नर कंकाल और हड्डियों की तस्करी का केंद्र बनता बंगाल
२२ मार्च २०१७
पश्चिम बंगाल के बर्धमान जिले के एक गांव से पुलिस ने 18 नर कंकाल और हड्डियां बरामद की हैं. पुलिस ने इस मामले में चार संदिग्ध तस्करों को गिरफ्तार किया है. बरामद हुए कंकाल और हड्डियां कब्र खोदकर निकाली गयी मानी जा रही हैं.
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पुलिस ने बर्धमान जिले के इस गांव में धुली हुई साफ हड्डियां भी जब्त की हैं और तस्कर गिरोह के चार सदस्यों को गिरफ्तार किया है. पश्चिम बंगाल के सहायक पुलिस प्रमुख अनुज शर्मा ने इसमें अंतरराष्ट्रीय तस्करी गिरोहों के शामिल होने का शक जताया है. उन्होंने बताया, "इन धुले हुए और साफ सुथरे मानव कंकालों की तस्करी और बेचने की पूरी तैयारी थी और ये मानव कंकाल विदेश भेजे जाने वाले कंकालों के समूह का एक हिस्सा थे."
जांचकर्ताओं ने इन कंकालों का बड़ा भंडार तैयार करने वालों की पहचान भी की है. पुलिस को संदेह है कि इन्हें मुस्लिम बहुल जिलों की कब्रों से चुराया गया था.
2006 में पुलिस ने यहां 20 से अधिक कंकाल बरामद किए थे, जिसके बाद कब्रों की सुरक्षा को लेकर गांव में हिंसा भी भड़की थी. स्थानीय लोग हथियारबंद सुरक्षाकर्मियों द्वारा कब्रिस्तानों की सुरक्षा की मांग कर रहे थे. इस घटना के एक साल बाद ही इसी जिले से 50 मानव कंकाल बरामद किए गए थे.
मानवाधिकार समूहों के दबाव के कारण सन 1985 में भारत में मानव हड्डियों के व्यापार पर प्रतिबंध लगाया दिया गया था. तब तर्क दिया गया था कि ऐसा करना मानवता के बुनियादी सिद्धांतों का उल्लंघन है. लेकिन इस प्रतिबंध के कारण देश में मानव हड्डियों के गैरकानूनी व्यापार को बढ़ावा मिल गया.
कब्रिस्तान में खुदाई से खुले ये राज
दक्षिण इस्राएल के एक कब्रिस्तान में खुदाई से मिले कंकाल सदियों पुरानी मान्यता को चुनौती दे रहे हैं. बाइबल में लिखा है कि प्राचीन फिलीस्तीन के लोग सभ्य नहीं थे जबकि फिलीस्तीनी कब्रिस्तान के कंकाल कुछ और ही कहानी कहते हैं.
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इस्राएल के ऐशकेलॉन शहर में मौजूद एक कब्रिस्तान में करीब 30 सालों के खुदाई के काम को अंजाम देने वाले रिसर्चर बताते हैं कि यहां की बलुई मिट्टी में मिले फिलीस्तीनी लोगों के कंकालों के पास गहने, वाइन और टेराकोटा की इत्र की बोतलें मिलीं हैं जो उनकी प्राचीन सभ्यता के सबूत हैं. और फिलीस्तीनियों को असभ्य माने जाने की धारणा पर सवाल खड़े करता है.
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बुक ऑफ सैमु्अल में प्राचीन फिलीस्तीन के गोलिएथ को एक "दैत्याकार योद्धा" बताया गया है, जिसे इस्राएल के यहूदी किंग डेविड ने मारा था. करीब तीन हजार साल पहले बेबिलोनिया का सेना के आक्रमण में फिलीस्तीन मिट गया था. अब तक फिलीस्तीनियों के बारे में केवल वही सब पता था जो ओल्ड टेस्टामेंट में उनके पड़ोसी और दुश्मनों यानि प्राचीन इस्राएलियों ने लिखा था.
