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नहीं चीख सकेंगे टेनिस खिलाड़ी

२८ जनवरी २०१३

अजारेंका और शारापोवा टेनिस के नियमों में बड़ा बदलाव करवाने जा रही हैं. दरअसल ये दोनों टेनिस खेलते वक्त इतनी जोर जोर से चीखती हैं कि प्रतिद्वंद्वी और दर्शकों को शिकायत होने लगती है. अब कड़े नियम बनाए जा रहे हैं.

तस्वीर: dapd

ऑस्ट्रेलियन ओपन की चैंपियन और नंबर एक खिलाड़ी विक्टोरिया अजारेंका व नंबर दो मारिया शारापोवा के बीच मैच हो तो पास बैठे लोगों को कान में रूई डालने की जरूरत महसूस होने लगती है. दोनों इतना जोर से चीखती हैं कि पूरे मैच में शॉटों की आवाज कम और उनकी आवाजें ज्यादा सुनाई पड़ती हैं.

शारापोवा बहुत ही जोर से चीखती हैं तो अजारेंका की तेज चीख ज्यादा लंबी खिंचती है. कई बार तो अजारेंका की आवाज चीख से ज्यादा तेज कराह जैसी लगती है. उनकी पहली चीख जैसे ही खत्म होने को होती है दूसरी निकल पड़ती है. बेलारूस की अजारेंका और रूस की मारिया शारापोवा की इन चीखों से दूसरे खिलाड़ी खासे झल्लाए हुए हैं.

कई शिकायतों के बाद अब विश्व टेनिस संघ नियमों में बदलाव करने की तैयारी कर रहा है. संघ की प्रमुख स्टेसी एलेस्टर के मुताबिक अधिकारी छोटे 'ग्रुंट-ओ-मीटर' की मदद लेने की तैयारी कर रहे हैं. ग्रुंट-ओ-मीटर आवाज की तीव्रता नापेगा. इसके आधार पर तय कर दिया जाएगा कि खिलाड़ी कितनी ऊंची आवाज में चीख सकते हैं.

प्वांइट जीतने पर भी जोर से चीखती हैं अजारेंकातस्वीर: Reuters

टेनिस अकादमियों में ग्रुंट-ओ-मीटर का इस्तेमाल किया जाने लगा है. डब्ल्यूटीए के मुताबिक खिलाड़ियों की नई पीढ़ी को चीखने से बचने के लिए ट्रेनिंग दी जाएगी. यूएसए टुडे से बातचीत में एलेस्टर ने कहा, "अगर वे आज ऐसा (चीखना) करते हैं तो उन्हें ऐसा करना छोड़ना होगा क्योंकि खेल में एक नियम आने वाला है." डब्ल्यूटीए प्रमुख के मुताबिक चीखने के मामले को मौजूदा नियमों में खेल के दौरान आई बाधा की सूची में डाला जाएगा.

हालांकि नए नियमों से रूस की मारिया शारापोवा और बेलारूस की अजारेंका को कोई फर्क नहीं पड़ेगा. 'ग्रैंडफादर क्लॉज' के तहत नए नियम भविष्य के खिलाड़ियों के लिए बनाए जाएंगे. टेनिस संघ को लगता है कि चीखने के आदी हो चुके खिलाड़ियों की आदत बदलना मुश्किल है, उन्हें तो बस हल्का सुधारा जा सकता है.

ब्रिटेन के अखबार के मुताबिक कुछ महिला खिलाड़ी घायल दरियाई घोड़े की तरह कराहने वाली आवाज निकालती हैं. अखबार के मुताबिक इस ढंग से चीखने की परंपरा की शुरुआत 1980 के दशक में हुई. 1990 के दशक में मोनिका सेलेस को चीखने का चैंपियन कहा जाता था.

वैसे चीख के पीछे कई तरह की दलीलें हैं. कुछ लोग कहते हैं कि चीख के दौरान खिलाड़ी अपनी ऊर्जा एक मुश्त निकाल देते हैं. खुद अजारेंका कहती हैं कि टेनिस सीखने के दौरान उन्हें अपने शॉट मारने के लिए अतिरिक्त ताकत की जरूरत होती थी तब से उन्हें चीखने की आदत पड़ गई. शारापोवा भी पुरानी आदत का हवाला देती हैं. मनोविज्ञानी इसके दूसरे कारण भी बताते हैं. उनके मुताबिक तेज आवाज में चीखना प्रतिद्वंद्वी को चेतावनी देना भी है. जानवर भी झगड़े से पहले एक दूसरे को डराने के लिए जोर से गुर्राते, दहाड़ते और चिंघाड़ते हैं. इंसान भी ऐसा ही करता है. यही वजह है कि किसी को डांटते वक्त या गुस्से में अपने आपको ऊपर रखने के लिए इंसान भी चीखने या जोर से बोलने लगता है.

ओएसजे/एमजे (डीपीए)

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