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नए ज़माने के 'मिरर रिफ़्लेक्स' कैमरे

राम यादव७ अक्टूबर २००८

हर दो वर्ष पर जर्मनी के कोलोन नगर में लगने वाले फ़ोटोकीना मेले को कैमरा और फ़ोटो उद्योग का संसार का सबसे बड़ा मेला माना जाता है, यद्यपि उसका महत्व और आकर्षण अब कुछ उतार पर प्रतीत होता है.

फ़ोटोकीना 2008तस्वीर: Photokina 2008

इस बार 23 से 28 सितंबर तक चले कोलोन के जगप्रसिद्ध फ़ोटो उद्योग मेले फ़ोटोकीना में संसार की 49 देशो की कुल डेढ़ हज़ार कंपनियों ने हिस्सा लिया. भारतीय कंपनियों की संख्या केवल चार थी, जबकि चीन की तीन दर्जन से अधिक कंपनियाँ आयी थीं.

फ़ोटो और वीडियो कैमरों के और भी छोटे होते जाने, गुणवत्ता में और भी बेहतर एवं बहुमुखी तथा वज़न में और भी हल्के होते जाने की प्रवृत्ति इस मेले में भी बनी रही. कुछ ऐसी नवीनताएँ भी देखने में आयीं, जिन्हें कुछ लोग क्रांतिकारी बताते हैं.

ऐसी ही एक नवीनता है जापान की पैनासॉनिक और ओलिंपस कंपनी द्वारा मिलकर विकसित Micro Four Thirds कहलाने वाली एक नयी छायांकन तकनीक. इस तकनीक की सहायता से डिजिटल मिरर रिफलेक्स कैमरों को भी, जिन्हें संक्षेप में DSLR कैमरे कहा जाता है, मेगा ज़ूम क्षमता वाले कॉमपैक्ट कैमरे जैसा ठोस आकार देना संभव हो गया है.

बिना मिरर के मिरर रिफलेक्स

नये कैमरे गागर में सागर भरते है

इस तकनीक की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इस में लेंस के पीछे ऐसे किसी दर्पण का उपयोग नहीं होता, जिसकी सहायता से मिरर रिफलेक्स कैमरे के व्यूफ़ाइन्डर में हम सामने का दृश्य देखते हैं. इससे कैमरे की मोटाई और भी कम हो जाती है. पैनासॉनिक के प्रथम Micro Four Thirds मॉडल ल्यूमिक्स-जी 1 के फ़ोटोकीना में प्रस्तुतीकरण के लिए उत्तरदायी मार्को फ़ोबल ने बतायाः

"इस में अब कोई दर्पण नहीं है, बल्कि अलग-अलग लेंस लगा सकने का एक इंटर-चेंजेबल लेंस सिस्टम है. इस परिवर्तनीय लेंस प्रणाली का लाभ यह है कि हम ज़रूरत के अनुसार अलग-अलग ऑब्जेक्टिव कैमरे पर लगा सकते हैं—जैसे, बहुत निकट के लिए मैक्रो और दूर के लिए टेले ऑब्जेक्टिव. ऑब्जेक्टिव के ठीक पीछे अब तक जो दर्पण हुआ करता था, उसे हमने हटा दिया है. उसकी जगह सामने देखने के लिए एक प्रकाशग्राही सेंसर है. व्यूफ़ाइंडर भी अब ऑप्टिकल नहीं, इलेक्ट्रॉनिक है. सेंसर लेंस के द्वारा अपने सामने जो कुछ देखता है, इलेक्ट्रॉनिक व्यूफ़ांइडर उसे बिना किसी काट-छाँट के हू-बहू पूरा-का-पूरा दिखाता है."

सेंसर ही वह चीज़ है, जो लेंस से हो कर आ रहे प्रकाश को पिक्सल, यानी डिजिटल चित्र-बिंदुओं में बदलता है. कैमरे में कोई फ़िल्म नहीं लगती, बल्कि हर चित्र एक करोड़ बीस लाख बिंदुओं के रूप में एक मेमरी कार्ड पर अंकित होता जाता है. एक गीगाबाइट संग्रह क्षमता वाले कार्ड पर 200 से 300 तक चित्र संग्रहित किये जा सकते हैं. व्यूफ़ाइंडर अपने आप में डिस्प्ले भी है. फ़ोटो खींचने से पहले उसमें ऐसी कई सूचनाएँ देखी जा सकती हैं, जो एक अच्छे फ़ोटो के लिए जरूरी हो सकती हैं. ख़ींचने के बाद नये और तब तक खींचे गये सभी अन्य फ़ोटो भी इसी व्यूफ़ांइडर में देखे जा सकते हैं. मार्को फ़ोबल ने एक और सुविधा का उल्लेख कियाः

"प्रकाश-सेंसर के बहुत पास होने के कारण ऑब्जेक्टिव का आकार घटाना और उसे छोटा करना भी संभव हो गया है. जो लोग भारी-भरकम ऑब्जेक्टिवों के कारण कोई कैमरा-बैग नहीं ढोना चाहते, उनके लिए यह काफ़ी सुविधाजनक है."

पैनासॉनिक के पहले Micro Four Thirds कैमरे ल्यूमिक्स-जी 1 का मूल्य है 749 यूरो, भारतीय रूपयों में क़रीब 45 हज़ार रूपये.

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