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फिलीस्तीनी लोग आखिर थे कौन? पता चला है कि ये व्यापारी और समु्द्री यात्री थे और इंडो-यूरोपीयन मूल की भाषाएं बोलते थे. इनमें खतना नहीं होता था और ये सूअर से लेकर कुत्ते तक सब कुछ खाते थे. इसके सबूत ऐशकेलॉन के अलावा चार अन्य फिलीस्तीनी साइटों गाजा, गाथ, ऐशडोड और एकरॉन में मिले हैं. इनका जीवन कठिनाइयों में बीता.
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इस कब्रिस्तान की खुदाई का काम 1985 में लियॉन लेवी इक्सपीडिशन के तौर पर हार्वर्ड युनिवर्सिटी के सेमेटिक म्युजियम और कुछ अन्य संस्थानों के सहयोग से शुरु हुआ था. यहां मिले 145 शवों के अवशेषों से सिर्फ उस वक्त के अंतिम संस्कार के तरीकों का ही पता नहीं चलता बल्कि उनकी हड्डियों की जांच से उनके जीवन से भी पर्दा उठता है.
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कंकाल की हड्डियों की डीएनए, रेडियोकार्बन और अन्य एडवांस तरीकों की जांच हो रही है. ऐशकेलॉन में ऐसी पहली कब्र के बारे में 2013 में पता चला था. ऐशकेलॉन शहर प्राचीन फिलीस्तीनी बंदरगाह वाला शहर था, जहां कभी 13,000 लोग रहा करते थे. आज यह क्षेत्र दक्षिण इस्राएल के एक लोकप्रिय राष्ट्रीय पार्क में पड़ता है.
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इन लोगों के शवों के पास से मिले लाल और काले रंग के बर्तन देखकर पता चला है कि वे एजियन सी में प्राचीन यूनान और मध्यपूर्व के नगर और सभ्यताएं जब नष्ट हो रही थीं तो ये उस कांस्य युगीन सभ्यता से आये थे. सन 1200 से ईसा पूर्व 600 तक आज के गाजा इलाके से तेल अवीव के बीच की समुद्री पट्टी में इनके बसे होने के साक्ष्य मिले हैं.
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ऐशकेलॉन के इस 3,000 साल पुराने कब्रिस्तान में लगभग 200 लोगों की हड्डियां मिली हैं. फिलीस्तीनी लोगों के बारे में आज तक की सबसे सही जानकारी इन हड्डियों के रेडियोकार्बन डेटिंग और यहां मिले बर्तनों की जांच से ही मिलेगी. धार्मिक मान्यताओं और पौराणिक कहानियों के कई किरदारों और घटनाओं से पर्दा उठने का इंतजार जारी है.
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प्रतिबंध के पहले कई गरीब परिवार, अंतिम क्रिया-कर्म के खर्चे से बचने के लिये तस्करों को लाश बेच देते थे. वहीं कुछ तस्कर मुर्दाघरों से चंद हजार रुपयों में लावारिस लाशों को आसानी से खरीद लेते थे. लेकिन अब पश्चिम बंगाल इस अवैध व्यापार का बड़ा केंद्र बन गया है.
भारत से हर साल हजारों मानव कंकालों को तस्करी कर नेपाल, चीन और बांग्लादेश भेजा जाता है. कई बार इन कंकालों को अमेरिका, जापान, यूरोप और मध्यपूर्व भी भेजा जाता हैं जहां इनका इस्तेमाल मेडिकल कॉलेजों में होता है. कुछ कंकाल चीन भी भेजे जाते हैं. चीन में इनका कई तरह की दवाइयां बनाने में इस्तेमाल किया जाता है. वहीं भारत में भी काला जादू करने वाले और तंत्र मंत्र में नर-कंकालों को उपयोग में लाया जाता है.
पिछले कुछ सालों के दौरान पुलिस ने ऐसे हजारों नर-कंकाल और मानव खोपड़ियां पश्चिम बंगाल, बिहार और झारखंड से बरामद की हैं. पुलिस ने साल 2004 में बिहार के गया जिले में फलगू नदी के किनारे तकरीबन 1,000 नर खोपड़ियां बरामद की थीं.
