भारत की जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी अपने उदार माहौल और आलोचनात्मक चरित्र के लिए जानी जाती है. डीडब्ल्यू की देबारति गुहा का कहना है कि छात्रों पर नकाबपोशों का हमला भारत के धर्मनिरपेक्ष बलों को चुप कराने की कोशिश है.
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नई दिल्ली की जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी, जेएनयू भारत के सबसे प्रतिष्ठित शैक्षणिक संस्थानों में से एक है. यह भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू का ड्रीम प्रोजेक्ट था. नेहरू चाहते थे कि जेएनयू में विशिष्टता और समानता का संगम हो, जहां गरीब और कमजोर राज्यों समेत देश के सभी हिस्सों से आने वाले छात्रों को उच्च गुणवत्ता वाली शिक्षा मिले.
मुझे अच्छी तरह याद है जेएनयू के कैम्पस में मेरे शुरुआती दिन. सेंटर फॉर सोशल साइंसेज की ओर जाने वाले एक छोटे से रास्ते में एक पुराना बरगद का पेड़. ये वो पेड़ था जिसके नीचे रोमिला थापर, सुदीप्ता कविराज, राजीव भार्गव और देश के सबसे नए नवेले नोबेल पुरस्कार विजेता अभिजीत बनर्जी जैसे नामी स्कॉलर बैठा करते थे.
सहपाठियों ने ऐसी कितनी ही कहानियां सुनाईं जो कैम्पस में हुए ऐतिहासिक विरोध प्रदर्शनों से जुड़ी थीं. जैसे कि जब पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 70 के दशक में देश में इमरजेंसी लागू कर दी थी, या फिर जब दिल्ली के 1984 के दंगों के दौरान सिखों को सुरक्षा दी गई. मैंने खुद भी स्टूडेंट काउंसलर की हैसियत से यूनिवर्सिटी के दिनों में कई भूख हड़तालों में शिरकत की. मैं सोच भी नहीं सकती थी कि कभी उसी यूनिवर्सिटी कैंपस में नकाबपोश गुंडे लाठी और पत्थर लेकर घुसेंगे और छात्रों, शिक्षकों पर हमला करेंगे.
बुद्धिजीवियों और आम जनता के बीच गहराती खाई
जेएनयू समेत कई भारतीय विश्वविद्यालों का विचारधारा की लड़ाई का अखाड़ा बनते जाना खतरनाक है. दक्षिणपंथी गुट राष्ट्रवाद की बातें कर किसी भी तरह की असहमति को दबाने की कोशिश कर रहे हैं. जेएनयू पर लगातार ऐसे आरोप लगे हैं कि वह सरकार विरोधी गतिविधियों को बढ़ावा देती है. शायद यही वजह थी जिसके कारण 5 जनवरी को धर्मनिरपेक्ष छात्रों परकथित रूप से अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के हमले के दौरान पुलिस ने फौरन कार्रवाई नहीं की.
नकाबपोश हमलावरों ने अपने हमले को सही ठहराते हुए उसे "लेफ्ट के खिलाफ अपनी एकता" का प्रदर्शन बताया और शांतिपूर्ण तरीके से प्रदर्शन कर रहे छात्रों , शिक्षकों पर आतंक बरसाया. परिसर में जमा छात्र-शिक्षक फीस में बढ़ोत्तरी और देश में लागू हुए नए नागरिकता संशोधन कानून के प्रति विरोध जता रहे थे, जो मुसलमानों के प्रति भेदभाव करता है.
विद्यार्थी जिन्होंने जेएनयू से पढ़कर पाया ऊंचा मुकाम
जेएनयू पिछले पांच साल में सबसे चर्चित यूनिवर्सिटी. सोशल मीडिया पर जेएनयू की इमेज खराब करने की कोशिश हो रही है. जानिए जेएनयू से निकले ऐसे विद्यार्थियों को जिन्होंने देश-दुनिया में अपनी शिक्षा और काबिलियत का लोहा मनवाया.
तस्वीर: Imago/Hindustan Times
निर्मला सीतारमण
भारत की वर्तमान वित्त मंत्री और पहली पूर्णकालिक महिला रक्षा मंत्री रहीं निर्मला सीतारमण जेएनयू से पढ़ी हैं. उन्होंने वहां से अर्थशास्त्र में मास्टर्स की डिग्री हासिल की है.
