पूर्वोत्तर में नागालैंड और मणिपुर सीमा पर स्थित जोकू घाटी में एक सप्ताह से लगी भयावह आग पर सेना, वायुसेना, एनडीआरएफ और राज्य सरकार की तमाम कोशिशों के बावजूद अब तक काबू नहीं पाया जा सका है.
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सरकार ने अगले दो दिनो में आग पर काबू पाने की उम्मीद जताई है. आग लगने की वजह का भी पता नहीं लग सका है. पर्यावरणविदों ने ऑस्ट्रेलिया के जंगलों में लगी आग की तर्ज पर इस इलाके में आग से प्राकृतिक संसाधनों और पर्यावरण को भारी नुकसान पहुंचने का अंदेशा जताया है. लेकिन आग नहीं बुझने तक नुकसान के बारे में ठोस आकलन करना संभव नहीं है. आग पर काबू पाने के लिए वायु सेना के हेलीकॉप्टरों की भी सहायता ली जा रही है. लेकिन इलाके में चलने वाली तेज हवाओं ने समस्या को गंभीर बना दिया है. यह आग दो सौ एकड़ में फैल चुकी है.
नागालैंड के कोहिमा जिले और मणिपुर के सेनापति जिले के बीच फैली बेहद सुंदर जोकू घाटी देश-विदेश के सैलानियों के लिए ट्रैकिंग का पसंदीदा ठिकाना रही है. यह आग बीते 29 दिसंबर को नागालैंड की सीमा में शुरू हुई थी और धीरे-धीरे मणिपुर तक पहुंच गई. नागालैंड में राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के अधिकारी जानी रूआंगमी बताते हैं, "नागालैंड सीमा में आग पर कुछ हद तक काबू पा लिया गया है. लेकिन मणिपुर सीमा में यह अब भी धधक रही है.”
मणिपुर की राजधानी इंफाल में वन विभाग के एक अधिकारी बताते हैं, "पहाड़ी के पश्चिमी सिरे पर तो आग पर कुछ हद तक काबू पा लिया गया है लेकिन दुर्गम दक्षिणी इलाके में यह अब भी धधक रही है. वायुसेना के हेलीकॉप्टर वहां आग बुझाने का प्रयास कर रहे हैं.” इलाके में एनडीआरएफ और पुलिस के 20 से ज्यादा कैंप लगाए गए हैं ताकि इस अभियान में बेहतर तालमेल बनाया जा सके. इलाके में कोई मोबाइल नेटवर्क नहीं होने की वजह से दिक्कत और बढ़ गई है.
इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन के लिए तेल ला रहे टैंकर में आग
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नागालैंड की राजधानी कोहिमा से महज तीस किलोमीटर दूर जोकू घाटी में पक्षियों व जानवरों की हजारों प्रजातियां रहती हैं. इनमें से कई तो दुर्लभ प्रजाति के हैं. समुद्रतल से लगभग ढाई हजार मीटर की ऊंचाई पर बसा यह इलाका पर्यटकों के आकर्षण का प्रमुख केंद्र तो है ही, अपनी जैव-विविधता के लिए भी मशहूर है. यहां जाड़ों में कई किस्म के फूल उगते हैं. इस घाटी के मालिकाना हक पर अकसर नागालैंड और मणिपुर के बीच विवाद हो चुका है. इलाके में पहले भी आग लगती रही है लेकिन वह इतनी भयावह कभी नहीं रही. वर्ष 2006 में घाटी के दक्षिणी हिस्से में 20 किलोमीटर क्षेत्रफल में आग लगी थी. वर्ष 2018 में भी यहां भयावह आग लगी थी. उससे घाटी को काफी नुकसान हुआ था.
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास मंत्री जितेंद्र सिंह ने नागालैंड और मणिपुर सरकारों को आग पर काबू पाने के लिए हर संभव सहायता देने का भरोसा दिया है. तीन जनवरी से वायुसेना के चार हेलीकॉप्टर प्रभावित इलाकों पर लगातार पानी की बौछार कर रहे हैं.
