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ताइवान की साहसी राष्ट्रपति

अलेक्जांडर गोएरलाख
२२ जनवरी २०२०

ताइवान की उदारवादी राष्ट्रपति त्साई इंग-वेन दोबारा चुनाव जीत गई हैं. इस तरह ताइवान ने फिर अपने लोकतांत्रिक चरित्र को साबित किया है और दिखा दिया कि वह चीन से अलग है. चीन ताइवान को अपना विद्रोही प्रांत मानता है.

Taiwan Präsidentschaftswahl 2020 | Tsai Ing-wen
तस्वीर: imago images/ZUMA Press/C. L. Hei

जब ताइवान की आजादी बात आती है तो चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग को आंख का कांटा समझा जाता है. वे अपने इस नजरिए को हमेशा आगे बढ़ाते हैं कि उनका देश पश्चिमी तर्ज वाले लोकतंत्र के लिए नहीं बना है. वह यहां तक कहते हैं कि लंबी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि को देखते हुए चीनी विशेषताओं वाला कम्युनिस्ट सिस्टम ही चीन के लिए उपयुक्त है.

ताइवान में लोकतांत्रिक रूप से अपनी सरकार चुनने वाले 2.3 करोड़ हान चीनी इस तस्वीर में फिट नहीं बैठते हैं. शी कई बार धमकी दे चुके हैं कि जरूरत पड़ी तो ताइवान को बलपूर्वक हासिल कर लिया जाएगा.

एक देश, दो व्यवस्थाएं

त्साई ने हाल के चुनावों में जीत दर्ज की है क्योंकि उन्होंने साहस के साथ और बार बार शी की धमकियों को खारिज किया है. एक बात और जो उनके पक्ष में गई, वह यह कि ताइवान के लोग हांगकांग में पिछली गर्मियों से होने वाला घटनाक्रम देख रहे हैं और उससे चिंतित हैं.

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हांगकांग में चीनी कम्युनिस्ट पार्टी ने 'एक देश, दो व्यवस्थाओं' का वादा किया था. जब ब्रिटेन ने 1997 में अपना उपनिवेश चीन को सौंपा तो हांगकांग के लोगों से किया गया यह वादा कई बार तोड़ा जा चुका है. इस आकर्षक फॉर्मूले के तहत, कानूनी रूप से बाध्य एक समझौता किया गया था कि 2047 तक हांगकांग की स्वायत्तता बनी रहेगी. स्वायत्तता से मेरा मतलब है उसका लोकतंत्र और स्वतंत्र न्यायपालिका.

लेखक अलेक्जांडर गोएरलाख न्यूयॉर्क टाइम्स, स्विस अखबार नोए ज्यूरिषर साइटुंग और कारोबारी पत्रिका विर्टशाफ्ट्सवोखे में अतिथि स्तंभकार हैंतस्वीर: Harvard University/D. Elmes

ताइवान के साथ मेलमिलाप करने के लिए ही "एक देश, दो व्यवस्थाओं" का फॉर्मूला मूल रूप से चीन के पूर्व नेता देंग शियाओपिंग ने तैयार किया था. 1949 में माओवादी सत्ता में आए जबकि उनसे हारने वाले लोकतांत्रिक बलों ने कदम पीछे हटा लिए और वे ताइवान में जाकर बस गए, इस लक्ष्य के साथ कि एक दिन वे चीन की मुख्य भूमि को फिर से हासिल कर लेंगे. जैसा कि सब जानते हैं, ऐसा कुछ नहीं हुआ.

नई पहल की जरूरत

हांगकांग और ताइवान, दोनों ही जगह अब "एक देश, दो व्यवस्थाओं" की बात नहीं हो रही है और चीनी नेतृत्व को अब कुछ नया लाना होगा जिससे वह इन दो चीनी क्षेत्रों में लोगों का दिल जीत पाए.

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इस बीच, त्साई ने हांगकांग के राजनीतिक शरणार्थियों को अपने यहां जगह दे दी है. ताइवान के उदारवादी लोकतंत्र के लिए अपनी साहसी लड़ाई में, त्साई ने अपने प्रतिद्वंद्वी और चीन समर्थक कुओमिंतांग पार्टी के उम्मीदवार हान कुओ-यू को बहुत पीछे छोड़ दिया. चीन ने ताइवान के चुनावों में हस्तक्षेप करने की कोशिश की और इंटरनेट के जरिए कुओमिंतांग पार्टी के उम्मीदवार के पक्ष में हवा बनाने की कोशिश की.

फिलहाल स्थिति यह है कि जहां भी लोगों के पास शी के मॉडल और उदारवादी लोकतंत्र में से किसी एक को चुनने का अधिकार है, वहां उन्होंने लोकतंत्र को चुना. हांगकांग में सितंबर में चुनाव होंगे. पिछले साल हुए स्थानीय निकाय के चुनावों में बीजिंग समर्थक उम्मीदवारों को करारी हार झेलनी पड़ी है. यह भी उम्मीद करनी चाहिए कि शी बिना लड़े मैदान नहीं छोड़ेंगे, ना हांगकांग में और ना ही ताइवान में. 2020 फैसलों का साल होगा.

अलेक्जांडर गोएरलाख कारनेगी काउंसिल फॉर एथिक्स इन इंटरनेशनल अफेयर्स में सीनियर फेलो और कैब्रिज इंस्टीट्यूट ऑन रिलीजन एंड इंटरनेशनल स्टडीज में सीनियर रिसर्च एसोसिएट हैं. वह न्यूयॉर्क टाइम्स, स्विस अखबार नोए ज्यूरिषर साइटुंग और कारोबारी पत्रिका विर्टशाफ्ट्सवोखे में अतिथि स्तंभकार हैं.

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