नम आंखों से सूनामी पीड़ितों को याद कर रहा है एशिया
२६ दिसम्बर २०१९
15 साल पहले आई सूनामी में दो लाख तीस हजार लोगों की मौत हो गई थी. कई परिवार अब भी वह भयावह आपदा नहीं भूल पाए हैं. बहुत से लोग एक अंतहीन दर्द से गुजर रहे हैं.
तस्वीर: Getty Images/AFP
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26 दिसंबर 2004 को 9.1 की तीव्रता वाले भूकंप के बाद इंडोनेशिया के सुमात्रा द्वीप में सूनामी के कारण समंदर से 57 फीट ऊंची लहरें उठी थीं. सूनामी ने भारत समेत हिंद महासागर के तट पर स्थित 14 देशों में कई किलोमीटर दूर तक तबाही मचा दी थी. इस आपदा में करीब दो लाख तीस हजार लोगों की मौत हो गई थी. इंडोनेशिया के आचेह प्रांत में सूनामी की लहरों की वजह से गांव के गांव तबाह हो गए थे और करीब 1 लाख 25 हजार लोग समंदर की लहरों में बह गए थे.
2004 की तबाही के बाद आचेह दोबारा खड़ा हो गया है. वहां उच्च जोखिम वाले क्षेत्र में सरकारी भवन, स्कूल, कॉलेज और हजारों मकान का निर्माण हो चुका है.सूनामी का सबसे पहला प्रहार आचेह प्रांत पर ही हुआ था. वहां सूनामी की 35 मीटर तक ऊंची लहरें उठी थीं. जहां-जहां समंदर का उफनता पानी पहुंचा वहां-वहां तबाही मच गई.
नागापट्टिनम में तबाही में 6 हजार लोगों की मौत हुई थी. तस्वीर: AP
भारत में सूनामी के कारण दस हजार लोगों की मौत हो गई थी जबकि पड़ोसी देश श्रीलंका में 35 हजार लोग मारे गए थे.
थाईलैंड में सूनामी के कारण 5,300 से अधिक लोगों की मौत हो गई थी, जिनमें पर्यटक भी शामिल थे. थाईलैंड में अधिकारियों ने मृतकों की याद में श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया और लोगों से आपदाओं के लिए अधिक जागरूक रहने का आग्रह किया.
तमिलनाडु के नागापट्टिनम में सूनामी के चलते 6,000 से भी ज्यादा लोग मारे गए थे. जो जिंदा बच गए थे उनमें से भी कइयों ने अपना घर और परिजन खो दिए थे. कई लोग सूनामी के दंश से अब तक उभर नहीं पाए हैं. नागापट्टिनम जिला सबसे ज्यादा प्रभावित इलाकों में से एक था. सूनामी की चपेट में आने वाले अधिकतर परिवार मछुआरे थे, जो समुद्र के पास ही रहते थे.
कई मछुआरे 15 साल पहले आई इस त्रासदी को अब तक भूल नहीं पाए हैं और समंदर में मछली पकड़ने जाने से पहले उनकी आंखों के सामने वही मंजर आ जाता है. तो वहीं जिले के कुछ लोग अपने परिवार के साथ दूसरे शहरों में जा बसे हैं और उनके बच्चे उच्च शिक्षा हासिल करने के बाद नई जिंदगी जी रहे हैं.
इंडोनेशिया के आचेह प्रांत के डेरी सत्यावान बताते हैं कि सूनामी उनके लिए ना केवल शारीरिक बल्कि भावनात्मक चुनौती भी थी. सत्यावान के परिवार के सदस्यों के साथ-साथ दोस्त भी लहरों में बह गए थे. दो बच्चे के पिता सत्यावान बताते हैं, "पानी ही दर्द भुलाने का एक जरिया है और मैं लहरों पर सर्फिंग करके सूनामी के दर्द को भूल जाता हूं. जब मैं सर्फिंग करता हूं तो मेरे पुराने दर्द और भय दूर हो जाते हैं."
एए/एके (रॉयटर्स, एएफपी)
सूनामी के सबक
11 मार्च 2011 को समुद्र के भीतर रिक्टर स्केल पर 9 तीव्रता का भूकंप भीषण सूनामी लेकर आया. इसके क्या कुछ सबक थे देखें इन तस्वीरों में.
