1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

नए भूमि अधिग्रहण कानून पर शंका

२८ अगस्त २०१२

भारत में अंग्रेजों का बनाया भूमि अधिग्रहण कानून अब बदलने जा रहा है. माना जा रहा है कि कानून के बदलने से कई सालों से ठप पड़ीं मूलभूत सुविधाओं सं संबंधित योजनाएं दोबारा शुरू हो सकेंगी. निगाहें अब संसद पर टिकी हैं.

तस्वीर: Survival International

भारत का भूमि अधिग्रहण कानून 118 साल पुराना है. अब तक सरकार दो बार इसे बदलने की नाकाम कोशिश कर चुकी है. पिछले हफ्ते जब सरकार ने संसद में विधेयक पेश किया तो कई सामाजिक कार्यकर्ताओं ने इसका विरोध किया. सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि यह कानून आम आदमी को नहीं बल्कि सिर्फ निवेशकों को ध्यान में रख कर बनाया गया है. विपक्ष ने भी इस नए कानून का कड़ा विरोध किया है. लेकिन सरकार इसे लेकर आशावादी है. सरकार का कहना है कि इससे किसानों को भी फायदा मिलेगा.

वहीं सरकार के मुताबिक विधेयक में जमीन को लेकर मतभेद सुलझाने के लिए न्याय प्रणाली में सुधार की भी बात है. यदि विधेयक पास हो जाता है तो फास्ट ट्रैक कोर्ट इन मामलों को छह महीने के अंदर निपटा सकेंगे और लोग सालों तक निचली अदालत के चक्कर काटने से भी बच सकेंगे, लेकिन पहले विधेयक पास तो हो.

माना जा रहा है कि आम आदमी को इसका कोई खास फायदा नहीं मिलेगा. व्यापार के लिहाज से जमीन की कीमतें काफी बढ़ जाएंगी. वे लाखों लोग जो जमीन हड़पे जाने के खिलाफ बरसों से शिकायत करते आए हैं, उन्हें भी इस से कोई फायदा होता नहीं दिख रहा है.

सरकार प्रस्तावित नए विधेयक के अनुसार ऊर्जा, दूरसंचार, परिवहन और शिक्षा के क्षेत्र में इसका फायदा मिलेगा. हाईवे बनाने के करीब 80 प्रोजेक्ट अब तक निर्धारित समय सीमा से पीछे चल रहे हैं. इसी तरह उड़ीसा में टाटा स्टील का प्रोजेक्ट भी शुरू नहीं हो पा रहा है. छतीसगढ़ में कोयले की खानों का काम भी रुका पड़ा है.

सरकार का कहना है कि विधेयक पारित हो जाने से ये सब काम एक बार फिर शुरू हो सकेंगे. इसके अलावा बेघर लोगों को घर मिल सकेंगे, रोजगार के नए अवसर पैदा हो सकेंगे और महीने का भत्ता भी मिल सकेगा. लेकिन इसके साथ ही यह भी माना जा रहा है कि शहरों में जमीन के दाम दोगुना और देहाती इलाकों में चार गुना तक बढ़ सकते हैं.

विधेयक में कहा गया है कि यदि निजी कंपनियां शहरों में 50 एकड़ या फिर गांव में 100 एकड़ जमीन अधिग्रहित करती हैं तो उन्हें लोगों को पुन:स्थापित करने की जिम्मेदारी लेनी होगी. इससे जमीन के दाम भी बढ़ेंगे. कुछ समय पहले भारतीय मूल के जाने माने उद्योगपति लक्ष्मी मित्तल ने इस बात पर नाराजगी जताई थी कि उनके कई प्रोजेक्ट अगले कई सालों तक पूरे नहीं हो सकेंगे. अब हाल ही में उनकी एक प्रवक्ता ने कहा कि जमीन के दाम बढ़ने की शंका के बावजूद कंपनी सौदे की कोशिश कर रही है.

आईबी/ओएसजे(एएफपी)

इस विषय पर और जानकारी को स्किप करें
डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी को स्किप करें

डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी

डीडब्ल्यू की और रिपोर्टें को स्किप करें