सुनने में गुलामी बीते समय की बात लगती हैं, लेकिन सच्चाई यह है कि बंधुआ मजदूरी और सेक्स के लिए तस्करी के अलावा आईएस और बोको हराम जैसे संगठन आधुनिक दौर की भयानक गुलामी को बढ़ावा दे रहे हैं.
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साल 2014 के ग्लोबल स्लेव इंडेक्स के मुताबिक भारत को दुनिया का 'स्लेव कैपिटल' बताया गया था. इंडेक्स के मुताबिक दुनिया भर में आधुनिक गुलामी झेल रहे 3.58 करोड़ लोगों में से 2.35 करोड़ एशिया में हैं. और केवल भारत में ही 1.42 करोड़ लोग गुलामी के शिकार हैं. आधुनिक गुलामी का शिकार घरों में काम करने वाले भी हो सकते हैं या फिर फैक्ट्रियों में कम आय पर शोषण का शिकार लोग.
आधुनिक गुलामी का मतलब है किसी एक व्यक्ति का दूसरे को अपने निजी फायदे या उसके शोषण के इरादे से नियंत्रित कर उसकी आजादी को सीमित करना. भारत में ईंटों के भट्टे हों, कालीन के कारखाने, बुनाई सिलाई की फैक्ट्रियां, खेतों पर बंधुआ मजदूरी, घरेलू कामगार या फिर जबरन यौनकर्म के काम. ये सभी आधुनिक गुलामी के सबूत हैं. अक्सर महिलाओं और बच्चों को अच्छी नौकरियों का लालच देकर उनके गांव या शहर से बाहर ले जाकर उन्हें बेच दिया जाता है.
गुलामी को बढ़ावा दे रहे कट्टरपंथी
संयुक्त राष्ट्र थिंक टैंक एंटी के मुताबिक बोको हराम और आईएस के लड़ाके आधुनिक काल में गुलामी के विस्तार को बढ़ा रहे हैं. इनसे लड़ने के लिए अंतरराष्ट्रीय समुदाय को एकजुट होना होगा. नाइजीरिया में बोको हराम और इराक और सीरिया में आईएस के लड़ाके लड़कियों को सेक्स बंधक बना रहे हैं. बाजारों में महिलाओं और बच्चों को बेचा जाना आम होता जा रहा है. नि:संदेह कमजोरों को गुलाम बनाना उनकी नीति का अहम हिस्सा है.
बच्चे नहीं, मजदूर
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बच्चे नहीं, मजदूर
हर साल 12 जून को बाल श्रम विरोधी अंतरराष्ट्रीय दिवस के रूप में मनाया जाता है. लेकिन दुनिया भर में अब भी करीब 17 करोड़ बच्चे मजदूरी कर रहे हैं. 1999 में विश्व श्रम संगठन (आईएलओ) के सदस्य देशों ने एक संधि कर शपथ ली कि 18 साल के कम उम्र के बच्चों को मजदूर और यौनकर्मी नहीं बनने दिया जाएगा.
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मेड इन इंडिया तौलिये
दक्षिण भारतीय राज्य तमिलनाडु में बाल मजदूर. इस फैक्ट्री में तौलिये बनाए जाते हैं. मजदूरी करने वाला यह बच्चा करोड़ों बाल मजदूरों में एक है. आईएलओ के मुताबिक एशिया में ही 7.80 करोड़ बच्चे मजदूरी कर रहे हैं. पांच से 17 साल की उम्र की युवा आबादी में से करीब 10 फीसदी से नियमित काम कराया जाता है.
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स्कूल से कोई वास्ता नहीं
पढ़ाई लिखाई या खेल कूद के बजाए ये बच्चे ईंट तैयार कर रहे हैं. भारत में मां-बाप की गरीबी कई बच्चों को मजदूरी में धकेल देती है. भारत के एक ईंट भट्टे में काम करने वाली इस बच्ची को हर दिन 10 घंटे काम करना पड़ता है, बदले में मिलते हैं 60 से 70 रुपये.
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सस्ते मजदूर
भारत की जनगणना रिपोर्ट के मुताबिक देश में 1.26 करोड़ बाल मजदूर हैं. ये सड़कों पर समान बेचते हैं, सफाई करते हैं, या फिर होटलों, फैक्ट्रियों और खेतों में काम करते हैं. व्यस्क मजदूरों की तुलना में बाल मजदूर को एक तिहाई मजदूरी मिलती है.
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अमानवीय हालात
आईएलओ की 2013 की रिपोर्ट के मुताबिक 50 फीसदी बच्चे खतरनाक परिस्थितियों में काम करते हैं. कई रात भर काम करते हैं. कई बच्चों को श्रमिक अधिकार भी नहीं मिलते हैं. उनकी हालत गुलामों जैसी है.
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मेड इन बांग्लादेश
बांग्लादेश में बाल मजदूरी काफी प्रचलित है. यूनिसेफ के मुताबिक देश में करीब 50 लाख बच्चे टेक्सटाइल उद्योग में मजदूरी कर रहे हैं. टेक्सटाइल उद्योग बांग्लादेश का सबसे बड़ा एक्सपोर्ट सेक्टर है. यहां बनने वाले सस्ते कपड़े अमीर देशों की दुकानों में पहुंचते हैं.
