अफगानिस्तान के बाद म्यांमार दुनिया का सबसे बड़ा अफीम उत्पादक देश है. संयुक्त राष्ट्र ने चेतावनी दी है कि म्यांमार में बढ़ रहे अपराध का देश के विकास पर खराब असर पड़ रहा है.
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नशे और नकली दवाओं की तस्करी के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र ने सरकार के साथ नया समझौता किया है. म्यांमार दक्षिण पूर्वी एशिया में नकली दवाओं का सबसे बड़ा उत्पादक है. देश में नशे की समस्या और बढ़ रहे अपराध से निपटने के लिए सरकार ने संयुक्त राष्ट्र के ड्रग्स एवं अपराध कार्यालय यूएनओडीसी के साथ ऐतिहासिक समझौता किया है. यूएओडीसी के स्थानीय प्रतिनिधि जेरेमी डगलस ने बताया कि विभाग के बयान के मुताबिक, "म्यांमार में बढ़ रहा अपराध यहां के विकास को बुरी तरह प्रभावित कर रहा है, इससे मानव सुरक्षा और शांति प्रक्रिया को खतरा है."
यूएनओडीसी के साथ म्यांमार सरकार का नया कार्यक्रम देश में 2017 तक काम करेगा. इसके तहत अंतरदेशीय संगठित अपराध की रोकथाम, भ्रष्टाचार विरोधी कार्यक्रम, आपराधिक मामलों में न्याय और अफीम के किसानों के लिए अन्य विकल्पों जैसी अहम बातों पर ध्यान दिया जाएगा.
म्यांमार दसियों सालों तक सैन्य अधिकार में था. सत्ता बदल जाने के बाद देश में व्यापक परिवर्तन आए. कई प्रतिबंधों के समाप्त हो जाने पर बाजार में विदेशी निवेश की बाढ़ सी आ गई. लेकिन युद्ध से प्रभावित म्यांमार की थाइलैंड, भारत और चीन से लगी सीमाओं पर आज भी बड़े स्तर पर तस्करी होती है.
यूएनओडीसी के बयान में कहा गया है कि म्यांमार की सरहदों पर कई तरह की तस्करी से जमा किया गया गैर कानूनी धन अर्थव्यवस्था को प्रभावित करता है, सरकारी अधिकारियों को भ्रष्ट बनाता है और देश में अस्थिरता पैदा करता है.
2013 में म्यांमार में अफीम की करीब 870 टन पैदावार हुई जो पिछले एक दशक में सबसे ज्यादा थी. अफीम के खेतों का विस्तार कई इलाकों में विद्रोहियों ने सरकार के खिलाफ जा कर किया है. म्यांमार से मेथाम्पटामीन्स दवाओं की पड़ोसी देशों में तस्करी भी जोर शोर पर होती रही है. इस साल जून में पकड़ी गई करीब 13 करोड़ डॉलर की कीमत की दवाओं को वर्ल्ड ड्रग्स डे पर आग लगा दी गई. इनमें 1.3 टन अफीम, 225 किलो हेरोइन और 1.2 टन मेथाम्प्टामीन्स थीं. अधिकारियों के मुताबिक हाल में उन्होंने गोल्डेन ट्राएंगल इलाके के जंगल में दबाई गई 73 लाख डॉलर की दवाएं पकड़ीं.
एसएफ/एएम (एएफपी)
जंग और जिंदगी के बीच अफगानिस्तान
पुरस्कृत फोटोग्राफर मजीद सईदी की तस्वीरें सालों से जंग की आग में झुलसते अफगानिस्तान के हालात दिखाती हैं.
तस्वीर: Majid Saeedi
नशे में डूबा बचपन
अफगानिस्तान में नशा एक बड़ी समस्या है. बचपन से ही अफीम की लत लगने का खतरा रहता है. नशे के शिकार बच्चों के कोई आधिकारिक आंकड़े नहीं हैं लेकिन संयुक्त राष्ट्र के अनुसार यह संख्या करीब तीन लाख है.
तस्वीर: Majid Saeedi
त्रासदी के खिलौने
काबुल में दो छोटी लड़कियां कृत्रिम हाथ से खेल रही हैं. इस तस्वीर के लिए मजीद सईदी को कई अंतरराष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित किया गया.
