उत्तर प्रदेश में गंगा किनारे एक के बाद एक कर कई स्थानों पर दफनाए हुए शव मिल रहे हैं. यह शव कोविड-19 से संक्रमित लोगों के हैं या नहीं इस बात की पुष्टि नहीं हुई है, लेकिन शवों का इस तरह नदी किनारे दफना दिया जाना जारी है.
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उत्तर प्रदेश में गंगा नदी में तैरती और उसके किनारे पर रेत में दफनाए गए शवों पर कई मीडिया रिपोर्टों के सामने आने के बाद पुलिस और प्रशासन इसकी जांच और रोकथाम में लग गए हैं. जीपों और नावों में पुलिस लाउडस्पीकरों पर घोषणा करवा रही है कि शवों को नदियों में नहीं डालना है. पुलिस कह रही है, "हम अंतिम संस्कार करने में आपकी मदद करने के लिए तत्पर हैं." लेकिन शवों के मिलने का सिलसिला थम नहीं रहा है.
स्थानीय मीडिया में आई कई खबरों के मुताबिक प्रयागराज में एक बड़े घाट पर रेत में दफनाए हुए करीब 5,000 शव मिले हैं. बारिश और तेज हवा की वजह से शवों के ऊपर डाली गई मिट्टी हट गई. अधिकारियों का कहना है कि वैसे तो नदी किनारे इस तरह शवों को दशकों से दफनाया जा रहा है, पर इस बार महामारी की छाया में इतनी बड़ी संख्या में शवों के मिलने से इस समस्या पर लोगों का ज्यादा ध्यान जा रहा है.
प्रशासन का इनकार
राज्य सरकार के एक प्रवक्ता नवनीत सहगल ने नदियों में इतनी बड़ी संख्या में शवों के मिलने की खबरों को खारिज करते हुए कहा, "मैं शर्त लगा कर कह सकता हूं कि इन शवों का कोविड-19 से कोई लेना देना नहीं है." उनका कहना है कि कुछ गांवों में लोगों के बीच साल में कभी कभी कुछ धार्मिक कारणों की वजह से मृतकों का दाह संस्कार करने की जगह उनके शवों को नदियों में बहा देने या नदी किनारे दफना देने की परंपरा है.
दाह संस्कार करने में लोगों की मदद करने वाली परोपकारी संस्था बंधु महल समिति के सदस्य रमेश कुमार सिंह ने बताया कि ग्रामीण इलाकों में इस समय मृत्यु दर बहुत बढ़ी हुई है. उन्होंने बताया कि लकड़ी की कमी भी हो गई है और अंतिम संस्कार करने का खर्च बहुत बढ़ गया है, इसलिए गरीब लोग शवों को नदी में बहा दे रहे हैं. अंतिम संस्कार का खर्च तीन गुना बढ़ कर 15,000 रुपयों तक पहुंच गया है.
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गांवों में स्वास्थ्य व्यवस्था
ग्रामीण इलाकों में कोविड जांच की व्यवस्था ही नहीं है, इसलिए इस बात की पुष्टि नहीं हो पा रही है कि इतने लोग महामारी की वजह से मरे या किसी और वजह से. कई गांवों में पत्रकारों को मरने वालों के परिवार के सदस्यों ने बताया कि मृतक को कुछ दिनों तक बुखार रहा, फिर सांस फूलने लगी और उसके बाद मृत्यु हो गई. इस तरह के बयानों से इस अनुमान को बल मिल रहा है कि ग्रामीण इलाकों में महामारी का प्रसार प्रशासन की पकड़ में नहीं आ रहा है, लेकिन जब तक इन गांवों में पर्याप्त जांच ना हो तब तक इसकी पुष्टि होना मुश्किल है.
इसी स्थिति को देखते हुए केंद्र सरकार ने कहा है कि ग्रामीण इलाकों में प्राथमिक चिकित्सा केंद्र, उप-केंद्र और अन्य स्वास्थ्य संस्थानों में रैपिड एंटीजन टेस्ट की व्यवस्था की जाए. आशा स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को भी गांवों में स्थिति पर नजर रखने को कहा गया है. थर्मामीटरों और ऑक्सीमीटरों का भी इंतजाम करने को कहा गया है और जिला स्तर पर कम से कम 30 बिस्तरों के कोविड केंद्र बनाने को कहा गया है. अब देखना यह है कि यह सारे इंतजाम कितनी जल्दी शुरू हो पाते हैं. (एपी)
कहीं मदद, कहीं मुनाफाखोरी: त्रासदी के दो चेहरे
भारत में कोरोना की ताजा लहर ने भयावह स्थिति उत्पन्न कर दी है. सरकारी तंत्र नाकाम हो चुका है और आम लोग सरकार की जगह मददगार नागरिकों के भरोसे हैं. ऐसे में त्रासदी में मुनाफाखोरी के अवसर ढूंढने वालों की भी कमी नहीं है.