रक्षा विभाग के प्रवक्ता लेफ्टिनेंट कर्नल पी खोंगसाई ने बताया कि जोकू घाटी में लगी आग पर काबू पाने में सेना भी केंद्रीय और राज्य सरकारी संगठनों की सहायता कर रही है. भारतीय सेना और असम राइफल्स के जवान आग बुझाने में एनडीआरएफ को हर संभव मदद प्रदान कर रहे हैं. सेना राहतकार्यों में शामिल विभिन्न एजेंसियों को आवास, तंबू और रसद मुहैया कर रही है. इसके अलावा सेना ने बांबी बाल्टी ऑपरेशन के लिए एक एयरबेस प्रदान किया है. वह इलाका दुर्गम होने की वजह से प्रभावित इलाकों के तीन किलोमीटर के दायरे में कई कैंप लगाए गए हैं. उन्होंने बताया कि सेना के वरिष्ठ अधिकारियों ने रविवार को राज्य प्रशासन के साथ बैठक भी की ताकि आग बुझाने के अभियान को बेहतर बनाया जा सके.
आग की 11 घटनाएं जिन्होंने भारत को हिलाकर रख दिया
8 दिसंबर को दिल्ली में एक फैक्टरी में लगी आग से 43 लोगों की मौत हो गई. लेकिन भारत में पहले भी आग से बड़े हादसे हो चुके हैं जिनमें सैकड़ों लोगों की मौत हुई है.
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दबवाली हादसा
23 दिसंबर 1995 को हरियाणा के सिरसा जिले के दबवाली के राजीव मैरिज पैलेस में लगी आग में 540 लोगों की मौत हो गई थी. यहां डीएवी स्कूल का वार्षिकोत्सव चल रहा था. यहां एक इलेक्ट्रिक जेनरेटर में शॉर्ट सर्किट हुआ. इससे वहां लगे टैंट में आग लग गई. कार्यक्रम में करीब 1500 लोग मौजूद थे. एक ही निकास द्वार होने की वजह से भगदड़ मच गई. मरने वालों में 170 बच्चे थे. (सांकेतिक तस्वीर.)
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बारीपाड़ा हादसा
फरवरी 1997 में ओडिशा के बारीपाड़ा में हिंदू धर्मगुरू स्वामी निगमानंद के हजारों अनुयायी पूजा के लिए इकट्ठा हुए थे. यहां लोगों के लिए टैंट लगाए गए थे. शॉर्ट सर्किट की वजह से आग लगने और उसके बाद मची भगदड़ से 206 लोगों की मौत हो गई थी. इस हादसे में 148 लोग गंभीर रूप से घायल भी हो गए थे. (सांकेतिक तस्वीर)
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पुत्तिंगल मंदिर हादसा
10 अप्रैल 2016 को केरल के कोल्लम जिले में पुत्तिंगल मंदिर में पटाखे चलाने के दौरान आग लग गई. मंदिर में उस समय करीब 15,000 लोग मौजूद थे. इस हादसे में 111 लोगों की जान गई थी. इसके बाद केरल में मंदिरों में पटाखे चलाने पर रोक लगा दी गई. 1952 में सबरीमाला मंदिर में पटाखों की वजह से लगी आग में 68 लोगों की मौत हो गई थी.