साल 2009 में पुलिस ने बिहार के छपरा जिले की एक बस से 67 मानव खोपड़ियों के साथ एक तस्कर को गिरफ्तार किया था. इस घटना के एक महीने पहले पुलिस ने पश्चिम बंगाल के सिलिगुड़ी जिले में एक तस्कर के पास से 27 मानव खोपड़ियां और तकरीबन 100 हड्डियां बरामद की थीं.
एए/आरपी (एएफपी)
तस्करों की कमर तोड़ेंगी ये 5 चीजें
ग्लोबल स्लेवरी इंडेक्स के अनुसार करीब 4.58 करोड़ लोग गुलामी झेल रहे हैं. दुनिया में मानव तस्करी का सालाना कारोबार 150 अरब डॉलर का है. मानव तस्करी और आधुनिक गुलामी को मिटाने के लिए कैसे प्रभावी हथियार मौजूद हैं, देखिए..
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शिकायत करने की तकनीक
तकनीकी विकास और वैज्ञानिक खोजें इस समय तस्करों पर नजर रखने, उनका पता लगाने और उन्हें सजा दिलाने में कारगर साबित हो रही हैं. अमेरिकी साफ्टवेयर कंपनी 'लेबरवॉयस' के माध्यम से फैक्ट्रियों में काम करने वाले लोग गुमनाम रहते हुए अपने मोबाइल फोन से किसी तरह के दुर्व्यवहार, असुरक्षा, बाल मजदूरी या वेतन से जुड़ी शिकायत कर सकते हैं.
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अवैध तस्करी को रोकने वाले फिंगरप्रिंट
ऐसे टूल विकसित किए गए हैं जिनसे उद्योगों के कच्चे माल से लेकर कीमती चीजों की तस्करी को भी डीएनए फिंगरप्रिंटिंग तकनीक से ट्रैक किया जा सकेगा. तकनीकों के कारण बड़ी से बड़ी कंपनियां पर कच्चे माल की अपनी सप्लाई चेन में ईमानदारी बरतने और उसमें आधुनिक गुलामों से काम ना करवाने का दबाव होगा.
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कानूनों का सहारा
कई नए कानून मानव तस्करी और गुलामी में कमी लाने की दिशा में बड़े बदलावों का रास्ता खोल सकते हैं. 2017 में भारत में एंटी-ट्रैफिकिंग बिल पर हस्ताक्षर होने हैं. इसमें कई मौजूदा कानूनों को मिलाने और तस्करी के शिकार बने लोगों को अपराधी मानने की बजाए पीड़ित समझकर उनकी मदद करने के प्रावधान हैं. ग्लोबल स्लेवरी इंडेक्स के अनुसार दुनिया में सबसे ज्यादा लोगों से भारत में ही गुलामी करवाई जाती है.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/D. Alangkara
शिक्षा और जागरुकता
भारत में साल 2016 में आधुनिक गुलामी के शिकार लोगों की संख्या 1.8 करोड़ के आसपास आंकी गई है. दिसंबर में भारत के राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने बाल मजदूरी को खत्म करने का जोर शोर से आह्वान किया. शिक्षा के साथ साथ सार्वजनिक, सरकारी और कार्पोरेट जगत में इस तरह की ट्रेनिंग दी जानी चाहिए जिससे हर स्तर पर लोगों को गुलामी और तस्करी के प्रति जागरुक किया जा सके.
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आंकड़ों की ताकत पहचानना
एक्सपर्ट मानव गुलामी के खिलाफ लड़ाई की तुलना 1980 के दशक में एचआईवी/एड्स से निपटने के प्रयासों से करते हैं. एड्स की तर्ज पर ही पहले गुलामी से जुड़ी धारणा को बदलना जरूरी है. लोगों की पहचान से जुड़े आंकड़े जमा करना, तस्करी के खिलाफ 'मास्टर प्लान' बनाना और इसमें नागरिकों की सक्रिय भागीदारी होना सबसे अहम है. (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन)