भारत में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने शायद सोचा भी नहीं था कि नागरिकता संशोधन कानून पर उसे इतना विरोध झेलना पड़ेगा. स्थिति यहां तक आ पहुंची कि गृह मंत्री को अपने बयानों पर सफाई देनी पड़ी.
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2014 में सत्ता संभालने के बाद से मोदी सरकार अपनी सबसे मुश्किल चुनौती से जूझ रही है. लाखों लोग उस कानून के खिलाफ सड़कों पर उतर रहे हैं जिसमें पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आने वाले गैर मुस्लिमों को भारत की नागरिकता देने का प्रावधान है. इन प्रदर्शनों में अब तक 25 लोग मारे जा चुके हैं.
सत्ताधारी पार्टी बीजेपी के नेता इन प्रदर्शनों से हैरान हैं. उनका कहना है कि इस कानून पर मुस्लिम समुदाय की तरफ से वे कुछ विरोध की उम्मीद तो कर रहे थे, लेकिन उन्होंने यह नहीं सोचा था कि बाकी समुदाय के लोग भी इसके खिलाफ अलग अलग शहरों में सड़कों पर आएंगे.
केंद्रीय मंत्री संजीव बालियान का कहना है, "वाकई मुझे इतने प्रदर्शन होने की उम्मीद नहीं थी. मुझे क्या, बीजेपी के दूसरे सांसद भी लोगों के गुस्से का पहले से अंदाजा नहीं लगा पाए." प्रदर्शनों की वजह से सरकार को कोई खतरा नहीं है, लेकिन जनता की नब्ज को पहचानने के लिए मशहूर प्रधानमंत्री मोदी भी इस बार नहीं समझ पाए कि लोगों के मन में क्या चल रहा है. हालांकि उनके बहुत से प्रशंसक नागरिकता कानून का पुरजोर समर्थन कर रहे हैं.
नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ भारत के कई शहरों में विरोध हो रहा है. इस कानून के खिलाफ छात्र विशेष तौर पर अपनी आवाज उठा रहे हैं. कई यूनिवर्सिटी के छात्रों के साथ-साथ नागरिक समाज, अधिकार समूह के सदस्य सड़क पर उतर आए हैं.
तस्वीर: Surender Kumar/Student Union of Jamia Milia University
कानून का विरोध
जामिया मिल्लिया के छात्रों पर कार्रवाई करती दिल्ली पुलिस. सादी वर्दी में पुलिस के जवान को लेकर सवाल उठाए जा रहे हैं कि पुलिस कब से ड्यूटी के दौरान सादी वर्दी पहनने लगी. सोशल मीडिया पर पुलिस कार्रवाई की बहुत सारी तस्वीरें वायरल हो रही हैं.
तस्वीर: Surender Kumar/Student Union of Jamia Milia University
आगजनी
दिल्ली के जामिया नगर में हिंसक प्रदर्शन के दौरान डीटीसी की चार बसों में आग लगा दी गई. छात्रों का कहना है कि वह शांति के साथ अपना प्रदर्शन कर रहे थे. छात्रों के मुताबिक रविवार को हुई हिंसा उन्होंने नहीं शुरू की.
तस्वीर: Surender Kumar/Student Union of Jamia Milia University
यूनिवर्सिटी के बाहर जुटे छात्र
रविवार को भारी संख्या में जामिया यूनिवर्सिटी के छात्र विरोध प्रदर्शन में शामिल हुए. उनका आरोप है कि नागरिकता कानून के जरिए देश में विभाजनकारी नीति लागू करने की साजिश है.
तस्वीर: Surender Kumar/Student Union of Jamia Milia University
पुलिस पर पथराव
दिल्ली पुलिस का कहना है कि रविवार को प्रदर्शन कर रही भीड़ को रोकने की कोशिश कर रही टीम पर पथराव किया गया. दिल्ली पुलिस के मुताबिक इस दौरान कुछ पुलिस के जवान भी घायल भी हुए हैं. उधर जामिया यूनिवर्सिटी का कहना है कि पुलिस कार्रवाई में करीब 200 छात्र घायल हुए हैं.
