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नदियों पर टेढ़ी होती मौसम की नजर

सौजन्य: संदीप सिंह सिसौदिया (वेबदुनिया).१७ मई २०१०

एशिया में जल स्तर तेज़ी से असंतुलित हो रहा है. कई रिपोर्टों में कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन से आने वाले वर्षों में भारत में कई नदियां सूखे मैदान में तब्दील हो सकती हैं. संकट के लक्षण दिखने लगे हैं.

तस्वीर: UNI

घनी आबादी वाले महा डेल्टा क्षेत्रों में बाढ़ का खतरा भारत में जलवायु परिवर्तन से पैदा होने वाली प्रत्यक्ष चिंता है. यहां की आबादी के जल संसाधन मुख्य रुप से बारहमासी नदियां हैं, जो कृषि से लेकर लोगों के स्वास्थ्य तक पर असर डालती हैं. रिपोर्टों के अनुसार ग्लोबल वॉर्मिंग के कारण हिमालयी ग्लेशियरों के पिघलने का एक त्वरित खतरा इन ग्लेशियरों से निकलने वाली गंगा, सिंधु और ब्रह्मपुत्र नदियों पर बाढ़ के रूप में होगा. साथ ही भविष्य में इन नदियों में जल की उपलब्धता पर गहरा असर होगा.


भारत के डेल्टा क्षेत्र में बहने वाली नदियां ग्लेशियर पर 80 फीसदी तक निर्भर हैं. ग्लेशियर न होने से यह नदियां सिर्फ बरसाती नाले बनकर रह जाएंगी. गंगोत्री हिमालय के बड़े ग्लेशियरों में से एक है, पर यह हाल के दशकों में यह तेज़ी से पिघलता जा रहा है. बड़े ग्लेशियर पिघलते समय छोटे छोटे ग्लेशियरों में बदल जाते हैं, जो ग्लोबल वॉर्मिंग के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं.

तस्वीर: picture-alliance / dpa


कुछ शोधकर्ताओं का दावा है कि पिछले 40 वर्षों के दौरान ही ग्लेशियर 21 प्रतिशत तक पीछे हट चुके हैं. यह इस बात का सबूत है कि हिमालय के हिमनद तेजी से घटते चले जा रहे हैं. उनका यह भी मानना है कि हिमालय के ग्लेशियरों का दुनिया भर में सबसे कम अध्ययन किया गया है.


पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय की एक रिपोर्ट 21वीं सदी के अंत तक होने वाले मौसम के बदलाव का भी अनुमान देती है. इस सदी के अंत तक बारिश 14 से 40 प्रतिशत बढ़ सकती है और औसत वार्षिक तापमान 3 से 6 डिग्री सेल्सियस तक उछल सकता है.


एक प्रमुख अखबार में छपे अमेरिकन मैटयोरोलॉजिकल सोसायटी के जर्नल में प्रकाशित एक शोधपत्र के आधार पर बताया गया है कि जलवायु परिवर्तन के कारण बड़ी नदियों के जलप्रवाह में कमी की बात भी सामने आई है.


शोधपत्र के अनुसार 1984 से लेकर 2004 के दौरान नदियों के प्रवाह में महत्वपूर्ण परिवर्तन दर्ज किए गए हैं. भारत की गंगा, चीन की यलो, अफ्रीका की नाइजर और अमेरिका की कोलोराडो जैसी प्रमुख नदियों के जलस्तर में गिरावट दर्ज की गई है. प्रवाह बढ़ने के अनुपात में 2.5 नदियों के प्रवाह में गिरावट अपने आप में चिंताजनक है. इसके ठीक उलटे आर्कटिक महासागर के इलाके में अधिक धाराप्रवाह हो रहा है.


ऐसे अध्ययन क्षेत्र विशेष की पारिस्थितिक व जलवायु से संबंधित कई व्यापक चिंताओं को उठा रहे हैं. इस अध्ययन के मुताबिक 1984 से 2004 के बीच प्रशांत महासागर में गिरने वाली नदियों के जल की वार्षिक मात्रा में 6 प्रतिशत की गिरावट मापी गई है, जो मिसिसिपी नदी से हर साल मिलने वाले 526 क्युबिक किमी पानी की मात्रा के बराबर है.

कहीं बाढ़ तो कहीं सूखातस्वीर: picture-alliance/ dpa


हिंद महासागर के वार्षिक निक्षेप में 3 प्रतिशत या 140 क्युबिक किमी की गिरावट है तो ग्लेशियरों पर आधारित दक्षिण एशिया की ब्रह्मपुत्र व चीन की यांग्त्जी नदियों के प्रवाह में या तो स्थिरता है या वृद्धि देखी गई है. सबसे बड़ी चिंता हिमालय के ग्लेशियरों के क्रमिक रूप से गायब होने के कारण आने वाले समय में इन नदियों के प्रवाह में खतरनाक बदलाव आ सकते हैं या इनके भविष्य पर ही सवाल खड़ा हो सकता है.

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