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नहीं गिरी है दिमागों की दीवार

२ अक्टूबर २०१३

आज जर्मनी के एकीकरण की सालगिरह है. एक होने के 23 बाद पूर्वी हिस्से में बुनियादी ढांचे का विकास पूरा हो गया है. लेकिन पूरब और पश्चिम के बहुत से लोगों के बीच पूर्वाग्रह बाकी हैं. वे अपने को एक जैसा नहीं समझते.

तस्वीर: AP

1961 से 1989 तक पूर्वी जर्मनी के लोग अक्षरशः दीवार के अंदर बंद थे, द्वितीय विश्व युद्ध के बाद सोवियत कब्जे वाले पुराने इलाके में कैद. भागना मुमकिन नहीं था. तथाकथित जर्मन जनवादी गणतंत्र (जीडीआर) में समाजवाद कायम करने का इरादा था, लेकिन 1980 के दशक के अंत में यह परीक्षण विफल हो गया.

1989 में जब जर्मनी के दोनों हिस्सों के बीच की सीमा खुली तो लाखों पूर्वी जर्मन पश्चिम जर्मनी गए, आजादी का स्वाद चखने. यात्रा करना और आखिरकार वह सब खरीदना जो जीडीआर में नहीं मिलता था. वे कपड़े दुकानों से गायब हो गए जिनसे पूर्वी जर्मन पहचाने जाते थे, हल्के भूरे रंग के जूते, सिंथेटिक जैकेट या सिल्क के जॉगिंग सूट. इसी तरह हेयर स्टाइल भी बदल गए. एयर ड्रायड हेयर स्टाइल से आधुनिक कटिंग तक. बहुत जल्द ही उस समय ऑसी कहे जाने वाले पूर्व जर्मनों और पश्चिम जर्मनों में अंतर करना संभव नहीं रहा. लेकिन दिल की गहराईयों में अंतर बने रहे, पूर्वाग्रह कायम रहे.

तस्वीर: AFP/Getty Images

पूर्व जर्मनों के पूर्वाग्रह

जनमत शोध संस्थान अलेंसबाख के थोमस पेटरसन के शब्दों में बहुत से पूर्व जर्मन पश्चिम जर्मनों के बारे में सोचते हैं, "वे नकचढ़े हैं, हमेशा धन की सोचते हैं, ब्यूरोक्रैटिक और सतही हैं." 2012 में इस संस्थान के कराए एक सर्वेक्षण के अनुसार पूर्व जर्मनों के मन में पश्चिम जर्मनों की तुलना में ज्यादा पूर्वाग्रह हैं. एक और संस्थान फोरसा ने पाया है कि पूर्व और पश्चिम जर्मनी के लोग अभी भी अपने को एक जनता नहीं मानते.

बीलेफेल्ड यूनिवर्सिटी के समाजशास्त्री आंद्रेयास सिक का कहना है कि पूर्वी जर्मनी के लोग तो अपने को दोयम दर्जे का नागरिक मानते हैं. उन्होंने अपने रिसर्च में पाया है कि पूर्वी जर्मनी के बहुत से लोग वहां की परिस्थितियों को भेदभाव वाला मानते हैं. हालांकि पूर्व जीडीआर की करीब करीब सारी सड़कों और सारे मकानों का जीर्णोद्धार हो चुका है और संरचना को अत्याधुनिक बना दिया गया है, लेकिन लोगों की तनख्वाह पश्चिम जर्मनी के मुकाबले अभी भी 20 फीसदी कम है और पेंशन पश्चिम जर्मनी के मुकाबले 10 फीसदी कम है.

आर्थिक विशेषज्ञों की नजर में इसकी वजह यह है कि पूर्वी जर्मनी में आम तौर पर पश्चिमी कंपनियों के सप्लायरों की कंपनियां हैं. वहां कंपनियों के मुख्यालय शायद ही हैं, जहां आम तौर पर मोटी तनख्वाहों वाले कर्मचारी काम करते हैं. सैकड़ों अरब यूरो के निवेश से भी स्थिति को बदलने में सफलता नहीं मिली है. सिक कहते हैं, "बहुत बड़ी निराशा है."

तस्वीर: picture-alliance/dpa

पश्चिम जर्मनों का पूर्वाग्रह

पश्चिम जर्मनों के मन में भी पूर्व जीडीआर के लोगों के बारे में एक निश्चित छवि बनी हुई है. जनमत सर्वेक्षण करने वाले प्रमुख संस्थानों के पश्चिम में कराए गए सर्वे के अनुसार पूर्वी जर्मनी के लोग असंतुष्ट, संदेह करने वाले और डरने वाले हैं. पश्चिम में रहने वाले सिर्फ 43 फीसदी लोग पूर्वी जर्मनों को काम करने के लिए तैयार और लचीला मानते हैं.

पूरब के पुनर्निर्माण और जर्मन एकता पर होने वाले खर्च को पूरा करने के लिए लगाया गया विशेष कर पश्चिम जर्मन जितनी जल्दी हो सके खत्म कर देना चाहते हैं. हालांकि जब वे इस टैक्स की बात करते हुए अपने को पूरब के भाई बहनों के लिए खर्च करने वाला मानते हैं, तो वे यह भूल जाते हैं कि यह टैक्स पूर्वी जर्मनी के लोग भी चुकाते हैं. यह मामला दिखाता है कि लोगों के दिमाग में एकीकरण अभी होना बाकी है.

वजहें और संभावनाएं

एक दूसरे के बारे में मतभेदों पर समाजशास्त्री आंद्रेयास सिक कहते हैं, "पूरब और पश्चिम के लोगों के बीच दोस्तियों की कमी है, संपर्क और रिश्तों की कमी है, जितना होना चाहिए." लोगों की राय की पड़ताल करने वाले थोमस पेटरसन का कहना है कि इसे एक दूसरे में दिलचस्पी का ना होना नहीं समझा जाना चाहिए, "पश्चिम जर्मनी पूरब से चार गुना बड़ा है." इसमें दूरी की बड़ी भूमिका है कि लोगों की मुलाकात क्यों नहीं होती है. लेकिन एक दूसरे को जानने समझने के लिए समय भी चाहिए.

आंद्रेयास सिक का कहना है कि एकीकरण के बाद की दूसरी और तीसरी पीढ़ी के लोग ज्यादा आशावादी हैं और पूरब और पश्चिम के बीच अधिक समानता देखते हैं. उधर अलेंसबाख के थोमस पेटरसन कहते हैं, "पूरब और पश्चिम के बीच समानता से ज्यादा विषमता देखने वाले लोगों की तादाद पिछले सालों में लगातार कम होती गई है."

इस बीच ऐसे युवा भी हैं जिन्होंने बर्लिन की दीवार या देश का विभाजन देखा ही नहीं है. इसलिए 10 या 15 साल पहले के मुकाबले राय व्यक्त करने में आक्रामकता का पुट नहीं सुनाई देता. लोगों के दिमागों से अंतर कब मिटेगा, यह बताने की हिम्मत सर्वे करने वाले भी जुटा पा रहे. एक बात में पूरब और पश्चिम दोनों ही के लोग हमेशा एकमत रहे हैं, लोगों का बहुमत स्वतंत्र और लोकतांत्रिक देश के रूप में जर्मनी के एकीकरण को खुशी का मौका मानता है.

रिपोर्ट: वोल्फगांग डिक/एमजे

संपादन: निखिल रंजन

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