तस्वीर: Surender Kumar/Student Union of Jamia Milia University
पुलिस ज्यादती के खिलाफ एकजुट हुए लोग
दिल्ली पुलिस मुख्यालय के बाहर रविवार रात नागरिक समाज, छात्र, राजनीतिक दल के सदस्य एकत्रित होकर छात्रों के खिलाफ पुलिस कार्रवाई का विरोध किया. लोगों ने महात्मा गांधी और बाबा साहेब आंबेडकर की तस्वीरों के साथ अपनी मांग रखते हुए दोषी पुलिसवालों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की.
तस्वीर: Reuters/A. Abidi
पुलिस की सख्ती के खिलाफ विरोध
जामिया मिल्लिया के छात्रों के साथ पुलिस की कार्रवाई के विरोध में कई कॉलेजों में रविवार रात और सोमवार सुबह प्रदर्शन हुए. हैदराबाद, अलीगढ़, जादवपुर यूनिवर्सिटी के छात्रों ने पुलिस के बल प्रयोग के खिलाफ प्रदर्शन किया.
तस्वीर: Surender Kumar
कई शहरों में विरोध की आवाज
नागरिकता कानून के खिलाफ पिछले कुछ दिनों से राजनीतिक दल के साथ-साथ अधिकार समूह विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं. असम, बंगाल, त्रिपुरा और मेघालय में विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं. कुछ जगहों पर विरोध प्रदर्शन के दौरान हिंसा भी हुई. जिनमें गुवाहाटी, डिब्रुगढ़, तिनसुकिया, मालदा, उत्तर 24 परगना, हावड़ा और मुर्शिदाबाद शामिल हैं.
तस्वीर: Surender Kumar
जानलेवा प्रदर्शन
असम में नागरिकता कानून के खिलाफ हुई हिंसा में अब तक 4 लोगों की मौत हो चुकी है. हालांकि असम के गुवाहाटी और डिब्रुगढ़ में अब हालात धीरे-धीरे सामान्य हो रहे हैं. हालात को देखते हुए इन इलाकों में कर्फ्यू में भी ढील दी जा रही है.
तस्वीर: Getty Images/AFP/B. Boro
अफवाह से फैलती है हिंसा
सोशल मीडिया के जरिए भ्रामक और अफवाह को फैलने से रोकने के लिए कई राज्यों की पुलिस सोशल मीडिया पर कड़ी निगरानी कर रही है. ऐसे में राज्यों की पुलिस समय-समय पर समीक्षा कर इंटरनेट पर रोक लगा देती है जिससे अफवाह ना फैल सकें.
तस्वीर: AFP
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दूसरी तरफ लाखों की संख्या में छात्र, राजनेता और मानवाधिकार कार्यकर्ता सड़कों पर उतर कर आरोप लगा रहे हैं कि मोदी भारत के धर्मनिरपेक्ष संविधान को खतरे में डाल रहे हैं. उनका कहना है कि नागरिकता कानून धर्म के आधार पर भेदभाव करता है जिसकी संविधान में अनुमति नहीं है.
समाचार एजेंसी रॉयटर्स के साथ दो और केंद्रीय मंत्रियों ने इस मुद्दे पर बात की लेकिन वे अपना नाम गोपनीय रखना चाहते हैं. इनमें से एक मंत्री का कहना है, "मुझे लगता है कि इस कानून को पारित करते समय राजनीतिक गणित को ध्यान में नहीं रखा गया." अब केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह बार बार टीवी पर आकर कह रहे हैं कि भारत में रहने वाले मुसलमानों को चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है. नाम जाहिर ना करने की शर्त पर एक अन्य केंद्रीय मंत्री ने कहा, "हम सब डैमेज कंट्रोल मोड में हैं." भारतीय जनता पार्टी और उससे संबंधित संगठनों ने इस कानून को लेकर जागरूकता अभियान शुरू किए हैं कि यह किसी से भेदभाव नहीं करता.
