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नए मिस्र का साथ दे यूरोप

१२ फ़रवरी २०११

सड़क पर उतरी जनता के दबाव से होस्नी मुबारक को जाना पड़ा. सारा मिस्र खुशी से नाच रहा है. अब लोकतंत्र तक का सफर शुरू हुआ है, जिसमें यूरोप को मिस्र का साथ देना है. बैर्न्ड रीगर्ट की समीक्षा.

तस्वीर: AP

आखिरकार मिस्र आजाद है! काहिरा और मिस्र के कोने-कोने में प्रदर्शनकारी यह नारा लगा रहे थे. इनकलाब कामयाब रहा. लोकतंत्र के लिए आई लहर सत्ता का अलमबरदार बह गए. हम देख रहे हैं कि कैसे इतिहास बनता है. यह दिल को झकझोर देने वाली एक घड़ी है. याद आ जाती है यूरोप की सन 1989 की घटनाएं. होस्नी मुबारक को मानना पड़ा कि मिस्र में सच्ची लोकशाही के जरूरी दौर में भूमिका निभाने की गुंजाइश उनके लिए नहीं रह गई है. गुरुवार को ही उन्हें गद्दी छोड़ देनी चाहिए थी, 24 घंटों की देर के साथ यह कदम उठाने को मजबूर होना पड़ा. मिस्र की जनता की खुशी उफन पड़ी है, सब उसमें सराबोर हैं.

कैथरीन एश्टनतस्वीर: AP

अब यह सवाल पूछा जा रहा है : मिस्र में क्या होने जा रहा है? मुबारक ने सेना को सत्ता सौंपी है, क्या वह एक सच्चा लोकतंत्र लाएगी? सभी उम्मीद लगाए बैठे हैं कि यह महान प्रयोग अब सफल होगा. यूरोप और अमेरिका को अब अपना वादा निभाना पड़ेगा और मिस्र में लोकतंत्र के निर्माण के लिए हर संभव राजनीतिक और वित्तीय मदद देनी पड़ेगी.

क्या करेगा यूरोप

यूरोप की विदेश मंत्री कैथरीन ऐशटन ने पिछले सप्ताहांत के दौरान कहा था कि लोकतंत्र की प्रक्रिया के समर्थन के लिए यूरोपीय संघ तैयार खड़ा है. अब उन्हें अगले विमान से मिस्र पहुंचना चाहिए और कथनी को करनी में बदलना चाहिए, बशर्ते मिस्र की नई सरकार यह चाहती हो. यह बेहद जरूरी है. ऐसा नहीं लगना चाहिए कि यूरोप या अमेरिका मिस्र की दरमियानी हालत का फायदा उठाने की कोशिश कर रहा है. यह मिस्र की जनता की जीत है और उनकी जीत बनी रहेगी.

बहरहाल पर्दे के पीछे यूरोप और अमेरिका को अपने रहे-सहे असर का इस्तेमाल करना चाहिए, ताकि क्षेत्र मे किसी हद तक स्थिरता बनी रहे और इस परिवर्तन का इस्राएल के साथ मिस्र की शांति पर असर न पड़े, राष्ट्रपति मुबारक जिसकी गारंटी देते रहे. मिस्र को सीख देने की कोशिश किए बिना यूरोप को इस बात का ख्याल रखना चाहिए कि वहां नरमपंथी और लोकतांत्रिक ताकतों का बोलबाला हो. इस क्रांति का नतीजा ईरान के तर्ज पर एक धार्मिक तंत्र नहीं होना चाहिए, और न ही वहां हमास शासित गजा पट्टी जैसी हालत होनी चाहिए. ब्रसेल्स में सोमवार को यूरोप के विदेश मंत्रियों की विशेष बैठक में इस पर विचार हो सकता है.

उत्तर अफ्रीका और मध्य पूर्व के लिए यह फैसलाकून होगा कि लोकतंत्र की चिंगारी दूसरे देशों में फैलती है या नहीं. फिलहाल हम अचरज और हमदर्दी के साथ सिर्फ ताक सकते हैं और उम्मीद कर सकते हैं कि यह ऐतिहासिक क्रांति शांतिपूर्ण बनी रहे.

लेखक: बैर्न्ड रीगर्ट/उ भ

संपादन: वी कुमार

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