तस्वीर: Getty Images/AFP/M. Sharma
एस जयशंकर
भारत के विदेश सचिव रहे और वर्तमान में विदेश मंत्री एस जयशंकर भी इसी विश्वविद्यालय से पढ़े हैं. जयशंकर ने अंतरराष्ट्रीय संबंधों में यहां से डॉक्टरेट की पढ़ाई की है.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/C. Dharapak
अभिजीत बनर्जी
साल 2019 में अर्थशास्त्र का नोबेल पुरस्कार जीतने वाले अभिजीत बनर्जी भी जेएनयू से पढ़े हुए हैं. उन्होंने 1983 में अर्थशास्त्र में मास्टर्स किया. वो छात्र राजनीति में सक्रिय रहे और जेएनयू के दिनों जेल भी गए थे.
तस्वीर: AFP/Massachusetts Institute of Technology/B. Vickman
अली जैदान
जेएनयू में विदेशी विद्यार्थी भी बड़ी संख्या में पढ़ते हैं. 2012 से 2014 तक सीरिया के प्रधानमंत्री रहे अली जैदान जेएनयू से पढ़े हैं.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo
बाबूराम भट्टाराई
भारत के पड़ोसी देश नेपाल के 2011 से 2013 तक प्रधानमंत्री रहने वाले बाबूराम भट्टाराई भी जेएनयू से पढ़े हैं.
तस्वीर: Reuters
सीताराम येचुरी
लेफ्ट नेता सीताराम येचुरी ने जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में मास्टर्स किया. उन्होंने अर्थशास्त्र में पीएचडी में दाखिला लिया. लेकिन आपातकाल के दौरान गिरफ्तारी हो जाने की वजह से वो पीएचडी पूरी नहीं कर पाए.
तस्वीर: Getty Images/AFP/D. Dutta
योगेंद्र यादव
आम आदमी पार्टी के पूर्व नेता और स्वराज इंडिया संस्था चलाने वाले प्रोफेसर योगेंद्र यादव भी जेएनयू से पढ़े हैं. उन्होंने 1981 से 1983 तक जेएनयू में पढ़ाई की थी.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/R.S. Iyer
अब्दुल सत्तार मुराद
अफगानिस्तान के आर्थिक मामलों के मंत्री अब्दुल सत्तार मुराद भी जेएनयू से पढ़े हैं. उन्होंने 1976 में राजनीति शास्त्र में जेएनयू से बैचलर डिग्री ली थी. (तस्वीर में सबसे बाएं.)
तस्वीर: picture-alliance/dpa/R. Pal Singh
अमिताभ कांत
मोदी सरकार ने योजना आयोग की जगह बनाए नीति आयोग बनाया. नीति आयोग के सीईओ अमिताभ कांत भी जेएनयू से पढ़े हैं. उन्होंने जेएनयू से मास्टर्स किया है. (तस्वीर में बाएं.)
तस्वीर: Imago/Hindustan Times
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ताजा हालात किसी भी तरह की प्रगतिवादी सोच के लिए मुफीद नहीं लगती. महात्मा गांधी ने सविनय अवज्ञा पर जो भाषण दिए, अनुशासन को लेकर माइकल फोकॉल्ट के टेक्स्ट या फिर पार्थ चटर्जी के अच्छे और बुरे राष्ट्रवाद पर लेक्चर सब इस समय खोखले से लग रहे हैं. बुद्धिजीवियों और आम जनता के बीच की खाई भारत में बहुत तेजी से चोड़ी होती दिख रही है. इससे सबसे गंभीर खतरा देश के सेक्यूलर मूल्यों और संवैधानिक सर्वोच्चता को ही है.
फिलहाल भारत जिस दलदल में फंसा दिख रहा है उसकी वजह केवल उसकी सत्ताधारी बीजेपी सरकार ही नहीं है जो देश के सेक्यूलर चरित्र को कमतर करने पर आमादा दिख रही है. इसका दूसरा कारण यह भी है कि बीते कुछ सालों में लोग भी धर्मनिरपेक्षता को लेकर संदेहवादी हो गए हैं. ऐसा इसलिए भी हो रहा है क्योंकि देश में बौद्धिक संस्कृति और राजनीतिक गरिमा का अभाव है.
भारतीय लोकतंत्र को पंगु बनाने वाला
मैं इस बात से विचलित हूं कि सरकार की तरफ से एक के बाद एक उठाए जा रहे तमाम मुस्लिम विरोधी कदमों की ना केवल हिंदू वर्चस्ववादी बल्कि ज्यादा से ज्यादा "नरम" मध्यमवर्ग के लोग स्वागत कर रहे हैं. यह बहुत बड़ा समूह है जिसमें कई "उदारवादी हिंदू" भी आते हैं, यानि वे जो मुसलमान विरोधी नहीं हैं. दुर्भाग्य से डर के माहौल के कारण वे भी हिंदू वर्चस्ववादियों के एंटी-सेक्यूलर प्रोपेगैंडा के शिकार बन रहे हैं. यही कारण है कि अब केवल अति दक्षिणपंथी ही मुसलमानों के मिलने वाले विशिष्ट अधिकारों का विरोध करते नहीं दिख रहे.
