नए परमाणु व्यापार नियमों से नाराज हो सकता है भारत
२८ जून २०११न्यूक्लियर सप्लायर्स ग्रुप ने पिछले सप्ताह डच शहर नॉर्डविक में यूरेनियम संवर्धन और रिप्रोसेसिंग की संवेदनशील तकनीक के ट्रांसफर के दिशानिर्देशों को सख्त बना दिया है. इस संस्था में अमेरिका, रूस और चीन के अलावा यूरोपीय संघ के देश तथा कुछ अन्य देश हैं जो यह तय करते हैं कि परमाणु निर्यात का सैनिक लक्ष्यों के लिए उपयोग न हो.
विशेषज्ञों का कहना है कि नए नियमों से भारत नाराज हो सकता है. भारत और अमेरिका के बीच 2008 में हुए परमाणु समझौते के बाद वॉशिंगटन की मदद से भारत को एनएसजी के नियमों से छूट मिल गई थी. उसके पास संवर्धन और रिप्रोसेसिंग क्षमता है और उसे उन्नत उपकरणों की जरूरत नहीं है.
लेकिन हथियार विशेषज्ञ डेरिल किमबॉल का कहना है कि एशियाई परमाणु सत्ता भारत इसे आघात समझ सकता है. वॉशिंगटन स्थित आर्म्स कंट्रोल एसोसिएशन के डाइरेक्टर किमबॉल कहते हैं, "मामला सम्मान का है. मामला तकनीकी जरूरत का नहीं है." उनके अनुसार भारत यह कहने की स्थिति में होना चाहता है कि उनपर कोई परमाणु व्यापार प्रतिबंध नहीं है और वह जिम्मेदार परमाणु सत्ता है.
भारत ने अभी तक न्यूक्लियर सप्लायर्स ग्रुप के नए संशोधित दिशानिर्देशों पर टिप्पणी नहीं की है. उसका कहना है कि वह न्यूक्लियर सप्लायर्स ग्रुप के संपर्क में है और उसे उम्मीद है कि नए नियमों का भारत से संबंधित संधि पर उल्टा असर नहीं होगा. नए दिशानिर्देशों को अभी तक सार्वजनिक नहीं किया गया है. लेकिन इसकी एक शर्त यह है कि सिर्फ परमाणु अप्रसार संधि एनपीटी पर हस्ताक्षर करने वाले देशों को ही उन्नत तकनीक बेची जाएगी. भारत ने एनपीटी पर हस्ताक्षर नहीं किया है. कार्नेगी फाउंडेशन के मारक हिब्स का कहना है, "भारत इस शर्त को नए दिशानिर्देशों से बाहर रखवाना चाहता था लेकिन इसमें विफल रहा."
वॉशिंगटन ने पिछले साल न्यूक्लियर सप्लायर्स ग्रुप में भारत की सदस्यता का समर्थन करने की घोषणा की थी. शुक्रवार को अमेरिकी विदेश मंत्रालय के एक प्रवक्ता ने कहा कि भारत को ग्रुप के नजदीक लाने में प्रगति हुई है.
रिपोर्ट: एजेंसियां/महेश झा
संपादन: आभा एम