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कुंभकोणम स्कूल हादसा
16 जुलाई 2004 को तमिलनाडु के तंजावुर जिले के कृष्णा इंग्लिश स्कूल में मिड डे मील खाना बनाते समय आग लग गई. रसोई में लगी ये आग स्कूल में फैल गई. इस हादसे में 94 बच्चों की मौत हो गई थी. मरने वालों में अधिकतर छोटे बच्चे थे. (सांकेतिक तस्वीर)
तस्वीर: picture-alliance/dpa
मेरठ मेला हादसा
10 अप्रैल 2006 को मेरठ में चल रहे ब्रांड इंडिया फेयर नाम के एक मेले में आग लग गई. आग लगने की वजह शॉर्ट सर्किट मानी गई. यहां लगे टैंट में आग लग गई. करीब 2000 लोगों की मौजूदगी वाली इस जगह पर एक ही निकास द्वार था. इस हादसे में 65 लोगों की मौत हो गई थी. (सांकेतिक तस्वीर)
तस्वीर: Reuters/SBCFire/M. Eliason
कोलकाता अस्पताल हादसा
9 दिसंबर 2011 को कोलकाता के आमरी अस्पताल के बेसमेंट में शॉर्ट सर्किट से आग लग गई. आग बढ़कर अस्पताल के दूसरे वार्डों और आईसीयू तक पहुंच गई. इस हादसे में 89 लोगों की मौत हो गई थी.
तस्वीर: AP
उपहार सिनेमा हादसा
13 जून 1997 को दिल्ली के ग्रीन पार्क में मौजूद उपहार सिनेमा हॉल में सनी देओल की फिल्म बॉर्डर के शो के दौरान आग लग गई. ये आग सिनेमा हॉल के बाहर लगे ट्रांसफॉर्मर में लगी जो तेजी से फैली. इस हादसे में 59 लोगों की मौत हो गई और 103 गंभीर रूप से घायल हो गए थे. (सांकेतिक तस्वीर)
तस्वीर: Geety Images/AFP/S. Hussain
श्रीरंगम हादसा
23 जनवरी 2004 को तमिलनाडु के श्रीरंगम में एक शादी के दौरान आग लग गई थी. शादी की वीडियोग्राफी कर रहे कैमरे में लगी आग तेजी से फैली. आग के बाद छत गिरने से ज्यादा लोग हताहत हुए. इस आग में दूल्हे समेत 57 लोगों की मौत हो गई थी. (सांकेतिक तस्वीर)
तस्वीर: Reuters
शिवकाशी हादसा
पटाखे बनाने के लिए प्रसिद्ध तमिलनाडु के शिवकाशी में 5 सितंबर 2012 को एक पटाखा फैक्टरी में आग लग गई. ये फैक्टरी अवैध तरीके से चल रही थी. इस हादसे में 54 लोगों की मौत हो गई थी और 78 घायल हो गए थे. (सांकेतिक तस्वीर)
तस्वीर: Reuters/A. Abidi
दिल्ली अनाज मंडी हादसा
8 दिसंबर को दिल्ली के झांसी रानी रोड स्थित अनाज मंडी में स्कूल बैग और स्टेशनरी बनाने वाली एक अवैध फैक्टरी में आग लग गई. इस आग में 43 लोगों की मौत हो गई और 11 गंभीर घायल हो गए. मृतकों में अधिकतर फैक्टरी में काम करने वाले मजदूर थे.
तस्वीर: Reuters/A. Abidi
सूरत कोचिंग आग हादसा
24 मई 2019 को गुजरात के सूरत में एक कोचिंग सेंटर में आग लग गई. कोचिंग के ग्राउंड फ्लोर पर आग लग गई थी. इससे पहले फ्लोर पर जाने वाली लकड़ी की सीढ़ियों में भी आग लग गई. फर्स्ट फ्लोर पर फंसे कई बच्चे आग और दम घुटने से मारे गए. आग को देखकर कई बच्चे छत से कूद गए और मारे गए. इस घटना में 22 बच्चों की जान गई थी.
