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नस्लवाद और उग्रदक्षिणपंथ पर जर्मनी की आलोचना

२ फ़रवरी २००९

जर्मनी ने पहली बार जेनेवा स्थित संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद में देश में मानवाधिकारों की स्थिति पर रिपोर्ट दी. सरकार का कहना है कि लेखा जोखा अच्छा है तो मानवाधिकार संगठनों ने रिपोर्ट की आलोचना की है.

संरा मानवाधिकार परिषद में जर्मनी में मानवाधिकारों की स्थिति पर चर्चातस्वीर: picture-alliance / dpa / AP / Montage DW

मानवाधिकारों के सरकारी आकलन के अलावा दूसरे आकलनों के साथ इस रिपोर्ट के परिणामों को मानवाधिकार संस्था की वार्षिक रिपोर्ट में शामिल किया जाएगा. मानवाधिकार विशेषज्ञों ने रिपोर्ट की आलोचना की है और ख़ासकर शरणार्थियों के साथ हो रहे व्यवहार की और ध्यान दिलाया है.

दिसंबर 2008 में मानवाधिकार घोषणा की 60 वर्षगांठ समारोह में बोलती जर्मन चांसलर अंगेला मैर्केलतस्वीर: AP

जर्मन सरकार की रिपोर्ट में जिन मुद्दों को उठाया गया है, वे हैं कि सरकार संयुक्त राष्ट्र चार्टर और सामान्य मानवाधिकार घोषणा की गारंटी के लिए क्या कर रही है? नागरिक और राजनीतिक अधिकारों के अलावा सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकारों को किस तरह भेदभाव के बिना लागू किया जा रहा है?

जर्मनी की ओर से विदेश राज्यमंत्री गैरनोट ऐर्लर और गृह राज्यमंत्री पेटर अल्टमायर ने रिपोर्ट पेश की.मानवाधिकार परिषद में रिपोर्ट पर चर्चा से पहले जर्मनी के राजनयिक कोनराड शारिंगर ने कहा कि पिछले सालों में जर्मनी में मानवाधिकारों का लेखा जोखा अच्छा रहा है.

विदेश राज्यमंत्री ऐर्लर ने कहा मानवाधिकारों की सुरक्षा में हर दिन नई चुनौतीतस्वीर: dpa

जर्मनी द्वारा पेश रिपोर्ट पर चर्चा के साथ इस साल होने वाली यूनीवर्सल पेरियॉडिक रिव्यू के लिए मानवाधिकार परिषद की बैठक की शुरुआत हुई है जो 13 फरवरी तक चलेगी. बुधवार को परिषद जर्मनी पर अपनी रिपोर्ट को अंतिम रूप देगी.

सरकारी रिपोर्ट पर हुई चर्चा में कई देशों ने जर्मनी में नस्लवाद और विदेशीविरोधी हिंसा की आलोचना की है. विदेश राज्यमंत्री गैरनोट ऐर्लर ने स्वीकार किया है कि जर्मनी में भी मानवाधिकारों की सुरक्षा में मुश्किलें हैं. उन्होंने कहा है कि सरकार आलोचना को गंभीरता से लेती है.

एमनेस्टी ने की शरणार्थियों की स्थिति की आलोचनातस्वीर: PA/dpa

परिषद में विकासशील देशों का बहुमत है और परिषद के विशेषज्ञ आयोग के सदस्य वोल्फ़गांग हाइन्त्स का कहना है कि ऐसे कई देशों के लिए अपने नागरिकों से जुड़े मुद्दे ख़ास तौर पर दिलचस्प होते हैं.

मानवाधिकार संगठनों ने भी आरोप लगाया है कि जर्मनी की रिपोर्ट को सुंदर बनाकर पेश किया गया है. उनका कहना है कि ख़ासकर आप्रवासन, शरणार्थियों, समानता और ग़रीबी पर मानवाधिकारों की स्थिति को बेहतर बनाकर पेश किया गया है. एमनेस्टी इंटरनैशनल की जिल्के फॉस-काइएक ने आरोप लगाया है कि रिपोर्ट का हक़ीकत से कोई लेना देना नहीं है. यह पहला मौक़ा है कि मानवाधिकार परिषद में जर्मनी को मानवाधिकारों की परीक्षा देनी पड़ रही है.

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