यह चलन विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र को कमजोर बना सकता है. यही वक्त है जब भारत के धर्मनिरपेक्ष लोग एक संयुक्त मोर्चा बनाकर इस वक्त के बुनियादी सवालों का सामना करें. भारत का भविष्य इस सरकार के शासन में तो अनिश्चितताओं से भरा है ही. मुझे तो डर है कि अगर कभी विपक्षी दल वापस सत्ता में आ भी जाते हैं तो भी उन्हें बीजेपी की दक्षिणपंथी नीतियों को पलटने में बहुत मशक्कत करनी पड़ेगी.
बात जेएनयू की हो, डीयू की या अन्य किसी यूनिवर्सिटी की, छात्र राजनीति हाल के सालों में बहुत चर्चा में रही है. डालते हैं एक नजर उन लोगों पर जिन्होंने छात्र राजनीति से शुरूआत कर मुख्यधारा की राजनीति में अहम मुकाम बनाया.
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अरुण जेटली
मौजूदा केंद्रीय वित्त मंत्री और पेशे से वकील अरुण जेटली 70 के दशक में दिल्ली विश्वविद्यालय में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के नेता रहे. साल 1974 में वह विश्वविद्यालय छात्र संघ के अध्यक्ष चुने गये थे.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/EPA/Str
लालू प्रसाद यादव
तीन बार बिहार के मुख्यमंत्री रहे लालू प्रसाद यादव ने अपने छात्र जीवन की शुरुआत पटना विश्वविद्यालय के छात्र संघ के महासचिव के तौर पर की थी. बाद में वह छात्र संघ के अध्यक्ष बने. ये जयप्रकाश नारायण के आंदोलन के दौरान बनी बिहार छात्र संघर्ष समिति के अध्यक्ष भी रहे.
तस्वीर: picture alliance/AP Photo
वेकैंया नायडू
साल 1973-74 में नायडू आंध्र विश्वविद्यालय के कॉलेजों के छात्र संघ के अध्यक्ष चुने गये और अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के एक छात्र नेता के रूप में इन्होंने अपने राजनीतिक कैरियर की शुरुआत की.
तस्वीर: Fotoagentur UNI
नीतीश कुमार
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी छात्र जीवन से राजनीतिक क्षेत्र में खासे सक्रिय रहे. बिहार कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग, पटना से इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहे नीतीश ने जेपी आंदोलन में बढ़चढ़कर हिस्सा लिया.
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सीताराम येचुरी
सीपीएम के नेता येचुरी साल 1974 में स्टूडेंट फेडरेशन ऑफ इंडिया (एसएफआई) में शामिल हुये थे. जेएनयू का छात्र रहते हुए येचुरी को आपातकाल के दौरान गिरफ्तार किया गया था. साल 1977-78 में येचुरी को जेएनयू छात्र संघ का नेता चुना गया.
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प्रकाश करात
वामपंथी नेता करात जेएनयू में एसएफआई के संस्थापक सदस्यों में से एक हैं. करात जेनएनयू छात्र संघ के तीसरे अध्यक्ष बने थे. प्रकाश करात बाद में सीपीएम के महासचिव भी बने.
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अनंत कुमार
केंद्रीय संसदीय कार्यमंत्री अनंत कुमार 1975 में इंदिरा गांधी सरकार द्वारा देश में आपातकाल लागू किए जाने के बाद छात्र राजनीति में सक्रिय हुए. वह छात्र जीवन में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के राज्य सचिव और राष्ट्रीय सचिव जैसे कई पदों पर काम कर चुके हैं.
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अजय माकन
साल 1985 में माकन दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ (डूसू) के अध्यक्ष चुने गए. उस वक्त माकन बीएससी फाइनल ईयर के छात्र थे. कहा जाता है कि अपने चाचा ललित माकन की हत्या के बाद उपजी सहानभूति लहर का लाभ माकन को चुनावों में हुआ था.
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रविशंकर प्रसाद
प्रसाद ने आपातकाल के दौरान जयप्रकाश नारायण की अगुवाई में बिहार में छात्र आंदोलन का हिस्सा रहे और जेल भी गए. वह पटना विश्वविद्यालय छात्र संघ के सहायक महासचिव और विश्वविद्यालय की सीनेट तथा वित्त समिति, कला और विधि संकाय के सदस्य रह चुके हैं.
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मनोज सिन्हा
केंद्रीय मंत्रिमंडल में रेल राज्य मंत्री एवं संचार मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) का पद संभाल रहे सिन्हा साल 1982 में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय छात्र संघ के अध्यक्ष चुने गये थे. तस्वीर में केंद्रीय मंत्री सदानंद गौड़ के साथ मनोज सिन्हा