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क्या मोदी इस बार जनता की नब्ज नहीं पहचान पाए

२७ दिसम्बर २०१९

भारत में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने शायद सोचा भी नहीं था कि नागरिकता संशोधन कानून पर उसे इतना विरोध झेलना पड़ेगा. स्थिति यहां तक आ पहुंची कि गृह मंत्री को अपने बयानों पर सफाई देनी पड़ी.

Indien Premierminister Narendra Modi
तस्वीर: Ians

2014 में सत्ता संभालने के बाद से मोदी सरकार अपनी सबसे मुश्किल चुनौती से जूझ रही है. लाखों लोग उस कानून के खिलाफ सड़कों पर उतर रहे हैं जिसमें पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आने वाले गैर मुस्लिमों को भारत की नागरिकता देने का प्रावधान है. इन प्रदर्शनों में अब तक 25 लोग मारे जा चुके हैं.

सत्ताधारी पार्टी बीजेपी के नेता इन प्रदर्शनों से हैरान हैं. उनका कहना है कि इस कानून पर मुस्लिम समुदाय की तरफ से वे कुछ विरोध की उम्मीद तो कर रहे थे, लेकिन उन्होंने यह नहीं सोचा था कि बाकी समुदाय के लोग भी इसके खिलाफ अलग अलग शहरों में सड़कों पर आएंगे.

केंद्रीय मंत्री संजीव बालियान का कहना है, "वाकई मुझे इतने प्रदर्शन होने की उम्मीद नहीं थी. मुझे क्या, बीजेपी के दूसरे सांसद भी लोगों के गुस्से का पहले से अंदाजा नहीं लगा पाए." प्रदर्शनों की वजह से सरकार को कोई खतरा नहीं है, लेकिन जनता की नब्ज को पहचानने के लिए मशहूर प्रधानमंत्री मोदी भी इस बार नहीं समझ पाए कि लोगों के मन में क्या चल रहा है. हालांकि उनके बहुत से प्रशंसक नागरिकता कानून का पुरजोर समर्थन कर रहे हैं.

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दूसरी तरफ लाखों की संख्या में छात्र, राजनेता और मानवाधिकार कार्यकर्ता सड़कों पर उतर कर आरोप लगा रहे हैं कि मोदी भारत के धर्मनिरपेक्ष संविधान को खतरे में डाल रहे हैं. उनका कहना है कि नागरिकता कानून धर्म के आधार पर भेदभाव करता है जिसकी संविधान में अनुमति नहीं है.

समाचार एजेंसी रॉयटर्स के साथ दो और केंद्रीय मंत्रियों ने इस मुद्दे पर बात की लेकिन वे अपना नाम गोपनीय रखना चाहते हैं. इनमें से एक मंत्री का कहना है, "मुझे लगता है कि इस कानून को पारित करते समय राजनीतिक गणित को ध्यान में नहीं रखा गया." अब केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह बार बार टीवी पर आकर कह रहे हैं कि भारत में रहने वाले मुसलमानों को चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है. नाम जाहिर ना करने की शर्त पर एक अन्य केंद्रीय मंत्री ने कहा, "हम सब डैमेज कंट्रोल मोड में हैं." भारतीय जनता पार्टी और उससे संबंधित संगठनों ने इस कानून को लेकर जागरूकता अभियान शुरू किए हैं कि यह किसी से भेदभाव नहीं करता.

राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने भी ऐसा एक अभियान शुरू किया है. आरएसएस नेता मनमोहन वैद्य ने रॉयटर्स को बताया, "हिंसक प्रदर्शन इस वजह से नहीं हो रहे हैं कि लोगों को इस बारे में सही से जागरूक नहीं किया गया, बल्कि प्रदर्शन इसीलिए हो रहे हैं क्योंकि अपने स्वार्थों को साधने वाले कुछ गुटों ने उन्हें गलत जानकारी  दी है."

विश्लेषक लोगों के गुस्से के पीछे कई वजहों को जिम्मेदार मानते हैं. शोध संस्थान सीएसडीएस के निदेशक संजय कुमार कहते हैं, "यह स्पष्ट है कि लोग कानून के खिलाफ विरोध जता रहे हैं और सरकार चलाने के मोदी के मनमाने तरीकों के खिलाफ गुस्सा जाहिर कर रहे हैं. आर्थिक संकट ने उनके गुस्से को और बढ़ाया है. मुझे नहीं लगता है कि ये प्रदर्शन जल्द खत्म होंगे."

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साढ़े पांच साल पहले जब मोदी सत्ता में आए थे तो उन्होंने आर्थिक विकास और करोड़ों लोगों को नौकरियां देने का वादा किया था.  आलोचक उन पर अपने वादों को पूरा ना करने का आरोप लगाते हैं. इतना नहीं, नोटबंदी और जीएसटी लगाने जैसे उनके कदमों ने बहुत सारे लोगों के धंधों को चौपट किया है. इसके अलावा लिंचिंग की घटनाओं में कई लोगों के मारे जाने की बात भी सामने आईं.

वैसे मोदी की लोकप्रियता पर इन सब बातों का कोई असर नहीं हुआ. 2019 के चुनाव में उनके नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी ने पहले से ज्यादा सीटें जीतीं. इसके बाद अगस्त में उन्होंने जम्मू कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म कर दिया. फिर सुप्रीम कोर्ट का वह ऐतिहासिक फैसला आया जिसमें अयोध्या में राम मंदिर बनाने को मंजूरी दी गई. इसके बाद सरकार नागरिकता बिल को लेकर आई. इसके खिलाफ लखनऊ में हुए प्रदर्शनों में शामिल एक छात्र घनश्याम तिवारी कहते हैं, "मुझे लगता है कि वे नौकरियों के अवसर पैदा नहीं कर सकते है इसीलिए वे इस तरह का परेशान करने वाला कानून बना रहे हैं."

विपक्षी कांग्रेस पार्टी इस प्रदर्शनों का समर्थन कर रही है. पार्टी के नेता पृथ्वीराज चव्हाण कहते हैं, "भारत के इतिहास में पहली बार ऐसा हो रहा है कि कोई कानून धर्म के आधार पर बनाया गया है. लेकिन भारत को हिंदू राष्ट्र बनाने का सत्ताधारी पार्टी का दांव उल्टा पड़ गया."

एके/एनआर (रॉयटर्स)

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