नाइजीरिया की खोजी पत्रकार को मिला फ्रीडम ऑफ स्पीच अवॉर्ड
३ मई २०२१
नाइजीरिया की खोजी पत्रकार तोबोरे ओवुरी को 2021 का डीडब्ल्यू फ्रीडम ऑफ स्पीच अवॉर्ड दिया गया है. मानवाधिकार के क्षेत्र में, खासकर मीडिया में अभिव्यक्ति की आजादी के लिए काम करने वाले लोगों को यह पुरस्कार दिया जाता हैं.
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पुरस्कार पाने पर ओवुरी ने कहा कि उनके काम के लिए इसका बहुत महत्व है. उन्होंने कहा, "मैं बहुत सम्मानित महसूस कर रही हूं कि डॉयचे वेले ने मेरे काम को मान्यता दी है. मेरे काम के लिए इसका बहुत महत्व है जो महिलाओं और अन्य लोगों को आवाज देने से जुड़ा है. मुझे उम्मीद है कि यह मान्यता बहुत से लोगों, खासकर लड़कियों और महिलाओं को काम करने के लिए प्रेरित करेगी और विशेषकर शोध पत्रकारिता के क्षेत्र में आने को प्रोत्साहित करेगी."
डॉयचे वेले के महानिदेशक पेटर लिम्बुर्ग ने इस मौके पर कहा कि जब कोई सच की खातिर अपनी जान खतरे में डालता है तो वह हर तरह के सम्मान का अधिकारी है. उन्होंने कहा, "अपने शोध में तोबोरे ओवुरी ने पत्रकारिता के अपने आरामदायक दायरे के बाहर जाकर काम किया. खतरनाक लोगों के साथ भी उनका वास्ता पड़ा. जब पत्रकार गलत को उजागर करने के लिए ऐसा करते हैं तो यह असाधारण है."
नाइजीरिया में पत्रकारिता एक मुश्किल पेशा है. 2021 में रिपोर्टर विदाउट बॉर्डर्स द्वारा जारी वर्ल्ड फ्रेस फ्रीडम इंडेक्स में 180 देशों में इस अफ्रीकी देश का नंबर 120वां है.
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प्रेस को कहां कितनी आजादी है?
नए प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में चार स्कैंडेनेवियाई देशों को पत्रकारों के लिए सबसे अच्छा माना गया है. भारत, पाकिस्तान और अमेरिका में पत्रकारों का काम मुश्किल है. जानिए रिपोर्टस विदाउट बॉर्डर्स के इंडेक्स में कौन कहां है.
तस्वीर: Getty Images/C. McGrath
1. नॉर्वे
दुनिया भर में प्रेस की स्वतंत्रता के मामले में नॉर्वे पहले स्थान पर कायम है. वैसे दुनिया में जब भी बात लोकतंत्र और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की आती है तो नॉर्वे बरसों से सबसे ऊंचे पायदानों पर रहा है. हाल में नॉर्वे की सरकार ने एक आयोग बनाया है जो देश में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की परिस्थितियों की व्यापक समीक्षा करेगा.
तस्वीर: Fotolia/Alexander Reitter
2. फिनलैंड
नॉर्वे का पड़ोसी फिनलैंड पिछले साल की तरह इस बार भी प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में दूसरे स्थान पर है. जब 2018 में हेलसिंकी में अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की मुलाकात हुई तो एयरपोर्ट से लेकर शहर तक पूरे रास्ते पर अंग्रेजी और रूसी भाषा में बोर्ड लगे थे, जिन पर लिखा था, "श्रीमान राष्ट्रपति, प्रेस स्वतंत्रता वाले देश में आपका स्वागत है."
डेनमार्क प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में एक साल पहले के मुकाबले दो पायदान की छलांग के साथ पांचवें से तीसरे स्थान पर पहुंचा है. 2015 के इंडेक्स में भी उसे तीसरे स्थान पर रखा गया था. लेकिन राजधानी कोपेनहागेन के करीब 2017 में स्वीडिश पत्रकार किम वाल की हत्या के बाद उसने अपना स्थान खो दिया था.