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महानगर में अकेले
कंबोडिया में प्राइमरी स्कूल जाने वाले बच्चों की संख्या सिर्फ 60 फीसदी है. स्कूल न जाने वाले ज्यादातर बच्चे अपने माता-पिता के साथ काम करते हैं. हजारों बच्चे ऐसे भी है जो सड़कों पर अकेले रहते है. राजधानी नोम पेन्ह की ये बच्ची सामान घर तक पहुंचाती है.
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लंबी है सूची
हालांकि दुनिया भर में सन 2000 के बाद बाल मजदूरों की संख्या गिरी है लेकिन एशिया के ज्यादातर देशों में हालात नहीं सुधरे हैं. बांग्लादेश, अफगानिस्तान, नेपाल, कंबोडिया और म्यांमार में अब भी ज्यादा पहल नहीं हो रही.
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संयुक्त राष्ट्र थिंक टैंक और फ्रीडम फंड नाम की निजी संस्था की संयुक्त रिपोर्ट में कहा गया है, "गुलामी इसलिए मौजूद है क्योंकि हम इसे मौजूद रहने देते हैं." दोनों संगठनों का मानना है कि आधुनिक गुलामी से जूझ रहे करोड़ों लोगों की आजादी के लिए लड़ाई बहुत बिखरी हुई और बगैर जुड़ाव की है. देशों को चाहिए कि वे बंधुआ मजदूरी, सेक्स ट्रैफिकिंग और अन्य प्रकार की गुलामी के खिलाफ मुकदमों को बढ़ावा दें.
गुलामी और ट्रैफिकिंग लाखों कमजोर लोगों को अपनी चपेट में ले रही है. ग्लोबल स्लेवरी इंडेक्स 2014 के मुताबिक दुनिया के 32 देश आधुनिक गुलामी की चपेट में हैं. अमेरिकी विदेश मंत्रालय के मुताबिक दुनिया भर में मानव तस्करी और सेक्स के लिए इंसानों की तस्करी के करीब नौ हजार मामले सालाना कोर्ट में होते हैं. हालांकि कंपनियों पर लगातार दबाव है लेकिन सजा के मामले बहुत कम सामने आते हैं.
एसएफ/एमजे (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन)
संवेदना नहीं, शरीर चाहिए
साल 2000 से देह व्यापार बांग्लादेश में वैध है. लेकिन जबरदस्ती इस धंधे में धकेला जाना मुस्लिम बहुल देश में चिंता का कारण बन गया है. बांग्लादेश में यौनकर्मी देखें तस्वीरों में...
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जबरदस्ती
बहुत छोटी उम्र में ही ये लड़कियां देह व्यापार में धकेल दी जाती हैं. कई गरीब, गांव के लोग अपनी लड़कियों को को बेच देते हैं. उन्हें इसके लिए 20 हजार टका मिल जाते हैं. कुछ मामलों में शादी का लालच देकर बिचौलिये इन्हें चकलाघरों में बेच देते हैं.
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बच्चियों के लिए इंजेक्शन
कम उम्र की बच्चियों में स्टेरॉयड काम नहीं करते, खासकर 12 से 14 की उम्र वाली लड़कियों में. बांग्लादेश के एक चकले की मालिक रोकेया बताती हैं कि इनको इंजेक्शन दिए जाते हैं.
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बाल देह व्यापार
बांग्लादेश में बच्चियों का देह व्यापार एक गंभीर समस्या है. संयुक्त राष्ट्र के बाल कोष के मुताबिक 2004 में यौन शोषण का शिकार होने वाली बच्चियों की संख्या 10 हजार थी. अनौपचारिक अनुमानों के मुताबिक यह संख्या 29,000 बताते हैं.
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गाय के स्टेरॉयड सेक्सकर्मियों के लिए
लड़कियों को भरा पूरा दिखाने के लिए ओराडेक्सॉन नाम का स्टेरॉयड इस्तेमाल किया जाता है. सामान्य तौर पर ये स्टेरॉयड किसान अपनी गायों को हृष्ट पुष्ट बनाने के लिए करते हैं.
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दवा की लत
गैर सरकारी संगठन एक्शनएड के मुताबिक ओराडेक्सॉन बांग्लादेश के 90 फीसदी चकलाघरों में इस्तेमाल किया जाता है. इन्हें 15 से 35 साल की औरतें इस्तेमाल करती हैं. एनजीओ के मुताबिक बांग्लादेश में करीब 20,000 लड़कियां देह व्यापार में हैं.
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शिकायतें
एक्शनएड ने 2010 में इन लड़कियों को चेताने के लिए अभियान शुरू किया ताकि इन्हें दवा के बुरे असर और खतरे का पता चले. ये स्टेरॉयड शुरू करते ही महिलाओं का वजन बढ़ने लगता है. लेकिन इससे डायबिटीज, उच्च रक्तचाप, दाने और सिरदर्द होता है.
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एड्स का खतरा
स्थानीय अखबार अक्सर बांग्लादेश की यौन कर्मियों में एड्स की खबरें छापते हैं लेकिन इस बारे में कोई शोध नहीं किया गया है कि कितनी महिलाएं इससे पीड़ित हैं. सेक्स वर्करों का कहना है कि ग्राहक अक्सर कंडोम का इस्तेमाल नहीं करना चाहते और इससे इन लड़कियों में बीमारी की आशंका बढ़ जाती है.
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कट्टरपंथियों के शिकार
दक्षिणी बांग्लादेश में पिछले साल इस्लामी कट्टरपंथियों ने एक चकलाघर पर हमला किया. 30 सेक्स कर्मी घायल हुए. इस तरह के हमले बांग्लादेश में आम हैं.