1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

नया जनादेश पाने की जुगत में नरेंद्र मोदी

११ मार्च २०१९

रविवार 10 मार्च को भारत में लोकसभा चुनावों की तारीखों की घोषणा हो गई. पुलवामा आतंकी हमले के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच हुई तनातनी के बीच ये चुनाव और भी रुचिकर हो गया है.

Narendra Modi
तस्वीर: Getty Images/AFP/M. Sharma

भारत में 11 अप्रैल से 19 मई तक सात चरणों में मतदान होगा और 23 मई को नतीजे आएंगे. नरेंद्र मोदी की अगुवाई में बीजेपी पाकिस्तान और राष्ट्रवाद के ऊपर अपने चुनाव प्रचार को केंद्रित करना चाह रही है. वहीं कांग्रेस और दूसरी विपक्षी पार्टियां अर्थव्यवस्था और दूसरे मुद्दों पर सरकार को घेरने की फिराक में हैं.

बीजेपी 2014 की प्रचंड जीत की 2019 में पुनरावृत्ति करने की कोशिश में है. हालांकि 2019 के चुनाव में कांग्रेस और बीजेपी के अलावा क्षेत्रीय पार्टियों के गठबंधन भी अहम भूमिका निभाने वाले हैं. नरेंद्र मोदी 2014 की तरह ही गरीब चायवाले की छवि को ही आगे लेकर चलने की कोशिश में हैं. वो राहुल गांधी के गांधी-नेहरू परिवार से आने की वजह से राहुल पर वंशवाद, उनकी मां के इतालवी मूल पर भी सवाल कर उसे भुनाने की कोशिश करेंगे.

चुनाव के ऐलान के बाद आए ओपिनियन पोल में भाजपा की लोकप्रियता में गिरावट सीधे-सीधे दिखाई दे रही है. वो 272 सीटों के जादुई आंकड़े से दूर दिखाई दे रही है. ऐसे में बीजेपी को गठबंधन के साथियों की जरूरत होगी. इसका मतलब ये एक त्रिशंकु लोकसभा हो सकती है और मोदी की विदाई भी हो सकती है.

तीन राज्यों में मिली जीत से उत्साह में है कांग्रेसतस्वीर: DW/S. Mishra

सेंटर फॉर पॉलिसी अल्टरनेटिव्स के मोहन गुरुस्वामी का कहना है,"अगर बीजेपी 272 सीटों का आंकड़ा नहीं छू पाती है तो यह मोदी की विदाई का कारण साबित होगा." इसके पीछे दलील यह दी जाती है कि भाजपा के हिंदुत्ववादी एजेंडे के चलते सेक्युलर विचारधारा वाले दल बीजेपी के साथ आने में कतराएंगे. साथ ही, अगर कोई दल साथ आने को तैयार होता है तो मोदी के सख्त प्रशासक और अकेले फैसले लेने वाली छवि के चलते उनके नाम पर सहमति बनना मुश्किल है. ऐसे में मोदी के नेतृत्व में बीजेपी ऐसा गठबंधन नहीं बना पाएगी जिससे सत्ता हासिल हो सके.

दिसंबर, 2018 में हुए पांच राज्यों के चुनावों में से हिंदी पट्टी के तीन राज्यों राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीगढ़ में बीजेपी को हराने के बाद कांग्रेस के हौसले बुलंद हैं. अब राहुल गांधी नरेंद्र मोदी के सामने एक चुनौती बनकर उभरे हैं. भारत में हिंदी पट्टी के सब राज्यों की जनसंख्या करीब 47.5 करोड़ है. ये अमेरिका, मेक्सिको और कनाडा की कुल जनसंख्या के बराबर है और यही बीजेपी का कोर वोट है.