तस्वीर: AP
4. स्वीडन
1776 में दुनिया का पहला प्रेस स्वतंत्रता कानून बनाने वाला स्वीडन इस इंडेक्स में चौथे स्थान पर है. पिछले साल वह तीसरे स्थान पर था. वहां कई लोग इस बात से चिंतित हैं कि बड़ी मीडिया कंपनियां छोटे अखबारों को खरीद रही हैं. स्थानीय मीडिया के 50 फीसदी से ज्यादा हिस्से पर सिर्फ पांच मीडिया कंपनियों का कब्जा है.
तस्वीर: Reuters
5. नीदरलैंड्स
अंतरराष्ट्रीय मानकों के हिसाब से नीदरलैंड्स में मीडिया स्वतंत्र है. हालांकि स्थापित मीडिया पर चरमपंथी पॉपुलिस्ट राजनेताओं के हमले बढ़े हैं. इसके अलावा जब डच पत्रकार दूसरे देशों के बारे में नकारात्मक रिपोर्टिंग करते हैं तो वहां की सरकारें डच राजनेताओं पर दबाव डालकर मीडिया के काम में दखलंदाजी की कोशिश करती हैं.
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6. जमैका
कैरेबियन इलाके का छोटा सा देश जमैका प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में छठे स्थान पर है. वहां 2009 से प्रेस की स्वतंत्रता को कोई खतरा और फिर पत्रकारों के खिलाफ हिंसा का कोई गंभीर मामला देखने को नहीं मिला है. हालांकि रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स कुछ कानूनों को लेकर चिंतित है जिन्हें पत्रकारों के खिलाफ इस्तेमाल किया जा सकता है.
तस्वीर: imago/Ralph Peters
7. कोस्टा रिका
पूरे लैटिन अमेरिका में मानवाधिकारों और प्रेस स्वतंत्रता का सम्मान करने में कोस्टा रिका का रिकॉर्ड सबसे अच्छा है. यह बात इसलिए भी अहम है क्योंकि पूरा इलाका भ्रष्टाचार, हिंसक अपराधों और मीडिया के खिलाफ हिंसा के लिए बदनाम है. लेकिन कोस्टा रिका में पत्रकार आजादी से काम कर सकते हैं और सूचना की आजादी की सुरक्षा के लिए वहां कानून हैं.
तस्वीर: picture alliance/maxppp/F. Launette
8. स्विट्जरलैंड
मोटे तौर पर स्विटजरलैंड में राजनीतिक और कानूनी परिदृश्य को पत्रकारों के लिए बहुत सुरक्षित माना जा सकता है, लेकिन 2019 में जिनेवा और लुजान में कई राजनेताओं ने पत्रकारों के खिलाफ मुकदमे किए. इससे मीडिया को लेकर लोगों में अविश्वास पैदा हो सकता है. पहले वहां मीडिया की आलोचना तो होती थी लेकिन शायद ही कभी मुकदमे होते थे.
तस्वीर: dapd
9. न्यूजीलैंड
न्यूजीलैंड में प्रेस स्वतंत्र है लेकिन कई बार मीडिया ग्रुप मुनाफे के चक्कर में अपनी स्वतंत्रता और बहुलतावाद का ध्यान नहीं रखते हैं जिससे पत्रकारों के लिए खुलकर काम कर पाना संभव नहीं होता. जब मुनाफा अच्छी पत्रकारिता की राह में रोड़ा बनने लगे तो प्रेस की स्वतंत्रता प्रभावित होने लगती है. फिर भी, न्यूजीलैंड का मीडिया बहुत से देशों से बेहतर है.
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10. पुर्तगाल
180 देशों वाले इस इंडेक्स में पुर्तगाल दसवें पायदान पर है. हालांकि वहां पत्रकारों को बहुत कम वेतन मिलता है और नौकरी को लेकर भी अनिश्चित्तता बनी रहती है, लेकिन रिपोर्टिंग का माहौल तुलनात्मक रूप से बहुत अच्छा है. हालांकि कई समस्या बनी हुई हैं. यूरोपीय मानवाधिकार न्यायालय के आदेशों के बावजूद पुर्तगाल में अपमान और मानहानि को अपराध के दायरे में रखा गया है.
