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नया साल में मुश्किल भरा होगा सूर्य का सफर

३० दिसम्बर २०१०

आने वाला साल अंतरिक्ष के मौसम के लिए बेहद अहम रहने वाला है क्योंकि सूर्य कम गतिविधियों वाले दौर से निकल कर एक विघटनकारी दौर में घुसने वाला है. इस दौर का लंबे समय से इंतजार किया जा रहा था.

तस्वीर: AP

बहुत से लोगों को ये जान कर हैरानी होगी कि सूर्य के भीतर लगातार जलते रहने की प्रक्रिया चलती रहती है. इस प्रक्रिया में कभी ये ज्वाला कमजोर और मजबूत होती है. दो सौ सालों तक सूर्य के धब्बों पर रिसर्च करने के बाद पता चला है कि सूर्य पर मौजूद काले धब्बे जो दूसरे धब्बों की तुलना में थोड़े ठंडे होते हैं दरअसल मजबूत चुम्बकीय ताकतों से जुड़े होते हैं. इसके साथ ही ये भी बता चला कि हमारे सभी तारों का व्यवहार एक चक्र के हिसाब से बदलता रहता है. इस चक्र की आयु 11 साल होती है.

तारों के व्यवाहर का सबसे नया चक्र 1996 में शुरु हुआ लेकिन अनजान वजहों से ये तय समय पर खत्म न होकर आगे बढ़ता चला गया. जानकारों के मुताबिक अब इस बात के संकेत मिल रहे हैं कि ये चक्र पूरा होने को है और जल्दी ही नया चक्र भी शुरू होगा.नासा के अंतरिक्ष मौसम विभाग से जुड़े जो कुंचेज ने बताया,"ताजा भविष्यवाणी बताती है कि ज्यादा से ज्यादा 2013 के मध्य तक ये सौर चक्र पूरा हो जाएगा. इसका मतलब है कि ढाई सालों तक ये बना रहेगा और इस दौरान सूर्य बेहद सक्रिय रह सकता है."

तस्वीर: picture-alliance/dpa

सूर्य अगर ज्यादा सक्रिय और आक्रामक रहा तो ये ज्यादा से ज्यादा विद्युत चुम्बकीय विकिरण पैदा करेगा. इन किरणों को धरती पर पहुंचने में कई दिन लगेंगे लेकिन यहां पहुंचने के बाद ये पृथ्वी के चुम्बकीय घेरे पर दबाव बढ़ा देंगे. इससे भारी ऊर्जा पैदा होगी. इस ऊर्जा को रोशनी के रूप में देखा भी जा सकता है. रोशनी की इन्हीं किरणों को उत्तरी लाइट और दक्षिणी लाइट कहते हैं.

पर सबकुछ अच्छा ही नहीं हैं. विद्युत चुम्बकीय किरणें इलेक्ट्रॉनिक चीजों पर भी असर डाल सकती हैं खासतौर से इंटरनेट से जुड़े रहने वाले लोगों के कामकाज पर इसका असर होगा. इसके साथ ही बेहद आवेशित प्रोटॉन्स की भी बारिश हो सकती है जो सूर्य से निकलने के बाद कुछ ही मिनटों में पृथ्वी पर पहुंच जाएंगे. हालांकि इसका खतरा थोड़ा कम है. इन किरणों के सामने सबसे पहले आएंगे संचार उपग्रह, इसके बाद जीपीएस उपग्रह जो आधुनिक विमानों और जहाजों को रास्ता दिखाते हैं. इन उपग्रहों की उंचाई 36,000 किलोमीटर से 20,000 किलोमीटर के बीच होती है.

तस्वीर: AP

जनवरी 1994 में इन्ही आवेशित कणों ने पांच महीने पुराने कनाडा के संचार उपग्रह अनीक ई 2 को खत्म कर दिया था. अप्रैल 2010 में इन्टेलसैट भी इन्हीं कणों का शिकार हुआ और जमीन से इसका संपर्क टूट गया.

सूर्य से आवेशित कणों की बारिश से बचने के लिए उपग्रह बनाने वाले कई तरह के कवच का इस्तेमाल कर रहे हैं और इसके कारण उपग्रहों का वजन बढ़ जाता है ऐसे में इनके प्रक्षेपण का खर्च ज्यादा होता है. इसके अलावा उपग्रहों में अतिरिक्त मशीनें भी लगाई जाती हैं ताकि एक के खराब होने पर दूसरा काम कर सके.

ये तो हुई उपग्रहों की बात पृथ्वी पर मौजूद, बिजली की लाइनें, तेल और गैस की पाइप लाइन और संचार की लाइनों को भी इन आवेशित कणों से खतरा रहता है.

1989 में एक ऐसी ही एक घटना में कनाडा के हाइड्रो क्यूबेक जेनरेटर ने काम करना बंद कर दिया जिसकी वजह से साठ लाख लोगों को 9 घंटे से ज्यादा देर तक बगैर बिजली के रहना पड़ा. इस तरह के आवेशित कणों की कोई भारी बारिश कैटरीना तूफान से भी ज्यादा विनाशकारी हो सकती है.

रिपोर्टः एजेंसियां/एन रंजन

संपादनः ओ सिंह

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