27 सितंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने मासिक रेडियो कार्यक्रम "मन की बात" में तीनों कानूनों का समर्थन किया और कहा कि अब किसानों के पास अपना उत्पाद देश में कहीं भी और किसी को भी बेचने की शक्ति है. उन्होंने कहा कि 2014 में जब फलों और सब्जियों को एपीएमसी कानून की परिधि से बाहर निकाला था उसके बाद किसानों को अपने फलों और सब्जियों को मंडियों के बाहर भी जहां चाहें वहां बेचने की सुविधा मिली थी.
राज्य सभा में तीन घंटों में सात विधेयकों का पास हो जाना अपने आप में एक नई घटना है. यह तब संभव हुआ जब विपक्ष ने उसकी बात ना सुने जाने के विरोध में सदन का बहिष्कार कर दिया. जानिए क्या है इन विधेयकों में.
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बहिष्कार
मानसून सत्र 2020 के दौरान राज्य सभा से विपक्ष के आठ सांसदों के निलंबन के बाद, अधिकतर विपक्षी दलों ने सदन का बहिष्कार कर दिया. लेकिन इसके बावजूद सदन की कार्रवाई चलती रही और साढ़े तीन घंटों में ही एक के बाद एक सात विधेयक पारित हो गए.
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आईआईटीयों पर विधेयक
इनमें सबसे पहले पास हुआ भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी संस्थान विधियां (संशोधन) विधेयक, 2020. इसके तहत पांच नए आईआईटीयों को राष्ट्रीय महत्व के संस्थान घोषित किया जाना है. इसके अलावा बाकी छह विधेयक भी लोक सभा से पहले ही पारित हो चुके थे.
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आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक
यह उन कृषि संबंधी विधेयकों में से एक है जिनका किसान और विपक्षी दल विरोध कर रहे हैं. इसका उद्देश्य आवश्यक वस्तुओं की सूची से अनाज, दलहन, तिलहन, प्याज और आलू को निकालना और उन पर भंडारण की सीमा तय करने की सरकार की शक्ति को खत्म करना है.
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बैंककारी विनियमन (संशोधन) विधेयक
इस बिल का उद्देश्य सहकारी बैंकों को आरबीआई की देखरेख में लाना है. 2019 में पीएमसी सहकारी बैंक में करोड़ों रुपये का घोटाला सामने आया था, जिससे आम खाताधारकों की जमापूंजी के डूब जाने का खतरा पैदा हो गया था.
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कंपनी (संशोधन) विधेयक
कंपनी अधिनियम, 2013 का और संशोधन करने वाले इस विधेयक का उद्देश्य है पुराने कानून के तहत कुछ नियमों के उल्लंघन के लिए सजा को कम करना. विपक्ष की आपत्ति थी कि सजा कम करने से कंपनी मालिकों को लगेगा की वे वित्तीय अनियमितताओं के दोषी पाए जाने पर भी बच जाएंगे.
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राष्ट्रीय न्यायालयिक विज्ञान विश्वविद्यालय विधेयक
इस विधेयक का उद्देश्य गुजरात स्थित गुजरात न्यायालयिक विज्ञान विश्वविद्यालय को राष्ट्रीय न्यायालयिक विज्ञान विश्वविद्यालय बनाना और उसे राष्ट्रीय महत्व के संस्थान का दर्जा देना है.
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राष्ट्रीय रक्षा विश्वविद्यालय विधेयक
इस विधेयक का उद्देश्य है गुजरात में ही स्थित रक्षा शक्ति विश्वविद्यालय को राष्ट्रीय रक्षा विश्वविद्यालय बनाना और उसे भी राष्ट्रीय महत्व के संस्थान का दर्जा देना.
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कराधान संबंधी विधेयक
इस विधेयक का उद्देश्य कराधान यानी टैक्सेशन संबंधी नियमों में कुछ संशोधन करना था, जिससे कंपनियों को कोरोना वायरस महामारी की वजह से हुए नुक्सान को देखते हुए कर संबंधी नियमों के पालन और भुगतान आदि के लिए अतिरिक्त समय दिया जा सके. यह एक धन विधेयक यानी 'मनी बिल' था, इसलिए इसे लोक सभा वापस लौटा दिया गया.
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पहले भी हुआ
शोरगुल के बीच बिलों को पास कराने का काम पहले भी हुआ है. 2008 में लोक सभा में शोरगुल के बीच 17 मिनटों में आठ विधेयक पास करा लिए गए थे.