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नहीं पटेगा मर्द औरत का फासला

४ अगस्त २०१२

ओलंपिक में चीन की ये शिवेन ने तूफानी रफ्तार से तैराकी करके यह सवाल उठा दिया है कि क्या महिला और पुरुष खिलाड़ी एक तरह की तेजी दिखा सकते हैं. तो क्या कभी पुरुषों और महिलाओं के रिकॉर्ड एक जैसे बनने लगेंगे.

तस्वीर: Fotolia/Goran Bogicevic

ये ने फ्रीस्टाइल तैराकी के आखिरी चक्कर में जो तेजी दिखाई, वह पुरुषों से भी ज्यादा थी. इसकी मदद से उन्होंने नया वर्ल्ड रिकॉर्ड भी बनाया और अपने नाम दो स्वर्ण पदक किए. उसके बाद यह सवाल और उठने लगा कि क्या महिला खिलाड़ी स्वभाविक तौर पर पुरुषों जैसी तेजी दिखा सकती हैं.

इस बात के पर्याप्त सबूत हैं कि पुरुषों और महिलाओं की तेजी और शक्ति में फर्क होता है. जब से अंतरराष्ट्रीय खेल प्रतियोगिताएं हो रही हैं, यह फर्क दिख भी रहा है. लेकिन अब इस बात के सबूत भी मिलने लगे हैं कि पिछले कुछ दशकों में यह फर्क कम होता जा रहा है. ब्रिटेन के बेडफोर्डशर यूनिवर्सिटी में खेल विज्ञान के प्रोफेसर जॉन ब्रेवर का कहना है कि महिलाएं बहुत करीब आ सकती हैं, लेकिन कुछ चुनिंदा खेलों में ही.

देर से अधिकार

आधुनिक ओलंपिक की शुरुआत 1896 में हुई लेकिन महिलाओं को दूसरी बार (1900) से ही इसमें हिस्सा लेने की इजाजत मिली. इसके बाद से महिलाओं की हिस्सेदारी तेजी से बढ़ी है और इस बार के लंदन ओलंपिक में करीब 45 प्रतिशत खिलाड़ी महिलाएं हैं. लॉस एंजिलिस के 1984 ओलंपिक में सिर्फ 23 फीसदी महिलाएं थीं, जबकि टोक्यो के 1964 ओलंपिक में 13 प्रतिशत. लेकिन महिलाओं को हर तरह की प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेने की अनुमति नहीं रही है.

तस्वीर: Reuters

ब्रेवर का कहना है, "जिन खेलों में दशकों से महिलाएं और पुरुष दोनों हिस्सा लेते आए हैं, जैसे दौड़ना, छलांग लगाना और तैराकी, उनमें दोनों लिंगों के बीच का फासला कम हो रहा है. लेकिन कुछ इलाके ऐसे हैं, जहां यह फासला कम नहीं हो पाया है. ये हैं 10,000 मीटर की रेस, मैराथन और लंबी दूरी की तैराकी."

ओलंपिक में महिलाओं की पहली मैराथन दौड़ 1984 में हुई, जबकि 10,000 मीटर की रेस उसके अगले बार यानी 1988 में ही शुरू हो पाई. खेल विज्ञान और दवाइयों के अंतरराष्ट्रीय जर्नल में इस विषय पर 2010 में एक अध्ययन की रिपोर्ट प्रकाशित हुई, जिसमें कहा गया कि 1896 के बाद से दोनों लिगों के प्रदर्शन का फासला कम होता गया लेकिन 1983 के बाद यह स्थिर हो गया.

आम तौर पर औरतों का प्रदर्शन मर्दों के मुकाबले 10 फीसदी कमजोर होता है लेकिन 800 मीटर फ्रीस्टाइल में यह अंतर मात्र 5.5 प्रतिशत ही है, जबकि लंबी कूद में अंतर 18.8 प्रतिशत तक हो सकता है.

जीव विज्ञान जिम्मेदार

विशेषज्ञों का मानना है कि दोनों की शरीर की बनावट भी इस अंतर का वजह हो सकती है. न्यू यॉर्क में माउंट सिनाई स्कूल ऑफ मेडिसीन की असिस्टेंट प्रोफेसर एलेक्सिस कॉल्विन का कहना है, "महिलाओं में ज्यादा चर्बी होती है और इसकी वजह से उन्हें कई बार पानी के अंदर तैरने में फायदा पहुंचता है. वह तेज तैर सकती हैं. लेकिन दूसरी तरफ उनकी मांसपेशियों का वजन और शक्ति कम होती है. इस तरह उन्हें जो बढ़त मिलती है, वह खारिज हो जाती है."

आम तौर पर पुरुषों का दिल बड़ा होता है. इसकी वजह से वे हर धड़कन के वक्त ज्यादा खून पंप कर सकते हैं. इसके साथ ही हर बार सांस लेते समय उनके फेफड़ों में ज्यादा ऑक्सीजन जा सकता है. इन दोनों क्रियाओं का अर्थ यह हुआ कि वे मांसपेशियों तक ज्यादा खून प्रवाहित कर सकते हैं, जो उन्हें ज्यादा ताकतवर बनाते हैं.

चीन की करिश्माई तैराक ये शिवेनतस्वीर: dapd

तकनीक की मदद

पर विज्ञान और तकनीक के नए तरीकों के सामने आने के बाद ऐसे कदम उठाए जा सकते हैं कि पुरुषों और महिलाओं का अंतर कम से कम हो जाए. कई सालों के आंकड़े देखने के बाद ट्रेनिंग में इन बातों का ध्यान दिया जा रहा है. कॉल्विन का कहना है, "हालांकि बहुत सी चीजों के लिए जीव विज्ञान जिम्मेदार है लेकिन हम सीख रहे हैं कि ट्रेनिंग करके कैसे इस दूरी को पाटा जा सकता है. इसके बाद हम जीव विज्ञान के अंतर को भी पाट सकेंगे."

ब्रेवर का कहना है कि आने वाले दिनों में तैराकी या स्प्रिंटिंग जैसे मुकाबलों में यह फासला और भी कम हो जाए लेकिन "हो सकता है कि बहुत शानदार महिला खिलाड़ी अच्छे पुरुष खिलाड़ी को एक दिन पछाड़ने लगें लेकिन अफसोस कि बहुत शानदार महिला खिलाड़ी बहुत शानदार पुरुष खिलाड़ी को नहीं पीछे छोड़ पाएंगी. दुख है कि यह फासला पूरी तरह कभी नहीं मिटेगा."

एजेए/एनआर (रॉयटर्स)

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