तस्वीर: Getty Images/AFP
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मणिपुर के मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह ने आग की भयावहता का जायजा लेने के लिए इलाके का हवाई सर्वेक्षण किया है. उन्होंने बताया, "आग से पहाड़ों, जंगल और पर्यावरण को भारी नुकसान पहुंचा है. यह आग मणिपुर की सबसे ऊंची चोटी माउंट ईसो को पार कर चुकी है. मुख्यमंत्री ने अंदेशा जताया कि अगर हवाएं दक्षिण की ओर बहीं तो इस आग के मणिपुर के सबसे घने जंगल कोजिरी तक पहुंचने का अंदेशा है. वहां नजदीक ही एक वाइल्डलाइफ पार्क भी है.” मुख्यमंत्री ने आग लगने के अगले दिन ही अमित शाह को फोन कर इस पर काबू पाने में केंद्रीय सहायता मांगी थी.
नागालैंड के राज्यपाल एन रवि ने भी प्रभावित इलाके का दौरा करने के बाद राज्य सरकार से सेटेलाइट आधारित रियल टाइम अर्ली वॉर्निंग सिस्टम समेत कई अन्य उपाय अपनाने की अपील की है ताकि भविष्य में ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति रोकी जा सके.
दरअसल, आग पर काबू पाने में मुश्किल इसलिए हो रही है कि यह इलाका बेहद दुर्गम है. कोई सड़क नहीं होने की वजह से फायर ब्रिगेड की गाड़ियां इलाके में नहीं पहुंच सकतीं. इलाके में एक ट्रेकिंग ट्रैक बना हुआ है. उसके जरिए कई घंटे पैदल चलकर ही वहां पहुंचा जा सकता है. इसी वजह से हेलीकॉप्टरों की मदद ली जा रही है.
नागालैंड राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनएसडीएमए) के अधिकारियों ने राजधानी कोहिमा में बताया है कि अज्ञात कारण से बड़े पैमाने पर आग लग गई. इससे होने वाले नुकसान का फिलहाल पता नहीं चला है. घाटी में लगी यह आग इतनी भयावह है कि इसकी लपटें और रोशनी कोहिमा से दिखाई दे रही हैं.
इंसानों का जंगल में बढ़ता दखल और जंगलों की खराब व्यवस्था तो जंगलों की आग के पीछे है ही लेकिन वैज्ञानिकों का कहना है कि ग्लोबल वार्मिंग के कारण यह समस्या विकराल होती जा रही है.
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गर्म, सूखा और तेज हवाओं वाला मौसम
आग से लड़ने वाला कोई भी कर्मचारी आपको बता देगा कि सूखा, गर्म और तेज हवाओँ वाला मौसम आग को कैसे भड़काता है. ऐसे में कोई हैरानी नहीं है कि आग से तबाह हुए कई इलाके ऐसे हैं जहां की जलवायु में तापमान और सूखा बढ़ने के कयास लगाए गए थे. गर्मी से वाष्पीकरण की प्रक्रिया भी तेज होती है और सूखा कायम रहता है.
तस्वीर: Reuters/F. Greaves
सूखा मौसम मतलब सूखे पेड़, झाड़ी और घास
मौसम सूखा होगा तो वनस्पति सूखेगी और आग को ईंधन मिलेगा. सूखे पेड़-पौधों, और घास में आग न सिर्फ आसानी से लगती है बल्कि तेजी से फैलती है. सूखे मौसम के कारण जंगलों में ईंधन का एक भरा पूरा भंडार तैयार हो जाता है. गर्म मौसम में हल्की सी चिंगारी या फिर पेड़ पौधों के आपस में घर्षण से पैदा हुई आग जंगल जला देती है.
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सूखे में उगने वाले पेड़ पौधे
नई प्रजातियां मौसम के हिसाब से अपने आप को अनुकूलित कर रही हैं और कम पानी में उग सकने वाले पेड़ पौधों की तादाद बढ़ती जा रही है. नमी में उगने वाले पौधे गायब हो रहे हैं और उनकी जगह रोजमैरी, वाइल्ड लैवेंडर और थाइ जैसे पौधे जड़ जमा रहे हैं जो सूखे मौसम को भी झेल सकते हैं और जिनमें आग भी खूब लगती है.
