रविवार 10 मार्च को भारत में लोकसभा चुनावों की तारीखों की घोषणा हो गई. पुलवामा आतंकी हमले के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच हुई तनातनी के बीच ये चुनाव और भी रुचिकर हो गया है.
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भारत में 11 अप्रैल से 19 मई तक सात चरणों में मतदान होगा और 23 मई को नतीजे आएंगे. नरेंद्र मोदी की अगुवाई में बीजेपी पाकिस्तान और राष्ट्रवाद के ऊपर अपने चुनाव प्रचार को केंद्रित करना चाह रही है. वहीं कांग्रेस और दूसरी विपक्षी पार्टियां अर्थव्यवस्था और दूसरे मुद्दों पर सरकार को घेरने की फिराक में हैं.
बीजेपी 2014 की प्रचंड जीत की 2019 में पुनरावृत्ति करने की कोशिश में है. हालांकि 2019 के चुनाव में कांग्रेस और बीजेपी के अलावा क्षेत्रीय पार्टियों के गठबंधन भी अहम भूमिका निभाने वाले हैं. नरेंद्र मोदी 2014 की तरह ही गरीब चायवाले की छवि को ही आगे लेकर चलने की कोशिश में हैं. वो राहुल गांधी के गांधी-नेहरू परिवार से आने की वजह से राहुल पर वंशवाद, उनकी मां के इतालवी मूल पर भी सवाल कर उसे भुनाने की कोशिश करेंगे.
चुनाव के ऐलान के बाद आए ओपिनियन पोल में भाजपा की लोकप्रियता में गिरावट सीधे-सीधे दिखाई दे रही है. वो 272 सीटों के जादुई आंकड़े से दूर दिखाई दे रही है. ऐसे में बीजेपी को गठबंधन के साथियों की जरूरत होगी. इसका मतलब ये एक त्रिशंकु लोकसभा हो सकती है और मोदी की विदाई भी हो सकती है.
तीन राज्यों में मिली जीत से उत्साह में है कांग्रेसतस्वीर: DW/S. Mishra
सेंटर फॉर पॉलिसी अल्टरनेटिव्स के मोहन गुरुस्वामी का कहना है,"अगर बीजेपी 272 सीटों का आंकड़ा नहीं छू पाती है तो यह मोदी की विदाई का कारण साबित होगा." इसके पीछे दलील यह दी जाती है कि भाजपा के हिंदुत्ववादी एजेंडे के चलते सेक्युलर विचारधारा वाले दल बीजेपी के साथ आने में कतराएंगे. साथ ही, अगर कोई दल साथ आने को तैयार होता है तो मोदी के सख्त प्रशासक और अकेले फैसले लेने वाली छवि के चलते उनके नाम पर सहमति बनना मुश्किल है. ऐसे में मोदी के नेतृत्व में बीजेपी ऐसा गठबंधन नहीं बना पाएगी जिससे सत्ता हासिल हो सके.
दिसंबर, 2018 में हुए पांच राज्यों के चुनावों में से हिंदी पट्टी के तीन राज्यों राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीगढ़ में बीजेपी को हराने के बाद कांग्रेस के हौसले बुलंद हैं. अब राहुल गांधी नरेंद्र मोदी के सामने एक चुनौती बनकर उभरे हैं. भारत में हिंदी पट्टी के सब राज्यों की जनसंख्या करीब 47.5 करोड़ है. ये अमेरिका, मेक्सिको और कनाडा की कुल जनसंख्या के बराबर है और यही बीजेपी का कोर वोट है.
इस हार का कारण कृषि के क्षेत्र और युवाओं को नौकरियां देने में मोदी सरकार की असफलता माना गया. भारत में पिछले कुछ सालों में हजारों किसानों ने आत्महत्या की है. साथ ही राहुल गांधी बार-बार नरेंद्र मोदी पर फ्रांस के साथ हुई राफाल डील में अनिल अंबानी की मदद कर भ्रष्टाचार का आरोप लगा रहे हैं. राफाल डील में भ्रष्टाचार के आरोप भी मोदी सरकार के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकते हैं.
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जवाहर लाल नेहरू विश्विद्यालय में प्रोफेसर गुरप्रीत महाजन कहती हैं," 2019 का चुनाव मोदी सरकार के पांच साल के काम की समीक्षा होगी. ये जनमत तय करेगा कि क्या नरेंद्र मोदी ने अपने वादों को पूरा किया है या नहीं."
