नहीं बरसा करेगा सावन
६ नवम्बर २०१२भारत के मौसम में हो रहे इस भारी बदलाव से दुनिया भर में चिंता फैली है. यूरोप में पर्यावरणविद चर्चा कर रहे हैं कि इस पर कैसे काबू पाया जाए. इसके लिए सरकारों को एकजुट हो कर काम करना होगा. जानकारों का मानना है कि 2015 से 2200 के बीच हर पांच साल में एक बार मॉनसून नहीं आया करेगा.
जर्मनी में पर्यावरण बदलाव के प्रभाव पर नजर रखने वाले संस्थान पोट्सडाम इंस्टीट्यूट फॉर क्लाइमेट इम्पैक्ट रिसर्च के आंदेर्स लेवेरमन का कहना है कि जैसे जैसे धरती का तापमान बढ़ेगा मॉनसून में कमी देखी जाएगी. भारत में मॉनसून जून से ले कर सितंबर तक चलता है और 1.2 अरब की आबादी इस पर निर्भर करती है. चावाल, गेंहूं और मक्के के खेतों को खूब पानी की जरूरत होती है. समय पर बरसात ना होने से अनाज की कमी हो जाएगी.
2009 में भारत को सूखे से गुजरना पड़ा. इसके कारण चीनी का आयात बढ़ाना पड़ा. सिर्फ भारत में ही नहीं, पूरी दुनिया पर इसका भारी असर हुआ. चीनी के दाम 30 साल के सबसे अधिक स्तर पर पहुंच गए.
विशेषज्ञ मॉनसून को तब चिंतापूर्ण बताते हैं जब बारिश में 40 से 70 फीसदी की कमी हो. भारत के मौसम विभाग के अनुसार 1870 के बाद से ऐसा कभी नहीं हुआ. लेकिन दस फीसदी की कमी आम सी बात होती जा रही है. लेवेरमन बताते हैं, "पिछली सदी में भारत में मॉनसून काफी स्तिर रहा. अब औसत से दस प्रतिशत कम बारिश अपने आप में ही एक बड़ी त्रासदी का संकेत है."
विज्ञान पत्रिका एनवायरनमेंटल रिसर्च लेटर्स के अनुसार 2200 तक धरती का तापमान 4.6 तक बढ़ चुका होगा. संयुक्त राष्ट्र ने भी 2100 तक 1.1 और 6.4 डिग्री के बीच तापमान बढ़ने की चेतावनी दी है. यदि ऐसा हुआ तो अगले 50 साल में दस बार मॉनसून नहीं आएगा. इसके अलावा प्रतिदिन औसतन 6 से 7 मिलीमीटर की जगह केवल तीन मिलीमीटर ही बारिश हुआ करेगी.
करीब 200 देश ग्लोबल वॉर्मिंग के खिलाफ लड़ाई में हिस्सा ले रहे हैं और बढ़ते तापमान को दो डिग्री तक लाने का संकल्प कर चुके हैं. इसी सिलसिले में 26 नवंबर से 7 दिसंबर के बीच दुनिया भर के पर्यावरण मंत्री कतर में बैठक करेंगे. 2015 तक इन्हें एक समझौते को तैयार करना है.
तापमान के बढ़ने का मतलब होगा समुद्र से अधिक पानी का भाप बन के वातावरण में पहुंचना. ऐसे में जहां एक तरफ भारत में बारिश की कमी होगी तो दूसरी तरफ जिन इलाकों को बारिश की आदत नहीं, वहां पानी बरसने लगेगा.
आईबी/एएम (रॉयटर्स)