तस्वीर: ADNAN ABIDI/REUTERS
हाहाकार
कोरोना की ताजा लहर ने पूरे देश पर कहर बरपा दिया है. रोजाना संक्रमण के 3,00,000 से ज्यादा नए मामले सामने आ रहे हैं और रोज 3,000 से ज्यादा कोविड मरीजों की मौत हो जा रही है. दवाओं, अस्पतालों में बिस्तर और यहां तक कि ऑक्सीजन की भी भारी कमी हो गई है. अस्पतालों में भर्ती मरीज कोविड-19 से तो मर ही रहे थे, अब वो ऑक्सीजन की कमी से भी मर रहे हैं.
तस्वीर: Danish Siddiqui/REUTERS
नाकाम तंत्र
चारों ओर फैले इस हाहाकार ने देश में सरकारी तंत्र के खोखलेपन और महामारी से लड़ने की तैयारों में कमी को उजागर कर दिया है. हालत ऐसे हो चले हैं कि आम लोगों के अलावा अस्पतालों को ऑक्सीजन हासिल करने के लिए सोशल मीडिया पर एसओएस संदेश डालने पड़ रहे हैं.
तस्वीर: Raj K Raj/Hindustan Times/imago images
सोशल मीडिया बना हेल्पलाइन
सरकारी तंत्र की विफलता को देखते हुए कुछ लोग आगे बढ़ कर जरूरतमंदों की मदद कर रहे हैं. लोग सोशल मीडिया पर अपनी जरूरत डाल रहे हैं और मदद करने वाले किसी तक दवा पहुंचा रहे हैं, किसी तक ऑक्सीजन और किसी तक प्लाज्मा. इनके व्यक्तिगत नेटवर्क से अस्पतालों में रिक्त बिस्तरों की जानकारी भी मिल रही है. इनमें कुछ राजनीतिक कार्यकर्ता हैं, कुछ सामाजिक कार्यकर्ता, कुछ फिल्मी सितारे तो कुछ धर्मार्थ संगठन.
तस्वीर: Danish Siddiqui/REUTERS
ऑक्सीजन लंगर
सबसे भयावह कमी है ऑक्सीजन की. ऐसे में कुछ लोगों और कुछ धर्मार्थ संगठनों ने ऑक्सीजन मुहैया करवाने का बीड़ा उठाया है. कुछ लोग घरों तक भी ऑक्सीजन सिलिंडर और ऑक्सीजन कॉन्सेंट्रेटर पहुंचा दे रहे हैं, तो कुछ ने सार्वजनिक स्थलों पर ऑक्सीजन देने का इंतजाम किया है. यह महामारी के लिहाज से खतरनाक भी है, लेकिन लोग इस तरह की सेवाएं लेने को लाचार हैं.
लेकिन इस विकट परिस्थिति में भी मानव स्वभाव के दो चेहरे सामने आए हैं. एक तरफ अपनी जान जोखिम में डाल कर दूसरों की मदद करने वाले लोग हैं, तो दूसरी तरफ ऐसे भी हैं जिन्हें इस त्रासदी में भी जमाखोरी और मुनाफाखोरी सूझ रही है. आवश्यक दवाओं की कालाबाजारी हो रही है और उन्हें 10 गुना दाम पर बेचा जा रहा है. कई मामले ऐसे ही सामने आए हैं जहां लोगों ने दवा का 10 गुना दाम भी वसूल लिया और दवा भी नकली दे दी.
मानवीय त्रासदी में भी लोग अमानवीय व्यवहार से बाज नहीं आ रहे हैं. एम्बुलेंस सेवाओं में भी ठगी के कई मामले सामने आए हैं, जहां मरीजों या उनके परिवार वालों से चंद किलोमीटर के कई हजार रुपए वसूले गए हैं.
तस्वीर: Altaf Qadri/AP Photo/picture alliance
ऑक्सीजन "डकैती"
ऐसे भी मामले सामने आए हैं जहां ठगों ने ऑक्सीजन के लिए दर दर भटकते लोगों को ऑक्सीजन सिलिंडर बता कर आग बुझाने वाले यंत्र बेच दिए. पुलिस इन मामलों में सख्ती से पेश आ रही है और ऐसे लोगों के अवैध धंधों का भंडाफोड़ कर उन्हें हिरासत में ले रही है.