तस्वीर: Rohan Kelly/Daily Telegraph
फुकुशिमा: एक स्थाई सबक
2011 की सूनामी तब और भयानक हो गई थी जब समुद्र से उठे तूफान और भीषण लहरों की चपेट में जापान के फुकुशिमा का परमाणु संयंत्र भी आ गया. परमाणु ऊर्जा के पक्षधर इसे बेहद सुरक्षित और पर्यावरण सम्मत बताते थे. लेकिन सूनामी से बर्बाद हो फुकुशिमा संयंत्र से पैदा हुई रेडियो सक्रियता ने इन दावों को गलत साबित कर दिया.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/K.Kamoshida
परमाणु दुर्घटना
9 तीव्रता वाले भूकंप से उपजी सूनामी के कारण जापान के उत्तरी तटीय इलाके में मौजूद फुकुशिमा परमाणु संयंत्रों पर भी शक्तिशाली तूफान और लहरों का हमला हुआ. रिएक्टरों में टूट फूट हुई और परमाणु छड़ों के गलने से निकले विकिरणों के कारण जापान को भीषण परमाणु दुर्घटना झेलनी पड़ी.
तस्वीर: Getty Images/C. Furlong
परमाणु ऊर्जा: नो थैंक्स!
कुछ देशों ने फुकुशिमा की तबाही से सबक लिया और परमाणु ऊर्जा से परहेज की बात की. केवल जर्मनी ने परमाणु ऊर्जा को पूरी तरह नकार दिया और सौर तथा पवन ऊर्जा के विकल्प की ओर ज्यादा निवेश करना शुरू किया. जर्मनी में अभी भी 8 परमाणु बिजलीघर काम कर रहे हैं. कभी 20 हुआ करते थे. अगले 6 सालों में उन्हें भी बंद कर दिया जाएगा.
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आपदा या हादसा
हालांकि ये सबक सारे देशों ने नहीं लिए हैं. बहुत से देशों में फुकुशिमा को मुख्य रूप से प्राकृतिक आपदा समझा गया. खुद जापान ने कुछ साल परमाणु बिजली घरों को बंद करने के बाद फिर से परमाणु संयंत्रों को चालू कर दिया है. फ्रांस और अमेरिका ने कभी इसके बारे में सोचा ही नहीं. सिर्फ जर्मनी ने फुकुशिमा के सबक को लागू किया है.
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परमाणु संयंत्र के बदले साहसिक पार्क
नीदरलैंड से लगी जर्मनी की सीमा के पास ही काल्कर के एक पुराने न्यूक्लियर पावर प्लांट को साहसिक खेलों के लिए एक रोचक पार्क में बदल दिया गया है. ये सबक सुनामी से भी पहले का है. यूक्रेन में हुए चेर्नोबिल परमाणु संयंत्र हादसे की तबाही को देखते हुए पूरी तरह तैयार हो गए इस परमाणु संयंत्र को कभी भी इस्तेमाल न करने का फैसला लिया गया.
तस्वीर: Internationale Filmfestspiele Berlin
कुडनकुलम का विरोध
भारत में भी समुद्रतटीय राज्य तमिलनाडु के कुडनकुलम में भी रूस की मदद से 2000 मेगावाट का परमाणु संयंत्र लगाया गया है. इस परमाणु संयंत्र का भी स्थानीय लोगों और पर्यावरणवादियों की ओर से भारी विरोध हुआ है. विरोध कर रहे लोग फुकुशिमा की दुर्घटना और तबाही से सबक लेने की बात कर रहे हैं.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/Arun Sankar K.
पीड़ितों का विरोध
भारत दिसंबर 1984 में पहले ही भोपाल गैस त्रासदी झेल चुका है. जिसमें यूनियन कार्बाइड के कारखाने से हुए गैस रिसाव के चलते करीब 3,787 लोग मारे गए थे और लाखों लोगों को भयानक रोगों से जूझना पड़ा. इसके चलते भोपाल गैस पीड़ित भी कुडनकुलम में लगाए गए परमाणु संयंत्र का विरोध कर रहे हैं.