तस्वीर: Majid Saeedi
मुझे कहना है
मजीद सईदी ने 16 साल की उम्र में फोटोग्राफी करना शुरू किया. तब से वह लोगों के जीवन के संघर्ष को अपनी तस्वीरों में दिखाते आए हैं. उनकी तस्वीरें श्पीगल, वॉशिंगटन पोस्ट और न्यूयॉर्क टाइम्स जैसी नामचीन पत्रिकाओं में छप चुकी हैं.
तस्वीर: Majid Saeedi
अफगान बच्चे
दसियों सालों से अफगान जंग के साए में जी रहे हैं. सईदी की तस्वीरें उनकी जिंदगी से रूबरू कराती हैं, जैसे यह अफगान बच्चा जो एक धमाके में अपने हाथ खो बैठा.
तस्वीर: Majid Saeedi
दास्तां सुनाते खंडहर
अफगानिस्तान के अतीत की कहानी सिर्फ लोग ही नहीं, देश भर में इमारतों के खंडहर भी सुनाते हैं.
तस्वीर: Majid Saeedi
सावधान!
काबुल में हर सुबह सैनिकों की ट्रेनिंग होती है. जर्मन सेना भी अफगान सेना की ट्रेनिंग में मदद कर रही है. मकसद है कि जब 2014 के अंत में जर्मन सेना अफगानिस्तान से वापसी करे तो अफगान सेना परिस्थितियों का खुद मुकाबला कर सके.
तस्वीर: Majid Saeedi
मुश्किल बचपन
अफगानिस्तान में अच्छी शिक्षा व्यवस्था की भी कमी है. कई बच्चों को परिवार को सहारा देने के लिए बीच में ही पढ़ाई छोड़ कर काम में लगना पड़ता है.
तस्वीर: Majid Saeedi
पढ़ाई मयस्सर नहीं
1979 के बाद से देश में शिक्षा व्यवस्था पर बेहद खराब असर पड़ा. जर्मन सरकार द्वारा 2011 में जारी किए गए आंकड़ों के अनुसार अफगानिस्तान के 72 फीसदी पुरुष और 93 फीसदी महिलाओं को कोई औपचारिक शिक्षा नहीं मिली है.
तस्वीर: Majid Saeedi
गुड़ियां बनाते हाथ
एक मलेशियाई गैर सरकारी संगठन द्वारा दिए जा रहे प्रशिक्षण कार्यक्रम में लड़कियां गुड़ियां बनाना सीख रही हैं. मकसद हैं उन्हें आत्मनिर्भर बनाना.
तस्वीर: Majid Saeedi
तालिबान का बदला
2011 में ओसामा बिन लादेन के मारे जाने के बाद तालिबान हमले में चार लोग मारे गए और 36 घायल हुए. यह तस्वीर इनमें से दो पीड़ितों की है.
तस्वीर: Majid Saeedi
अफगान खेल
अफगानिस्तान में बॉडी बिल्डिंग को पुरुष बेहद पसंद करते हैं. कसरत के बाद आराम करते दो नौजवान.
तस्वीर: Majid Saeedi
जंग की फसल
पिछले तीस सालों ने अफगान जीवन को बहुत प्रभावित किया है. यहां के खेत और खलिहान भी जंग के शिकार हुए हैं.
तस्वीर: Majid Saeedi
मदरसे
2011 की तस्वीर. कंधार के एक मदरसे में पढ़ते बच्चे.
तस्वीर: Majid Saeedi
मारने को तैयार
अफगानिस्तान में कुत्तों की आम लड़ाई लोकप्रिय है. कुत्तों को मुकाबले में लड़ने और मारने का प्रशिक्षण दिया जाता है.
तस्वीर: Majid Saeedi
अलग थलग
मनोवैज्ञानिक बीमारियों से जूझ रहे लोग बाकियों से अलग कई बार आमानवीय परिस्थितियों में रखे जाते हैं. हेरात शहर के एक अस्पताल का दृश्य.
तस्वीर: Majid Saeedi
बदकिस्मती
अकरम ने अपने दोनो हाथ खो दिए. सोने से पहले वह अपने दोनों कृत्रिम हाथ निकाल कर अलग रख देता है. उसके जैसे कई और बच्चे हैं जो ऐसी बदनसीबी को झेल रहे हैं.
तस्वीर: Majid Saeedi
मकसद
मजीद सईदी अपनी तस्वीरों के जरिए समाज के बारे में बहुत सी जरूरी बातें कहने की कोशिश करते हैं. पिछले दिनों पेरिस में उन्हें 2014 के लूकास डोलेगा पुरस्कार से सम्मानित किया गया.