भविष्य में नकली हाथ पैरों का इस्तेमाल करने वालों को त्वचा के माध्यम से स्पर्श भी महसूस हो, इसके लिेए वैज्ञानिकों ने मौजूदा सिंथेटिक इलेक्ट्रॉनिक त्वचा में ऊर्जा के सुचालक ग्रैफीन डाल कर नयी तरह की त्वचा विकसित की है.
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अब तक केवल वैज्ञानिक शोधों और प्रयोगों में इस्तेमाल होने वाले इलेक्ट्रानिक (सिंथेटिक) त्वचा में अब सौर ऊर्जा के जरिये ऊर्जा पहुंचायी जा सकेगी. रिसर्चरों को उम्मीद है कि इसके बाद कृत्रिम अंग और रोबोट भी स्पर्श को महसूस कर सकेंगे. दुनिया भर में वैज्ञानिक सिंथेटिक त्वचा के लचीले संस्करण विकसित करने के लिये काम कर रहे हैं. इनका मकसद उसे भी मानव त्वचा की संवेदनाओं को महसूस करने लायक बनाना है.
इस तरह के सिस्टम में ऊर्जा का संचार करना सबसे बड़ी चुनौती रहा है. अब स्कॉटलैंड की ग्लासगो युनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ इंजीनियरिंग के रिसर्चरों ने त्वचा में फिट करने लायक ग्रैफीन तैयार किया है. सौर ऊर्जा के माध्यम से बिजली पैदा करने में सक्षम ग्रैफीन, कार्बन के सबसे पतले स्वरूप का इस्तेमाल कर बनाया गया है.
रोबोट्स के 500 साल की झलक
लंदन के साइंस म्यूजियम में रोबोट्स नाम की प्रदर्शनी एक अनूठा प्रयोग है. इस प्रदर्शनी में पांच सदियों के रोबोट्स दिखे हैं. आप भी देखिए...
तस्वीर: Plastiques Photography, courtesy of the Science Museum
एनिमाट्रोनिक बेबी
यह रोबोट कहीं से भी किसी इंसानी बच्चे से अलग नहीं दिखता. हालांकि यह बस हाथ और पांव ही हिला पाता है लेकिन ऐसा अहसास होता है कि यह सांस ले सकता है. कभी कभार छींक भी देता है. इस तरह के रोबोट्स फिल्मों के लिए बनाए जा रहे हैं.
तस्वीर: Plastiques Photography, courtesy of the Science Museum
ऑटोमेटन मंक
रोबोट शब्द का इस्तेमाल 1920 में शुरू हुआ लेकिन इंसान की कल्पनाओं में मशीनी मानव का वजूद सदियों से है. जैसे यह मशीनी साधू जिसे 1560 में स्पेन में बनाया गया था. यह चाबी से चलता है.
तस्वीर: Smithsonian Institution/Jennie Hills
सिल्वर स्वान
1773 में बनाया गया है हंस किसी अजूबे से कम नहीं. चाबी घुमाने पर यह हिलता है, मछली पकड़ता है. इसके बारे में उपन्यासकार मार्क ट्वेन ने लिखा था कि यह इंसान की अक्लमंदी का जीता जागता सबूत है.
तस्वीर: Plastiques Photography, courtesy of the Science Museum
लौहे के हाथ
रोबोट तो बहुत बाद में बनने लगे. पर कटे अंगों की जगह नकली अंगों का इस्तेमाल मानव ने बहुत पहले शुरू कर दिया था. ये हाथ और बाजू मिस्र में एक ममी से मिले थे, जो 950-710 ईसा पूर्व की थी.
तस्वीर: Plastiques Photography, courtesy of the Science Museum
ये हैं पहले रोबोट
1920 में चेक लेखक कारेल कापेक ने एक साइंस फिक्शन नाटक लिखा था. आर. यू. आर. यानी रोसम्म यूनिवर्सल रोबोट्स नाम के इस नाटक से रोबोट शब्द का इस्तेमाल शुरू हुआ. चेक भाषा में रोबोटा शब्द का मतलब है बेगार.
तस्वीर: Plastiques Photography, courtesy of the Science Museum
सिनेमा में कदम
सिनेमा का पहला रोबोट एक महिला थी. 1927 में आई साइंस फिक्शन फिल्म मेट्रोपोलिस से रोबोट ने सिनेमा में कदम रखा था. यह फिल्म 2026 के वक्त की कहानी थी.
तस्वीर: Plastiques Photography, courtesy of the Science Museum
टर्मिनेटर
हम रोबोट्स को जिस तरह सोचते समझते हैं, वह धारणा मूलतः कापेक के नाटक से ही आई है. लेकिन काल्पनिक रोबोट्स के मामले जेम्स कैमरून की फिल्म द टर्मिनेटर शायद सबसे चर्चित कृति है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/M. S. Gordon/2015 Paramount Pictures
फिल्में भी
रोबोट्स किस तेजी से जिंदगी में शामिल हो रहे हैं, यह दिखाने के लिए प्रदर्शनी में वे फिल्में भी दिखाई गईं जो रोबोट्स पर आधारित हैं. जैसे 2001 की फिल्म आर्टिफिशल इंटेलिजेंस और 2015 की फिल्म एक्स माकिना.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/A24 Films
इंसान क्यों करे
हाल के सालों में यह अवधारणा तेजी से मजबूत हुई है कि इंसान बोरियत भरे मशीनी काम क्यों करे, जबकि रोबोट से वे काम लिए जा सकते हैं. तस्वीर में आप बैक्सटर को देख रहे हैं तो कुछ ही मिनट काम सीख जाता है. इसकी कीमत है करीब 25 हजार डॉ़लर.
तस्वीर: Plastiques Photography, courtesy of the Science Museum
खबरनवीस
जापान की कोडोमोरोएड न्यूज रीडिंग रोबोट है. 2014 से यह खबरें पढ़ रही है. कई भाषाओं में खबरें पढ़ सकती है और हंसी-मजाक भी कर लेती है. बस थोड़ी अकड़ू सी दिखती है.
रिपोर्ट: एलिजाबेथ ग्रेनियर/वीके
तस्वीर: Plastiques Photography, courtesy of the Science Museum
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वैज्ञानिकों के मुताबिक ये ग्रैफीन मोटाई में एक अणु (एटम) के बराबर है, साथ ही इसका लचीला और पारदर्शी स्वरूप सौर ऊर्जा को एकत्रित कर बिजली पैदा करने के लिेये अनुकूल है. दुनिया में उपलब्ध स्मार्ट कृत्रिम हाथ कई तरह के कामों को कर पा रहे हैं, लेकिन त्वचा पर स्पर्श महसूस कराना अब तक संभव नहीं हो पाया है. अब कृत्रिम हाथों पर ऐसी महसूस कर सकने वाली त्वचा को लगाने से इन्हें इस्तेमाल करने वालों के लिये और भी उपयोगी बनाया जा सकेगा.
रोबोटों की कार्यक्षमता में इजाफा करने के लिये उनमें भी संवेदनशील इलेक्ट्रॉनिक त्वचा का उपयोग किया जा सकता है. रिसर्चर रवींद्र दहिया और उनकी टीम ने साइंस पत्रिका एडवांस फंक्शनल मटीरियल्स में बताया है कि कैसे उन्होंने विद्युत-उत्पादन वाले फोटोवॉल्टिक कोशिकाओं को जोड़ा. दहिया ने बताया कि टीम का अगला लक्ष्य कृत्रिम हाथ में लगी मोटर में इसी ऊर्जा का प्रयोग करना है.