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जमीन की कम होती नमी
तापमान बढ़ने और बारिश कम होने के कारण पानी की तलाश में पेड़ों और झाड़ियों की जड़ें मिट्टी में ज्यादा गहराई तक जा रही हैं और वहां मौजूद पानी के हर कतरे को सोख रही हैं ताकि अपनी पत्तियों और कांटों को पोषण दे सकें. इसका मतलब है कि जमीन की जो नमी से आग को फैलने से रोकता था, वह अब वहां नहीं है.
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कभी भी लग सकती है आग
धरती के उत्तरी गोलार्ध में तापमान की वजह से आग लगने का मौसम ऐतिहासिक रूप से छोटा होता था. ज्यादातर इलाकों में जुलाई से लेकर अगस्त तक. आज यह बढ़ कर जून से अक्टूबर तक चला गया है. कुछ वैज्ञानिक तो कहते हैं कि अब आग पूरे साल में कभी भी लग सकती है. अब इसके लिए किसी खास मौसम की जरूरत नहीं.
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बिजली गिरने का खतरा
जितनी गर्मी होगी उतनी ज्यादा बिजली गिरेगी. वैज्ञानिक बताते हैं कि उत्तरी इलाकों में अकसर बिजली गिरने से आग लगती है. हालांकि बात अगर पूरी दुनिया की हो तो जंगल में आग लगने की 95 फीसदी घटनाएं इंसानों की वजह से शुरू होती हैं.
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कमजोर जेट स्ट्रीम
उत्तरी अमेरिका और यूरेशिया में मौसम का पैटर्न शक्तिशाली, ऊंची हवाओँ से तय होता है. ये हवाएं ध्रुवीय और भूमध्यरेखीय तापमान के अंतर से पैदा होती हैं. इन्हें जेट स्ट्रीम कहा जाता है. ग्लोबल वार्मिंग के कारण आर्कटिक इलाके का तापमान वैश्विक औसत की तुलना में दोगुना बढ़ गया है और इसके कारण ये हवाएं कमजोर पड़ गई हैं.
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आग रोकना मुश्किल
तापमान बढ़ने से कारण ना सिर्फ जंगल में आग लगने का खतरा रहता है बल्कि इनकी आंच के भी तेज होने का जोखिम रहता है. फिलहाल कैलिफोर्निया और ग्रीस में कुछ हफ्ते पहले यह साफ तौर पर देखने को मिला. वहां हालात ऐसे बन गए कि कुछ भी कर के आग को रोका नहीं जा सकता. सारे उपाय नाकाम हो गए.
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झिंगुरों का आतंक
तापमान बढ़ने के कारण झिंगुर उत्तर में कनाडा के जंगलों की ओर चले गए और भारी तबाही मचाई. रास्ते भर वो अपने साथ साथ पेड़ों को खत्म करते गए. वैज्ञानिकों के मुताबिक झींगुर ना सिर्फ पेड़ों को खत्म कर देते हैं बल्कि कुछ समय के लिए जंगल को आग के लिहाज से ज्यादा जोखिमभरा बना देते हैं.
तस्वीर: picture-alliance/Mary Evans/Ardea/A. L. Stanzani
जंगल जलने से कार्बन
दुनिया भर के जंगल पृथ्वी के जमीनी क्षेत्र से पैदा होने वाले 45 फीसदी कार्बन और इंसानों की गतिविधियों से पैदा हुईं 25 फीसदी ग्रीनहाउस गैसों को सोख लेते हैं. हालांकि जंगल के पेड़ जब मर जाते हैं या जल जाते हैं तो कार्बन की कुछ मात्रा फिर जंगल के वातावरण में चली जाती है और इस तरह से जलवायु परिवर्तन में उनकी भी भूमिका बन जाती है.