नरेंद्र मोदी दशकों बाद भारत की राजनीति में लोकप्रिय नेता बनकर सामने आए हैं. नरेंद्र मोदी हिंदुवादी संगठन आरएसएस से निकलकर भारत की सत्ता के शीर्ष तक पहुंचे हैं. हालांकि बीजेपी पर धार्मिक ध्रुवीकरण की राजनीति का आरोप लगता रहा है. 1992 में बाबरी मस्जिद गिराए जाने के बाद से बीजेपी पर ये आरोप लगाए जाते रहे हैं.
एक अमेरिकी गुप्तचर संस्था की रिपोर्ट में चेतावनी जारी की गई कि 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी हिंदू राष्ट्रवाद की नीति के चलते ध्रुवीकरण करने के लिए धार्मिक भावनाएं भड़काने की कोशिश कर सकती है.
भारत में अब करीब 83 करोड़ मोबाइल हैं. ऐसे में यह चुनाव मोबाइल आधारित सूचनाओं पर भी निर्भर करेगा. चुनाव प्रचार में अफवाह और फेक न्यूज का धड़ल्ले से इस्तेमाल किया जाएगा. और यह सब राजनीतिक दलों द्वारा भी किया जाएगा.
कितने राज्यों में है बीजेपी और एनडीए की सरकार
केंद्र में 2014 में मोदी सरकार बनने के बाद देश में भारतीय जनता पार्टी का दायरा लगातार बढ़ा है. डालते हैं एक नजर अभी कहां कहां बीजेपी और उसके सहयोगी सत्ता में हैं.
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दिल्ली
फरवरी, 2025 के दिल्ली चुनावों में बीजेपी को जबर्दस्त जीत हासिल हुई है. पार्टी ने 27 वर्षों के बाद दिल्ली की सत्ता हासिल की है. इससे पहले दिल्ली में दो बार आम आदमी पार्टी और तीन बार कांग्रेस पार्टी की सरकार रही थी.
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महाराष्ट्र
महाराष्ट्र में बीजेपी के देवेंद्र फडणवीस मुख्यमंत्री हैं. इससे पहले शिवसेना से अलग हुए एकनाथ शिंदे राज्य के मुख्यमंत्री थे. शिंदे ने शिवसेना से बगावत कर बीजेपी का हाथ थाम लिया था. देवेंद्र फडणवीस तीसरी बार महारष्ट्र के मुख्यमंत्री बने हैं.
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छत्तीसगढ़
लंबे समय से नक्सल के प्रभाव में रहे छत्तीसगढ़ में वर्तमान विधान सभा के चुनाव को ऐतिहासिक बताया गया. राज्य के कई इलाकों में पहली बार लोगों ने वोट डाला. इन चुनावों में बीजेपी को सफलता मिली और विष्णु देव साई राज्य के मुख्यमंत्री बने.
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उड़ीसा
उड़ीसा में कई दशकों से बीजू जनता दल की सरकार थी और मुख्यमंत्री थे नवीन पटनायक. इस बार के चुनाव में बीजेपी ने उनके किले में सेंध लगा दी और सत्ता अपने हाथ में ले लिया. राज्य में अब बीजेपी के मोहन चरण मांझी मुख्यमंत्री की कुर्सी संभाल रहे हैं
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आंध्र प्रदेश
लंबे समय के बाद आंध्र प्रदेश की राजनीति एक बार फिर चंद्रबाबू नायडू के हाथ में है. उनकी पार्टी ने बीजेपी के साथ गठबंधन किया है. राज्य और केंद्र दोनों जगह एनडीए की सरकार है.
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राजस्थान
2023 के विधानसभा चुनाव ने राजस्थान की सत्ता से कांग्रेस पार्टी को बेदखल कर दिया. राज्य में एक बार फिर बीजेपी की सरकार बनी और मुख्यमंत्री की कुर्सी मिली भजन लाल शर्मा को.
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उत्तर प्रदेश
उत्तर प्रदेश में फरवरी-मार्च 2017 में हुए विधानसभा चुनावों में बीजेपी ने अपने सहयोगी दलों के साथ मिलकर ऐतिहासिक प्रदर्शन किया और 403 सदस्यों वाली विधानसभा में 325 सीटें जीतीं. इसके बाद फायरब्रांड हिंदू नेता योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री की गद्दी मिली.
