जर्मन छात्र याकोब लिन्डेनथाल को नागरिकता कानून के खिलाफ प्रदर्शनों में शामिल होने के लिए भारत से निष्काषित कर दिया गया है. लिन्डेनथाल का कहना है कि मानवाधिकार हर जगह एक ही जैसे हैं.
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नागरिकता कानून (सीएए) के खिलाफ चल रहे विरोध प्रदर्शनों के साथ कई विदेशी नागरिक भी एकजुटता दिखा रहे हैं. आईआईटी मद्रास में एक्सचेंज कार्यक्रम के तहत पढ़ रहे एक जर्मन छात्र को इन प्रदर्शनों में हिस्सा लेने की वजह से केन्द्रीय एजेंसियों ने अपने देश लौट जाने को कहा है.
भारतीय मीडिया की रिपोर्टों में लिन्डेनथाल के हवाले से कहा गया है कि उन्होंने कुछ दिन पहले चेन्नई में सीएए के खिलाफ हुए एक प्रदर्शन में हिस्सा लिया. हाथ में कई तरह के पोस्टर लिए लिन्डेनथाल की तस्वीरें सोशल मीडिया पर अब वायरल हो रही हैं. इनमें से एक पोस्टर पर "1933-45. हम वहां जा चुके हैं" लिखा हुआ देखा जा सकता है.
सोशल मीडिया पर एक वीडियो भी है जिसमें उन्हें यह कहते हुए सुना जा सकता है कि वो प्रदर्शनकारियों से एकजुटता दिखाने के लिए प्रदर्शन में शामिल हो रहे हैं. वीडियो में लिन्डेनथाल यह भी कह रहे हैं कि वह इसलिए प्रदर्शनों से जुड़ रहे हैं क्योंकि मानवाधिकार हर जगह एक ही जैसे हैं.
बताया जा रहा है कि लिन्डेनथाल जर्मनी के ड्रेसडेन के निवासी हैं और आईआईटी मद्रास के फिजिक्स विभाग में एक साल के एक्सचेंज कार्यक्रम के तहत स्नातकोत्तर कोर्स कर रहे थे. उन्होंने मीडिया को बताया कि उन्हें फॉरेन रीजनल रजिस्ट्रेशन ऑफिस (एफआरआरओ) ने सबसे पहले संपर्क किया था.
जब वे अप्रवासन विभाग गए तो वहां अधिकारियों ने उन्हें कहा कि उन्होंने अपने वीजा के नियमों का उल्लंघन किया है और उन्हें तुरंत अपने देश वापस लौट जाना होगा. उनका यह भी कहना है कि आश्चर्यजनक रूप से उन्हें सारे आदेश मौखिक रूप से दिए गए और एक भी आदेश लिखित में नहीं दिया गया.
लिन्डेनथाल ने इंडियन एक्सप्रेस अखबार को बताया कि प्रदर्शन में शामिल होने पर उनसे जो सवाल किए गए उनमें चिंता बार नामक एक मार्क्सवादी समूह से उनकी नजदीकी से जुड़े सवाल भी थे. चिंता बार ने ही आईआईटी मद्रास में उस प्रदर्शन का आयोजन किया था.
लिन्डेनथाल ने कहा, "मैंने उन्हें समझाया कि मैंने इस तरह के हर समूह से दूरी बना ली है. बातचीत के दौरान, प्रदर्शन में शामिल होने के मेरे फैसले के बारे में एक अधिकारी ने कहा कि मैं अनभिज्ञ हूं और जब मुझे नहीं मालूम कि मैं किस चीज के खिलाफ विरोध कर रहा हूं तो ऐसे में मुझे प्रदर्शन में शामिल नहीं होना चाहिए था. मैंने अपनी असहमति जताई और कहा कि ये सब लोगों के मूल मानवाधिकारों के बारे में था."
संशोधित नागरिकता कानून और प्रस्तावित नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजंस (एनआरसी) के खिलाफ देशभर में विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं. बैनर, पोस्टर और ग्रैफिटी के जरिए छात्र अपनी बात सरकार तक पहुंचाने की कोशिश कर रहे हैं.
तस्वीर: Surender Kumar
दीवारें बोलती हैं!