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11. जर्मनी
प्रेस की आजादी को जर्मनी में संवैधानिक संरक्षण प्राप्त है लेकिन दक्षिणपंथी लगातार जर्मन मीडिया को निशाना बना रहे हैं. हाल के समय में पत्रकारों पर ज्यादातर हमले धुर दक्षिणपंथियों के खाते में जाते हैं, लेकिन कुछ मामलों में अति वामपंथियों ने भी पत्रकारों पर हिंसक हमले किए हैं. दूसरी तरफ डाटा सुरक्षा और सर्विलांस को लेकर भी लगातार बहस हो रही है.
तस्वीर: picture-alliance/ZB
भारत और दक्षिण एशिया
प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में भारत को बहुत पीछे यानी 142वें स्थान पर रखा गया है. रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स के मुताबिक 2019 में बीजेपी की दोबारा जीत के बाद मीडिया पर हिंदू राष्ट्रवादियों का दबाव बढ़ा है. अन्य दक्षिण एशियाई देशों में नेपाल को 112वें, श्रीलंका को 127वें, पाकिस्तान को 145वें और बांग्लादेश को 151वें स्थान पर रखा गया है.
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अमेरिका, चीन और रूस
इंडेक्स के मुताबिक अमेरिका 42वें स्थान पर है. वहां प्रेस की आजादी को राष्ट्रपति ट्रंप के कारण लगातार नुकसान हो रहा है. लेकिन दो अन्य ताकतवर देशों चीन और रूस में स्थिति और भी खतरनाक है. रूस की स्थिति में पिछले साल के मुकाबले कोई बदलाव नहीं हुआ और वह 149 वें स्थान पर है जबकि चीन नीचे से चौथे पायदान यानी 177वें स्थान पर है.
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पत्रकारों के लिए सबसे खराब देश
इंडेक्स में उत्तर कोरिया (180), तुर्कमेनिस्तान (179) और इरीट्रिया सबसे नीचे है. किम जोंग उन के शासन वाले उत्तर कोरिया में पूरी तरह से निरंकुश शासन है. वहां सिर्फ सरकारी मीडिया है. जो सरकार कहती है, वही वह कहता है. इरीट्रिया और तुर्कमेनिस्तान में भी मीडिया वहां की सरकारों के नियंत्रण में ही है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/Rodong Sinmun
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मानवतस्करगिरोहोंकेबीचपहचानछिपाकरकियाकाम
कई साल के शोध के बाद तोबोरे ओवुरी ने एक सेक्स वर्कर का रूप धरा और नाइजीरिया में सेक्स ट्रैफिक रैकेट्स का पर्दाफाशश करने के लिए अपनी पहचान छिपाकर काम किया. देश में सेक्स ट्रैफिकिंग का कारोबार कई अरब डॉलर का है और इसके तार कई महाद्वीपों से जुड़े हैं. जान जोखिम में डालकर किए इस शोध में ओवुरी ने धन के अवैध लेन-देन, भ्रष्टाचार, हिंसा और यहां तक कि कत्ल भी देखे.
ओवुरी करीब दस साल से पत्रकारिता में हैं और नाइजीरिया के कई बड़े प्रकाशनों के साथ काम कर चुकी हैं. 2014 में उनकी सबसे मशहूर रिपोर्ट छपी थी. उनके खुलासे के बाद देश के अधिकारियों ने जांच शुरू की थी. 2016 में मीडिया इनिशिएटिव अगेंस्ट ह्यूमन ट्रैफिकिंग और विमिंस राइट अब्यूस (MIAHWRA) का हिस्सा बनकर उन्होंने एक किताब लिखी – मैं बिकाऊ नहीं हूं (I am not to be sold).
इस किताब के जरिए उन्होंने युवाओं और बच्चों को मानव तस्करी के खतरों से अवगत कराया और उन्हें इसके पीड़ित होने से बचने के बारे में भी सुझाव दिए. ओवुरी के शोध पर नेटफ्लिक्स ने ‘Òlòturé' नाम की एक फिल्म बनाई जो एक युवा नाइजीरियाई पत्रकार की मानव तस्करी के खतरनाक गिरोहों के पर्दाफाश की कहानी है.