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त्रिपुरा
2018 में त्रिपुरा में लेफ्ट का 25 साल पुराना किला ढहाते हुए बीजेपी गठबंधन को 43 सीटें मिली. वहीं कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (मार्कसिस्ट) ने 16 सीटें जीतीं. 20 साल तक मुख्यमंत्री रहने के बाद मणिक सरकार की सत्ता से विदाई हुई और बिप्लव कुमार देब ने राज्य की कमान संभाली. 2023 के विधानसभा चुनाव के बाद से यहां बीजेपी के माणिक साहा मुख्यमंत्री हैं.
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मध्य प्रदेश
शिवराज सिंह चौहान को प्रशासन का लंबा अनुभव है. उन्हीं के हाथ में अभी मध्य प्रदेश की कमान है. इससे पहले वह 2005 से 2018 तक राज्य के मख्यमंत्री रहे. लेकिन 2018 के विधानसभा चुनाव में पार्टी को हार का सामना करना पड़ा. कांग्रेस सत्ता में आई. दो साल के भीतर शिवराज सिंह चौहान ने सत्ता में वापसी की. 2023 में एक बार फिर पार्टी ने जीत हासिल की लेकिन मुख्यमंत्री की कुर्सी मोहन यादव को मिली.
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उत्तराखंड
उत्तर प्रदेश के पड़ोसी राज्य उत्तराखंड में भी बीजेपी का झंडा लहर रहा है. 2017 के विधानसभा चुनावों में पार्टी ने शानदार प्रदर्शन करते हुए राज्य की सत्ता में पांच साल बाद वापसी की. त्रिवेंद्र रावत को बतौर मुख्यमंत्री राज्य की कमान मिली. लेकिन आपसी खींचतान के बीच उन्हें 09 मार्च 2021 को इस्तीफा देना पड़ा. जुलाई 2021 से पुष्कर सिंह धामी ने राज्य की कमान संभाली 2022 के चुनाव के बाद भी पद पर हैं.
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बिहार
बिहार में नीतीश कुमार एनडीए सरकार का नेतृत्व कर रहे हैं. कई बार पाला बदल चुके नीतीश कुमार वर्तमान में बीजेपी के साथ हैं. 2024 का लोकसभा चुनाव भी दोनों पार्टियों ने साथ मिल कर लड़ा था.
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गोवा
गोवा में प्रमोद सावंत बीजेपी सरकार का नेतृत्व कर रहे हैं. उन्होंने मनोहर पर्रिकर (फोटो में) के निधन के बाद 2019 में यह पद संभाला. 2017 के विधानसभा चुनाव के बाद पर्रिकर ने केंद्र में रक्षा मंत्री का पद छोड़ मुख्यमंत्री पद संभाला था. 2022 के चुनाव के बाद एक बार फिर प्रमोद सावंत राज्य के मुख्यमंत्री बने
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गुजरात
गुजरात में 1998 से लगातार भारतीय जनता पार्टी की सरकार है. प्रधानमंत्री पद संभालने से पहले नरेंद्र मोदी 12 साल तक गुजरात के मुख्यमंत्री रहे. फिलहाल राज्य सरकार की कमान बीजेपी के भूपेंद्रभाई पटेल (तस्वीर में बाएं) के हाथ में है.
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मणिपुर
पूर्वोत्तर के राज्य मणिपुर में 2017 में पहली बार बीजेपी की सरकार बनी है जिसका नेतृत्व पूर्व फुटबॉल खिलाड़ी एन बीरेन सिंह कर रहे हैं. वह राज्य के 12वें मुख्यमंत्री हैं. इस राज्य में भी कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी होने के बावजूद सरकार नहीं बना पाई.
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हरियाणा
बीजेपी के नायब सिंह सैनी हरियाणा में मुख्यमंत्री हैं. 2024 में पार्टी की जीत के बाद राज्य में नेतृत्व बदला. इससे पहले बीजेपी के मनोहर लाल खट्टर 10 साल तक हरियाणा में मुख्यमंत्री थे
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असम
असम में बीजेपी के हिमंता बिस्व सरमा मुख्यमंत्री हैं. 2016 में हुए राज्य विधानसभा चुनावों में भाजपा ने 86 सीटें जीतकर राज्य में एक दशक से चले आ रहे कांग्रेस के शासन का अंत किया. इसके बाद 2021 में एक बार फिर पार्टी को राज्य में सफलता मिली.