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने भी ऐसा एक अभियान शुरू किया है. आरएसएस नेता मनमोहन वैद्य ने रॉयटर्स को बताया, "हिंसक प्रदर्शन इस वजह से नहीं हो रहे हैं कि लोगों को इस बारे में सही से जागरूक नहीं किया गया, बल्कि प्रदर्शन इसीलिए हो रहे हैं क्योंकि अपने स्वार्थों को साधने वाले कुछ गुटों ने उन्हें गलत जानकारी दी है."
विश्लेषक लोगों के गुस्से के पीछे कई वजहों को जिम्मेदार मानते हैं. शोध संस्थान सीएसडीएस के निदेशक संजय कुमार कहते हैं, "यह स्पष्ट है कि लोग कानून के खिलाफ विरोध जता रहे हैं और सरकार चलाने के मोदी के मनमाने तरीकों के खिलाफ गुस्सा जाहिर कर रहे हैं. आर्थिक संकट ने उनके गुस्से को और बढ़ाया है. मुझे नहीं लगता है कि ये प्रदर्शन जल्द खत्म होंगे."
संशोधित नागरिकता कानून और प्रस्तावित नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजंस (एनआरसी) के खिलाफ देशभर में विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं. बैनर, पोस्टर और ग्रैफिटी के जरिए छात्र अपनी बात सरकार तक पहुंचाने की कोशिश कर रहे हैं.
तस्वीर: Surender Kumar
दीवारें बोलती हैं!
दिल्ली के जामिया मिलिया इस्लामिया के छात्र कई दिन से मुख्य गेट के बाहर डटे हुए हैं. विरोध प्रदर्शनों में छात्रों ने क्रांतिकारी नारे के साथ ग्रैफिटी और बैनर बनाए हैं. जामिया के छात्र संशोधित नागरिकता कानून और एनआरसी के साथ-साथ कैंपस में कथित पुलिस ज्यादती का विरोध कर रहे हैं. छात्रों का कहना है कि अगर सरकार उनकी आवाज नहीं सुन सकती है तो दीवारें बोलेंगी.
तस्वीर: DW/A. Ansari
बीजेपी पर वार
जामिया की दीवारों पर छात्रों ने इंकलाबी नारों के साथ-साथ बीजेपी के राजनीतिक 'एजेंडे' को भी उजागर करने की कोशिश की है. जामिया की एक दीवार पर छात्रों ने राम मंदिर, मूर्ति, मुस्लिम और गाय को बीजेपी का एजेंडा बताया है. ग्रैफिटी बनाने वाले छात्रों का कहना है कि इसके जरिए बहस की दशा और दिशा बदलेगी.
तस्वीर: DW/A. Ansari
पोस्टर-बैनर बना हथियार
हिंदुस्तान जिंदाबाद, हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, आपस में सब भाई-भाई जैसे नारों के साथ दिल्ली, मुंबई, बेंगलुरु, कोलकाता में विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं. सीएए और जामिया के छात्रों पर पुलिस की कथित ज्यादतियों के विरोध में लोग अपनी आवाज बुलंद कर रहे हैं.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/B. Das
शायराना विरोध
दिल्ली में छात्रों के साथ अधिकार समूहों के सदस्य गीत, नारे, कविता, पोस्टर के साथ विरोध की आवाज बुलंद कर रहे हैं. कई बार विरोध प्रदर्शन में संविधान की प्रस्तावना के पोस्टर भी देखने को मिले. तस्वीर में एक प्रदर्शनकारी ने राहत इंदौरी के एक शेर की लाइन को विरोध का जरिया बनाया है.
