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नए रोजगार के लिए जर्मन एसएमई से सहयोग करेगा भारत

महेश झा
५ अक्टूबर २०१६

आठ करोड़ की आबादी वाला जर्मनी विश्व की प्रमुख आर्थिक सत्ताओं में शामिल है. और इस आर्थिक ताकत की रीढ़ छोटे और मझौले उद्यम हैं. भारत अपने आर्थिक विकास के लिए उन्हें लुभाने की कोशिश कर रहा है.

Deutschland Berlin - Staatssekretärin Brigitte Zypriss, Indische Botschafter Gurjeet Singh, Botschafter Ehefrau Neeru Singh und Stellv. Botschafter Abhishek Singh in Berlin
तस्वीर: DW/M. Jha

जर्मनी में करीब 36 लाख छोटे और मझौले उद्यम हैं. मिट्लस्टांड कही जाने वाली इन कंपनियों ने 2013 में 2200 अरब यूरो का कारोबार किया. ये जर्मन कंपनियों के पूरे कारोबार का 35.5 प्रतिशत था. इन कंपनियों में देश के 1.6 करोड़ लोग काम करते हैं, कुल कामगार आबादी का 60 प्रतिशत. इस सेक्टर के महत्व को इस बात से समझा जा सकता है कि वे जर्मनी के सकल राष्ट्रीय उत्पादन का 55 प्रतिशत पैदा करते हैं.

देश की कामयाबी में इन कंपनियों का ये भी योगदान है कि रिसर्च और डेवलपमेंट के क्षेत्र में छोटी और मझौली कंपनियां सालाना 9 अरब यूरो का निवेश करती हैं. युवा बेरोजगारी को कम रखने और कुशल कामगार पैदा करने में भी इनकी भूमिका है. कुल 82 प्रतिशत युवा लोग ऐसी कंपनियों में ट्रेनिंग पा रहे हैं जहां 500 से कम लोग काम करते हैं. 2013 में छोटी और मझौली कंपनियों ने 199 अरब यूरो का निर्यात किया जो देश के कुल निर्यात का करीब 20 प्रतिशत है.

जर्मन मिट्लस्टांड की यही उपलब्धियां इन्हें भारत के लिए भी आकर्षक बनाती हैं. भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश को विकास के ऐसे रास्ते पर ले जाना चाहते हैं जहां मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर को बढ़ावा देकर नए रोजगार पैदा किए जा सकें. उनके मेक इन इंडिया कार्यक्रम में जर्मनी की छोटी और मझौली कंपनियों की विशेष जगह है. इसलिए 2015 में जर्मनी दौरे के बाद मेक इन इंडिया मिट्लस्टांड कार्यक्रम शुरू किया गया है जिसका मकसद भारत में निवेश के इच्छुक कंपनियों को मदद देना है.

भारत में निवेश पर चर्चातस्वीर: DW/M. Jha

भारतीय अर्थव्यवस्था में छोटी और मझौली कंपनियों का महत्वपूर्ण स्थान है. ये कंपनियां सकल राष्ट्रीय उत्पादन का करीब 20 प्रतिशत पैदा करती है. इन कंपनियों में सकल औद्योगिक उत्पादन का 45 प्रतिशत और निर्यात का 40 प्रतिशत पैदा होता है. करीब 6 करोड़ लोगों को ये कंपनियां रोजगार देती है. कृषि के बाद ये देश में सबसे ज्यादा रोजगार देने वाला क्षेत्र है लेकिन देश में युवा लोगों के आकार को देखते हुए यह अभी भी पर्याप्त नहीं है.

जर्मनी के विपरीत, भारत में छोटी और मझौली कंपनियों का फैसला निवेश की मात्रा पर होता है. मैन्युफैक्चरिंग में 10 करोड़ रुपए और सर्विस सेक्टर में 5 करोड़ रुपए से ज्यादा निवेश होने पर कंपनियां एसएमई (स्मॉल एंड मीडियम एंटरप्राइजेज) की परिभाषा से बाहर निकल जाती हैं. भारतीय छोटी और मझौली कंपनियों की एक बड़ी समस्या पूंजी का अभाव, नई टेक्नॉलॉजी में निवेश की क्षमता का अभाव और एक दूसरे के अनुभवों से लाभ उठाने में विफलता रही है. भारत और जर्मनी की कंपनियों को साथ लाकर इस कमी को बहुत हद तक दूर किया जा सकता है.

मोदी मैर्केल भेंट के बाद हुई पहलतस्वीर: Getty Images/AFP/M. Kiran

एक साल के अंदर इस प्रोग्राम के तहत जर्मन कंपनियों ने भारत में 50 करोड़ यूरो के निवेश की घोषणा की है. पिछले दिनों बर्लिन में एमआईआईएम 2.0 का उद्घाटन हुआ. इस मौके पर जर्मनी की अर्थनीति राज्यमंत्री ब्रिगिटे सिप्रीस ने इस प्रोग्राम के लिए अपनी सरकार के समर्थन की घोषणा की.

जर्मनी में भारत के राजदूत गुरजीत सिंह ने कहा कि आने वाले समय में जर्मन भारत सहयोग के केंद्र में रेल और अन्य ढांचागत संरचना तथा स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट होंगे. उन्होंने जर्मन कंपनियों का आह्वान किया कि वे एमआईआईएम कार्यक्रम की मदद से भारतीय छोटी और मझौली कंपनियों के साथ पार्टनरशिप के विकल्प पर विचार करें. राजदूत ने कहा कि जर्मन कंपनियों को भारत को नई खोज के केंद्र के रूप में देखना चाहिए और आरएंडी केंद्रों में निवेश करना चाहिए.

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