नौ दिनों से चल रहे किसानों के प्रदर्शन को खत्म करने के लिए केंद्र सरकार ने उनकी कुछ मांगों को स्वीकार करने का संकेत दिया है. किसानों का कहना है कि उन्हें महज संशोधन नहीं चाहिए और सरकार को कानूनों को निरस्त करना चाहिए.
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नौ दिनों से दिल्ली की सीमाओं पर डटे हुए किसान प्रदर्शनकारियों के प्रतिनिधियों से केंद्र सरकार की गुरूवार को हुई बैठक भी बेनतीजा रही, लेकिन सरकार ने पहली बार किसानों की कुछ मांगों को स्वीकार करने का संकेत दिया. मीडिया में आई खबरों के अनुसार सरकार ने कहा कि वो न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की गारंटी देने पर भी विचार कर सकती है.
40 किसान संगठनों के प्रतिनिधियों के साथ हुई गुरूवार की बैठक सात घंटों तक चली, जिसके बाद कृषि मंत्री नरेंद्र तोमर ने पत्रकारों को बताया कि नए कानून में निजी कृषि मंडियों का प्रावधान है लेकिन इसके बावजूद मौजूदा कृषि मंडियों को कमजोर होने से कैसे बचाया जाए सरकार इस पर चर्चा करने को तैयार है.
उन्होंने कहा कि सरकार दोनों तरह की मंडियों में 'सम्यता' लाने की कोशिश करेगी, ताकि एक के हित दूसरे को प्रभावित ना करें. तोमर ने यह भी कहा कि मंडियों में आने वाले खरीदारों के पंजीकरण को अनिवार्य करना और विवादों के निपटारे के लिए किसानों को एसडीएम की जगह अदालत में जाने के प्रावधान को लाने की मांगों पर भी विचार किया जा सकता है.
उन्होंने एमएसपी जारी रहने की गारंटी देने की मांग को लेकर कहा कि सरकार किसानों को इसका आश्वासन दे सकती है. बैठक में किसानों ने दिल्ली के आस पास के राज्यों के किसानों पर पराली जलाने के लिए जुर्माने के दंड पर भी चिंता व्यक्त की.
सरकार ने उन्हें कहा कि इस पर भी चर्चा की जा सकती है. हालांकि, बैठक के बाद किसान संगठनों ने पत्रकारों को बताया कि वो महज संशोधन स्वीकार नहीं करेंगे और कानूनों को पूरी तरह से निरस्त करने की अपनी मांग पर डटे हुए हैं. सरकार ने इस मांग पर कोई आश्वासन नहीं दिया है.
मीडिया में आई खबरों में बताया जा रहा है कि बैठक घंटों चलने के बावजूद किसान प्रतिनिधियों ने सरकार द्वारा किए गए भोजन के इंतजाम को ठुकरा दिया और उनके साथी प्रदर्शनकारियों द्वारा बनाया और भेजा गया खाना ही खाया. इसके बावजूद, दोनों पक्षों ने बातचीत को जारी रखने का आश्वासन दिया. शनिवार पांच दिसंबर को एक बार फिर दोनों पक्ष बातचीत करने के लिए आमने सामने बैठेंगे.
जर्मनी के हजारों किसान बॉन शहर में अपने ट्रैक्टर के साथ विरोध प्रदर्शन करने पहुंचे हैं. ये किसान सरकार की नीतियों के खिलाफ विरोध जताने के लिए प्रदर्शन कर रहे हैं.
तस्वीर: DW/N. Ranjan
सबसे बड़ा प्रदर्शन बॉन में
यह प्रदर्शन जर्मनी के दूसरे शहरों में भी हो रहा है लेकिन सबसे बड़ी संख्या में किसान बॉन शहर में आए हैं. अनुमान है कि सुबह 10 बजे तक कम से कम 10 हजार किसान और 800 से ज्यादा ट्रैक्टर विरोध करने शहर में दाखिल हुए हैं.
तस्वीर: DW/N. Ranjan
नाइट्रेट सीमित करने का विरोध
जर्मन सरकार ने प्रकृति के संरक्षण के लिए खेतों में नाइट्रेट का प्रयोग सीमित करने का फैसला किया है. किसान इसकी वजह से नाराज हैं और विरोध प्रदर्शन के जरिए अपनी नाराजगी जता रहे हैं.
तस्वीर: DW/N. Ranjan
किसानों की जनसभा
किसानों ने बॉन शहर में मौजूद कृषि मंत्रालय के सामने ट्रैक्टर चला कर विरोध जताया और फिर शहर के मुख्य केंद्र में एक जनसभा में पहुंचे.
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सड़कों पर ट्रैफिक जाम
प्रदर्शन के कारण शहर में ट्रैफिक जाम हो गया है, हर तरफ सड़कों से लेकर मैदानों तक में बड़े बड़े ट्रैक्टर ही खड़े दिखाई दे रहे है.
तस्वीर: DW/N. Ranjan
पुलिस की भारी तैनाती
बॉन शहर में भारी संख्या में पुलिस बल को भी तैनात किया गया है, ताकि शहर की व्यवस्था में कोई बड़ी बाधा ना आए और अप्रिय घटना को रोका जा सके.
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कृषि नीति को बदलना जरूरी
जर्मनी की कृषि मंत्री यूलिया क्लोएकनर ने किसानों से सहानुभूति जताई लेकिन उनका कहना है कि कृषि नीति को बदलना अब जरूरी हो गया है और इसे रोका नहीं जा सकता.
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टिकाऊ खेती को उपाय
सरकार की नीति के केंद्र में यह तय करना है कि खेतों में कितना उर्वरक और खाद डाला जाए जिससे कि भूजल और नदियों के पानी पर इसका असर ना हो.
तस्वीर: DW/N. Ranjan
पर्यावरण की रक्षा भी जरूरी
पर्यावरण मंत्री स्वेन्या शुल्त्स ने कीटों की रक्षा करने की जरूरत की ओर ध्यान दिलाया है. उनका यह भी कहना है कि खेतों में कीटों के अलावा चिड़ियों की संख्या भी घट रही है.
तस्वीर: DW/K. Kryzhanouskaya
"जरूरत से ज्यादा नियम से परेशानी"
किसानों के संगठन राइनलैंड एग्रीकल्चरल एसोसिएशन के प्रमुख बर्नहार्ड कोनत्सेन का कहना है, "आधिकारिक नियमों की जो बाढ़ आ गई है उसका अंत होना चाहिए."
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मर्कोसुर का विरोध
किसान यूरोपीय संघ और दक्षिण अफ्रीकी कारोबार संगठन के बीच हुए मर्कोसुर मुक्त व्यापार समझौते को बदलने की मांग कर रहे हैं. इसमें खाद और उर्वरकों के इस्तेमाल से जुड़े नियम बनाये गए हैं.
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खेती नहीं तो खाना नहीं
किसानों का मानना है कि नए नियमों की वजह से उन किसानों की मुश्किलें बढ़ रही है जिनके लिए खेती पारिवारिक व्यवसाय है. उनका कहना है कि अगर खेती को बचाया नहीं गया तो खाने का संकट होगा.
तस्वीर: DW/N. Ranjan
क्या जरूरी है और क्या हासिल हो सकता है
किसानों का कहना है कि टिकाऊ खेती तक पहुंचने के लिए बदलाव की एक संरचना होनी चाहिए और आपसी सहमति से तय होना चाहिए कि क्या जरूरी है और क्या हासिल किया जा सकता है.