तस्वीर: DW/D. Choubey
असंतोष का कैनवास
प्रदर्शन में शामिल कई लोगों का आरोप है कि केंद्र सरकार संशोधित नागरिकता कानून के जरिए भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन कर रही है. हालांकि संसद में गृह मंत्री अमित शाह कह चुके हैं कि यह कानून आर्टिकल 14 समेत संविधान के किसी भी अनुच्छेद का उल्लंघन नहीं करता है.
तस्वीर: DW/S. Ghosh
'लाजिम है हम भी देखेंगे'
फैज अहमद फैज की मशहूर नज्म-'लाजिम है कि हम भी देखेंगे, वो दिन कि जिसका वादा है..' लिखे पोस्टर और बैनर के साथ सीएए के विरोध में लोग सड़कों पर उतरे. छात्रों का कहना है कि पुलिस उनकी हड्डी तोड़ सकती है लेकिन उनके विचारों को नहीं तोड़ सकती.
तस्वीर: DW/S. Ghosh
विरोध की ढपली
धरने और प्रदर्शनों में कई बार कला और रचनात्मकता आगे आ जाती है और हिंसा पीछे चली जाती है. छात्र अपनी रचनात्मकता के साथ विचार और अंसतोष जाहिर कर रहे हैं.
तस्वीर: Surender Kumar
बाबा साहेब की तस्वीर के साथ प्रदर्शन
कई बार प्रदर्शनकारी तेज नारेबाजी और भाषणबाजी से दूर रहते हुए सिर्फ तस्वीरों के सहारे अपनी बात दुनिया तक पहुंचाने की कोशिश करते हैं. इस तस्वीर में एक प्रदर्शनकारी डॉ. आंबेडकर की तस्वीर के साथ सीएए का विरोध करता हुआ.
तस्वीर: DW/S. Ghosh
'हिंदुस्तां हमारा'
'हिंदी है हम वतन हैं, हिंदुस्तां हमारा' के पोस्टर के साथ एक प्रदर्शनकारी इस बात पर जोर देता है कि वह भी भारत देश का ही नागरिक है और इस देश पर भी उनके समुदाय के लोगों का उतना ही हक है जितना किसी और मजहब के लोगों का है.
तस्वीर: DW/S. Ghosh
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साढ़े पांच साल पहले जब मोदी सत्ता में आए थे तो उन्होंने आर्थिक विकास और करोड़ों लोगों को नौकरियां देने का वादा किया था. आलोचक उन पर अपने वादों को पूरा ना करने का आरोप लगाते हैं. इतना नहीं, नोटबंदी और जीएसटी लगाने जैसे उनके कदमों ने बहुत सारे लोगों के धंधों को चौपट किया है. इसके अलावा लिंचिंग की घटनाओं में कई लोगों के मारे जाने की बात भी सामने आईं.
वैसे मोदी की लोकप्रियता पर इन सब बातों का कोई असर नहीं हुआ. 2019 के चुनाव में उनके नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी ने पहले से ज्यादा सीटें जीतीं. इसके बाद अगस्त में उन्होंने जम्मू कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म कर दिया. फिर सुप्रीम कोर्ट का वह ऐतिहासिक फैसला आया जिसमें अयोध्या में राम मंदिर बनाने को मंजूरी दी गई. इसके बाद सरकार नागरिकता बिल को लेकर आई. इसके खिलाफ लखनऊ में हुए प्रदर्शनों में शामिल एक छात्र घनश्याम तिवारी कहते हैं, "मुझे लगता है कि वे नौकरियों के अवसर पैदा नहीं कर सकते है इसीलिए वे इस तरह का परेशान करने वाला कानून बना रहे हैं."
विपक्षी कांग्रेस पार्टी इस प्रदर्शनों का समर्थन कर रही है. पार्टी के नेता पृथ्वीराज चव्हाण कहते हैं, "भारत के इतिहास में पहली बार ऐसा हो रहा है कि कोई कानून धर्म के आधार पर बनाया गया है. लेकिन भारत को हिंदू राष्ट्र बनाने का सत्ताधारी पार्टी का दांव उल्टा पड़ गया."