तोबोरे ओवुरी आजकल कोविड-19 की रिपोर्टिंग कर रही हैं. खोजी पत्रकार के रूप में उनका करियर स्वास्थ्य क्षेत्र में शोध से ही शुरू हुआ था. वह आज भी मानव तस्करी पर काम कर रही हैं. डीडब्ल्यू के महानिदेशक पेटर लिम्बुर्ग कहते हैं, "बहुत जरूरी है कि हम मानव तस्करी के दुष्परिणामों की ओर ध्यान खीचें. बताएं कि यह सिर्फ उन्हें प्रभावित नहीं करता जिनकी तस्करी होती है. इसका असर पूरे के पूरे समुदायों पर होता है. इसका असर यूरोप पर सीधा होता है, जहां तस्करी करके ये लोग लाए जाते हैं. इसलिए भी यह एक अहम विषय है.”
लिम्बुर्ग कहते हैं कि डीडब्ल्यू का यह पुरस्कार खोजी पत्रकारिता की अहमियत को भी जाहिर करता है. उन्होंने कहा, "हम तोबोरे ओवुरी को उनके अहम खोजी काम और अफ्रीका में पत्रकारिता को मजबूत करने के लिए पुरस्कृत कर रहे हैं. पत्रकारिता में महिलाओं की अधिकारपूर्ण भूमिका को मान्यता मिलना बहुत जरूरी है."
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कहानी पुलित्जर जीतने वाले भारतीय फोटो पत्रकारों की
समाचार एजेंसी एसोसिएटेड प्रेस के तीन भारतीय फोटोग्राफरों ने प्रतिष्ठित पुलित्जर पुरस्कार जीता है. जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटने के बाद पाबंदियों के बीच उन्होंने आखिर कैसे खींची और भेजीं तस्वीरें?
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/M. Khan
"चूहा-बिल्ली" का खेल
"ये हमेशा चूहा-बिल्ली का खेल था" - एसोसिएटेड प्रेस के फोटोग्राफर डार यासीन ने अगस्त 2019 में कश्मीर में लागू हुई तालाबंदी की कहानियों को तस्वीरों में कैद करने के तजुर्बे को कुछ यूं बयान किया है. यासीन और उनके दो और सहयोगियों मुख्तार खान और चन्नी आनंद को इस दौरान जम्मू और कश्मीर में खींची गई तस्वीरों के लिए 2020 के फीचर फोटोग्राफी के पुलित्जर पुरस्कार से नवाजा गया है. देखिये इनमें से कुछ तस्वीरें.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/Dar Yasin
घोषणा
अगस्त में जम्मू में एक इलेक्ट्रॉनिक्स सामान की दुकान पर टीवी पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का भाषण सुनते लोग. 5 अगस्त को केंद्र सरकार ने जम्मू और कश्मीर का राज्य का दर्जा खत्म कर उसे दो अलग-अलग केंद्र शासित प्रदेशों में बांट दिया था. कश्मीर तब से एक तरह के लॉकडाउन में है जिसके तहत वहां के नागरिकों पर कई कड़े प्रतिबंध लागू हैं.
तस्वीर: picture-alliance/AP/C. Anand
विरोध
अगस्त में श्रीनगर में कर्फ्यू के बीच अर्धसैनिक बल के जवानों पर दूर से पत्थर फेंकता एक प्रदर्शनकारी. श्रीनगर में एपी के फोटोग्राफर मुख्तार खान और यासीन डार को प्रदर्शनकारियों और सेना के जवानों दोनों का ही अविश्वास झेलना पड़ता था.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/D. Yasin
पहरा
अगस्त में श्रीनगर में कंटीली तारों से बंद एक सुनसान सड़क पर पहरा देता एक सुरक्षाकर्मी. श्रीनगर में खान और यासीन कई बार कई दिनों तक घर नहीं लौट पाते थे और अपने परिवारों तक अपनी खबर भी नहीं पहुंचा पाते थे.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/D. Yasin
बंदूकें और बूट
पिछले साल अगस्त में श्रीनगर में तालाबंदी के दौरान ड्यूटी पर तैनात दो सुरक्षाकर्मी. खान और यासीन अपनी खींची हुई तस्वीरें दिल्ली ऑफिस तक पहुंचाने के लिए एयरपोर्ट पर अनजान यात्रियों से अपील करते थे. कुछ यात्री डर कर अपील ठुकरा देते थे तो कुछ मान लेते थे.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/Dar Yasin
नमाज
अगस्त 2019 में जम्मू में मस्जिद में ईद पर नमाज अदा करते हुए लोग. आनंद जम्मू में काम करते हैं और कहते हैं कि पुरस्कार से वो अवाक रह गए. वे बीस साल से एपी के लिए काम कर रहे हैं.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/C. Anand
ये कैसी ईद
अगस्त 2019 में ईद पर जम्मू में सुरक्षाबलों की भारी तैनाती के बीच अपने रास्ते पर जाता एक मुस्लिम व्यक्ति. एपी के अध्यक्ष गैरी प्रुइट ने कहा कि इस टीम की बदौलत ही दुनिया कश्मीर में आजादी की लंबी लड़ाई में हुई एक नाटकीय तेजी देख पाई.