इस हार का कारण कृषि के क्षेत्र और युवाओं को नौकरियां देने में मोदी सरकार की असफलता माना गया. भारत में पिछले कुछ सालों में हजारों किसानों ने आत्महत्या की है. साथ ही राहुल गांधी बार-बार नरेंद्र मोदी पर फ्रांस के साथ हुई राफाल डील में अनिल अंबानी की मदद कर भ्रष्टाचार का आरोप लगा रहे हैं. राफाल डील में भ्रष्टाचार के आरोप भी मोदी सरकार के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकते हैं.

अखिलेश यादवतस्वीर: Imago/Hindustan Times

जवाहर लाल नेहरू विश्विद्यालय में प्रोफेसर गुरप्रीत महाजन कहती हैं," 2019 का चुनाव मोदी सरकार के पांच साल के काम की समीक्षा होगी. ये जनमत तय करेगा कि क्या नरेंद्र मोदी ने अपने वादों को पूरा किया है या नहीं."

नरेंद्र मोदी दशकों बाद भारत की राजनीति में लोकप्रिय नेता बनकर सामने आए हैं. नरेंद्र मोदी हिंदुवादी संगठन आरएसएस से निकलकर भारत की सत्ता के शीर्ष तक पहुंचे हैं. हालांकि बीजेपी पर धार्मिक ध्रुवीकरण की राजनीति का आरोप लगता रहा है. 1992 में बाबरी मस्जिद गिराए जाने के बाद से बीजेपी पर ये आरोप लगाए जाते रहे हैं.

एक अमेरिकी गुप्तचर संस्था की रिपोर्ट में चेतावनी जारी की गई कि 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी हिंदू राष्ट्रवाद की नीति के चलते ध्रुवीकरण करने के लिए धार्मिक भावनाएं भड़काने की कोशिश कर सकती है.

भारत में अब करीब 83 करोड़ मोबाइल हैं. ऐसे में यह चुनाव मोबाइल आधारित सूचनाओं पर भी निर्भर करेगा. चुनाव प्रचार में अफवाह और फेक न्यूज का धड़ल्ले से इस्तेमाल किया जाएगा. और यह सब राजनीतिक दलों द्वारा भी किया जाएगा.

नरेंद्र मोदी के लिए सत्ता की चाबी देने वाला राज्य उत्तर प्रदेश ही था. यूपी से बीजेपी को 80 में से 73 सीटें मिली. नोटबंदी होने के बाद हुए उत्तर प्रदेश विधानसभा के चुनाव में बीजेपी को बड़ी जीत मिली. हालांकि इस बार यूपी की दो मुख्य पार्टियां सपा और बसपा गठबंधन कर मैदान में उतर रही हैं. ऐसे में सबसे बड़ी चुनौती बीजेपी को उत्तर प्रदेश में ही मिलने वाली है.

पाकिस्तान के ऊपर हुई एयर स्ट्राइक के बाद से नरेंद्र मोदी का चुनाव अभियान तेजी से गति पकड़ गया है. भाजपा इस चुनाव को अब राष्ट्रवाद और पाकिस्तान के मुद्दे पर ही लड़ना चाह रही है. मोदी का कहना है कि इस एयर स्ट्राइक पर जो विपक्षी दल सवाल उठा रहे हैं वो पाकिस्तान के समर्थक हैं. मोदी भारत में पाकिस्तान विरोधी भावना को भुनाने की पूरी कोशिश कर रहे हैं.

वहीं विपक्षी दल अभी इस मुद्दे पर तय नहीं कर पा रहे हैं कि इसका जवाब कैसे देना हैं. ऐसे में विपक्षी पार्टियां दूसरे मुद्दों पर ही चुनाव को लाना चाह रही हैं. इकोनॉमिक टाइम्स के संपादक टीके अरुण ने अपने एक कॉलम में लिखा था कि मोदी के पास ये कौशल है कि वो पाकिस्तान जाकर आने के बाद भी अपनी राष्ट्रवादी छवि को कायम रखने में कामयाब रहे हैं.

आरकेएस/एनआर(एएफपी)

डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी को स्किप करें

डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी

डीडब्ल्यू की और रिपोर्टें को स्किप करें

डीडब्ल्यू की और रिपोर्टें