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अरुणाचल प्रदेश
अरुणाचल प्रदेश में पेमा खांडू मुख्यमंत्री हैं जो दिसंबर 2016 में भाजपा में शामिल हुए. सियासी उठापटक के बीच पहले पेमा खांडू कांग्रेस छोड़ पीपुल्स पार्टी ऑफ अरुणाचल प्रदेश में शामिल हुए और फिर बीजेपी में चले गए.
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नागालैंड
नागालैंड में फरवरी 2018 में हुए विधानसभा चुनावों में एनडीए की कामयाबी के बाद नेशनलिस्ट डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी (एनडीपीपी) के नेता नेफियू रियो ने मुख्यमंत्री पद संभाला. इससे पहले भी वह 2008 से 2014 तक और 2003 से 2008 तक राज्य के मुख्यमंत्री रहे हैं.
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मेघालय
2018 में हुए राज्य विधानसभा चुनावों में कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बनने के बावजूद सरकार बनाने से चूक गई. एनपीपी नेता कॉनराड संगमा ने बीजेपी और अन्य दलों के साथ मिल कर सरकार का गठन किया. कॉनराड संगमा पूर्व लोकसभा अध्यक्ष पीए संगमा के बेटे हैं.
तस्वीर: IANS
सिक्किम
सिक्किम की विधानसभा में भारतीय जनता पार्टी का एक भी विधायक नहीं है. लेकिन राज्य में सत्ताधारी सिक्किम डेमोक्रेटिक फ्रंट राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन का हिस्सा है. इस तरह सिक्किम भी उन राज्यों की सूची में आ जाता है जहां बीजेपी और उसके सहयोगियों की सरकारें हैं.
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मिजोरम
मिजोरम में मिजो नेशनल फ्रंट की सरकार है. वहां जोरामथंगा मुख्यमंत्री हैं. बीजेपी की वहां एक सीट है लेकिन वो जोरामथंगा की सरकार का समर्थन करती है.
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2019 की टक्कर
इस तरह भारत के कुल 28 राज्यों में से 21 राज्यों में भारतीय जनता पार्टी या उसके सहयोगियों की सरकारें हैं. बीते साल राष्ट्रीय चुनाव में बीजेपी को पूर्ण बहुमत नहीं मिला और उसे गठबंधन सरकार बनानी पड़ी लेकिन फिर भी राष्ट्रीय स्तर पर प्रधानमंत्री मोदी की लोकप्रियता के आगे कोई नहीं टिकता.
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नरेंद्र मोदी के लिए सत्ता की चाबी देने वाला राज्य उत्तर प्रदेश ही था. यूपी से बीजेपी को 80 में से 73 सीटें मिली. नोटबंदी होने के बाद हुए उत्तर प्रदेश विधानसभा के चुनाव में बीजेपी को बड़ी जीत मिली. हालांकि इस बार यूपी की दो मुख्य पार्टियां सपा और बसपा गठबंधन कर मैदान में उतर रही हैं. ऐसे में सबसे बड़ी चुनौती बीजेपी को उत्तर प्रदेश में ही मिलने वाली है.
पाकिस्तान के ऊपर हुई एयर स्ट्राइक के बाद से नरेंद्र मोदी का चुनाव अभियान तेजी से गति पकड़ गया है. भाजपा इस चुनाव को अब राष्ट्रवाद और पाकिस्तान के मुद्दे पर ही लड़ना चाह रही है. मोदी का कहना है कि इस एयर स्ट्राइक पर जो विपक्षी दल सवाल उठा रहे हैं वो पाकिस्तान के समर्थक हैं. मोदी भारत में पाकिस्तान विरोधी भावना को भुनाने की पूरी कोशिश कर रहे हैं.
वहीं विपक्षी दल अभी इस मुद्दे पर तय नहीं कर पा रहे हैं कि इसका जवाब कैसे देना हैं. ऐसे में विपक्षी पार्टियां दूसरे मुद्दों पर ही चुनाव को लाना चाह रही हैं. इकोनॉमिक टाइम्स के संपादक टीके अरुण ने अपने एक कॉलम में लिखा था कि मोदी के पास ये कौशल है कि वो पाकिस्तान जाकर आने के बाद भी अपनी राष्ट्रवादी छवि को कायम रखने में कामयाब रहे हैं.