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वापसी
अगस्त में प्रवासी श्रमिक जम्मू और कश्मीर को छोड़ अपने अपने घर जाने के लिए जम्मू रेलवे स्टेशन पर एक ट्रेन में बैठे हुए. कर्फ्यू और फोन और इंटरनेट के बंद होने के बावजूद ये तस्वीरें एपी के इन फोटोग्राफरों ने खींचीं और किसी तरह भेजीं.
तस्वीर: picture-alliance/AP/C. Anand
पुलिस
सितंबर 2019 में श्रीनगर में शिया प्रदर्शनकारियों पर डंडे चलाता एक पुलिसकर्मी. एपी के फोटोग्राफरों ने कभी अंजान लोगों के घर में छिप कर तो कभी कैमरों को सब्जियों के थैलों में छिपा कर तस्वीरें खींची.
तस्वीर: picture-alliance/AP/M. Khan
बंदूकों के साए में
नवंबर में श्रीनगर में एक बाजार में हुए एक विस्फोट के स्थल की जांच करता हुआ एक सुरक्षाकर्मी. यासीन कहते हैं कि उनके काम का उनके लिए पेशे-संबंधी और व्यक्तिगत दोनों मतलब है. वे कहते हैं इन तस्वीरों में सिर्फ दूसरों की नहीं बल्कि उनकी खुद की भी कहानी है.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/M. Khan
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अबतककिस-किसकोमिलाहैडीडब्ल्यू फ्रीडमऑफस्पीचअवॉर्ड
1953 से ही डॉयचे वेले दुनियाभर के लोगों तक विभिन्न भाषाओं में समाचार और सूचनाएं पहुंचा रहा है. यह संस्था विभिन्न संस्कृतियों के बीच विचार-विमर्श और लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रसार का काम कर रही है. 2015 में सस्था ने सालाना फ्रीडम ऑफ स्पीच अवॉर्ड देना शुरू किया. पहला पुरस्कार सऊदी ब्लॉगर रैफ बदावी को दिया गया था, जो आज भी जेल में हैं.
2016 में तुर्की के अखबार हुर्रियत के पूर्व मुख्य संपादक सेदात एर्गिन को पुरस्कार मिला. उसके अगले साल अमेरिका की वाइट हाउस कॉरसपॉन्डेंट्स असोसिएशन ने पुरस्कार जीता तो 2018 में ईरान में राजनीति विज्ञान के विशेषज्ञ सादिग जिबाकलाम ने.
2019 में मेक्सिको की खोजी पत्रकार ऐनाबेल हेरनान्डेज को पुरस्कार मिला. 2020 में 14 देशों के 17 ऐसे पत्रकारों को पुरस्कृत किया गया जो कोरोनावायरस महामारी पर अपनी रिपोर्टिंग के कारण लापता हो गए, गिरफ्तार कर लिए गए या फिर धमकियां झेलते रहे.
डीडब्ल्यू ग्लोबलमीडियाफोरमः2021 मेंऑनलाइन
फ्रीडम ऑफ स्पीच अवॉर्ड डॉयेचे वेले की सालाना अंतरराष्ट्रीय कॉन्फ्रेंस ग्लोबल मीडिया फोरम के दौरान दिया जाता है. हाल के सालों में यह कॉन्फ्रेंस बॉन के वर्ल्ड कॉन्फ्रेंस सेंटर में हो रही है. इसमें हर साल सौ से ज्यादा देशों के दो हजार से ज्यादा लोग हिस्सा लेते हैं. इस साल महामारी के कारण 14-15 जून को यह सम्मेलन ऑनलाइन होगा जिसमें ‘Disruption and Innovation' विषय पर चर्चा होगी. यानी दुनिया के हर हिस्से से लोग इस सम्मेलन में हिस्सा ले सकेंगे.