दिल्ली के जामिया मिलिया इस्लामिया के छात्र कई दिन से मुख्य गेट के बाहर डटे हुए हैं. विरोध प्रदर्शनों में छात्रों ने क्रांतिकारी नारे के साथ ग्रैफिटी और बैनर बनाए हैं. जामिया के छात्र संशोधित नागरिकता कानून और एनआरसी के साथ-साथ कैंपस में कथित पुलिस ज्यादती का विरोध कर रहे हैं. छात्रों का कहना है कि अगर सरकार उनकी आवाज नहीं सुन सकती है तो दीवारें बोलेंगी.
तस्वीर: DW/A. Ansari
बीजेपी पर वार
जामिया की दीवारों पर छात्रों ने इंकलाबी नारों के साथ-साथ बीजेपी के राजनीतिक 'एजेंडे' को भी उजागर करने की कोशिश की है. जामिया की एक दीवार पर छात्रों ने राम मंदिर, मूर्ति, मुस्लिम और गाय को बीजेपी का एजेंडा बताया है. ग्रैफिटी बनाने वाले छात्रों का कहना है कि इसके जरिए बहस की दशा और दिशा बदलेगी.
तस्वीर: DW/A. Ansari
पोस्टर-बैनर बना हथियार
हिंदुस्तान जिंदाबाद, हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, आपस में सब भाई-भाई जैसे नारों के साथ दिल्ली, मुंबई, बेंगलुरु, कोलकाता में विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं. सीएए और जामिया के छात्रों पर पुलिस की कथित ज्यादतियों के विरोध में लोग अपनी आवाज बुलंद कर रहे हैं.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/B. Das
शायराना विरोध
दिल्ली में छात्रों के साथ अधिकार समूहों के सदस्य गीत, नारे, कविता, पोस्टर के साथ विरोध की आवाज बुलंद कर रहे हैं. कई बार विरोध प्रदर्शन में संविधान की प्रस्तावना के पोस्टर भी देखने को मिले. तस्वीर में एक प्रदर्शनकारी ने राहत इंदौरी के एक शेर की लाइन को विरोध का जरिया बनाया है.
तस्वीर: DW/D. Choubey
असंतोष का कैनवास
प्रदर्शन में शामिल कई लोगों का आरोप है कि केंद्र सरकार संशोधित नागरिकता कानून के जरिए भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन कर रही है. हालांकि संसद में गृह मंत्री अमित शाह कह चुके हैं कि यह कानून आर्टिकल 14 समेत संविधान के किसी भी अनुच्छेद का उल्लंघन नहीं करता है.
तस्वीर: DW/S. Ghosh
'लाजिम है हम भी देखेंगे'
फैज अहमद फैज की मशहूर नज्म-'लाजिम है कि हम भी देखेंगे, वो दिन कि जिसका वादा है..' लिखे पोस्टर और बैनर के साथ सीएए के विरोध में लोग सड़कों पर उतरे. छात्रों का कहना है कि पुलिस उनकी हड्डी तोड़ सकती है लेकिन उनके विचारों को नहीं तोड़ सकती.
तस्वीर: DW/S. Ghosh
विरोध की ढपली
धरने और प्रदर्शनों में कई बार कला और रचनात्मकता आगे आ जाती है और हिंसा पीछे चली जाती है. छात्र अपनी रचनात्मकता के साथ विचार और अंसतोष जाहिर कर रहे हैं.
तस्वीर: Surender Kumar
बाबा साहेब की तस्वीर के साथ प्रदर्शन
कई बार प्रदर्शनकारी तेज नारेबाजी और भाषणबाजी से दूर रहते हुए सिर्फ तस्वीरों के सहारे अपनी बात दुनिया तक पहुंचाने की कोशिश करते हैं. इस तस्वीर में एक प्रदर्शनकारी डॉ. आंबेडकर की तस्वीर के साथ सीएए का विरोध करता हुआ.
तस्वीर: DW/S. Ghosh
'हिंदुस्तां हमारा'
'हिंदी है हम वतन हैं, हिंदुस्तां हमारा' के पोस्टर के साथ एक प्रदर्शनकारी इस बात पर जोर देता है कि वह भी भारत देश का ही नागरिक है और इस देश पर भी उनके समुदाय के लोगों का उतना ही हक है जितना किसी और मजहब के लोगों का है.