नाजी दौर में जब्त कलाकृतियों की खोज
१८ अप्रैल २०१३ऑस्कर कोकोश्का कला की दुनिया में हिटलर के जानी दुश्मन थे. नाजी उन्हें तथाकथित पतित कलाकारों में "सबसे पतित" मानते थे. इन कलाकारों में से बहुत से यहूदी थे और नाजियों की नस्लवादी विचारधारा से मेल नहीं खाते थे. कोकोश्का की रचनाओं को जब्त कर लिया गया और उनमें से ज्यादातर का अभी तक पता नहीं चला है. इसलिए जब उनका एक स्केच क्रिस्टी ऑक्शन हाउस में बोली पर चढ़ा तो बर्लिन के "डिजेनेरेट आर्ट" रिसर्च डिवीजन के विशेषज्ञों के चेहरे खिल गए.
जर्मन राजधानी के फ्री यूनिवर्सिटी में 2003 में बना रिसर्च इंस्टीट्यूट उन 20,000 कलाकृतियों के बारे में सूचना इकट्ठा करता है, जिसे नाजी शासन के दौरान जब्त कर लिया गया था. रिसर्च इंस्टीट्यूट के विशेषज्ञों ने एक विशेष डाटाबेस बनाया है जो पूरी दुनिया में अपने तरह का अकेला है. यह संस्था कलाकृतियों की उत्पत्ति की जांच करने वाले दुनिया भर के रिसर्चरों के लिए महत्वपूर्ण संपर्क है. इसीलिए जैसे ही कोकोश्का की रचना "बाजीगर की बेटी" की पहचान तय हुई, क्रिस्टी ने प्रोजेक्ट मैनेजर माइके हॉफमन से संपर्क किया. माइके को पता था कि यह रचना कब और कहां जब्त की गई थी.
कोकोश्का की पेंटिंग, जिसमें एक दुबली पतली लड़की को सिर्फ स्कर्ट पहने दिखाया गया है, बोली में 300,000 यूरो में बिकी. पेंटिंग के नए मालिक को उसके इतिहास के बारे में बता दिया गया है, जिसने डिजेनेरेट आर्ट रिसर्च डिवीजन को उसकी एक कॉपी और उसमें इस्तेमाल हुए सामानों और तकनीक के बारे में जानकारी मुहैया कराई है.
रहस्यों से उठ रहा है पर्दा
बर्लिन के इस संस्थान के रिसर्च का आधार वह सूची है जो नाजी अधिकारियों ने 1937 और 1938 के दौरान जब्त की गई कलाकृतियों के बारे में बनाई थी. इस सूची में 16,585 कलाकृतियां दर्ज हैं. माइके हॉफमन कहती हैं कि इस सूची में बहुत सारी रिक्तियां और भूल हैं, "हम उनमें सुधार करते हैं और प्रविष्ठियों को सही करते हैं." इसके अलावा यह संस्थान नाजियों के जब्त किए कलाकृतियों के मुद्दे पर रिसर्च पेपर का प्रकाशन करता है और फ्री यूनिवर्सिटी के छात्रों के लिए सेमिनार का आयोजन करता है.
हॉफमन कहती हैं कि कला इतिहास के राजनीतिक पहलुओं में छात्रों की बड़ी दिलचस्पी है और उनमें से कुछ का तो "डिजेनेरेट आर्ट" के साथ सीधा संबंध है. मसलन एक छात्रा योहान्ना क्लापरोठ ने कई साल पहले सॉदबी ऑक्शन हाउस में इंटर्नशिप की है. इंटर्नशिप के दौरान उन्होंने देखा कि कैसे कलाकृतियों को दुरुस्त करने वाले कलाकार ऐतिहासिक जानकारियों के लिए बर्लिन के रिसर्च संस्थान से नियमित संपर्क करते हैं.
क्लापरोठ कहती हैं, "मुझे यह इतना दिलचस्प लगा कि बाद में मैंने फ्री यूनिवर्सिटी में मास्टर्स प्रोग्राम में दाखिला ले लिया." वे इस समय नाजियों के जब्त किए कलाकृतियों को वापस करने वाले संग्रहालयों को इसके लिए मिले हर्जाने पर शोधपत्र लिख रही हैं.
छात्रों के साथ सहयोग
फ्री यूनिवर्सिटी में डिजेनेरेट आर्ट रिसर्च डिवीजन के सहयोग से 30 से ज्यादा मास्टर्स और पीएचडी थिसिस लिखी गई है. इस समय और भी कई छात्र शोध कर रहे हैं. इस रिसर्च सेंटर में जर्मनी के बाहर के छात्र भी दिलचस्पी दिखा रहे हैं. ब्रिटेन की पीएचडी कैंडिडेट लूसी वाटलिंग "20वीं सदी में जर्मन कला" प्रदर्शनी पर थिसिस लिख रही हैं. यह प्रदर्शनी 1938 में लंदन में नाजियों के "डिजेनेरेट आर्ट" प्रदर्शनी के विरोध में हुई थी.
लूसी वाटलिंग कहती हैं, "मुझे महसूस हुआ कि पहले लंदन में दिखाई गई रचनाओं की पृष्ठभूमि को समझना जरूरी है, और यह जानकारी मुझे सबसे अच्छी तरह बर्लिन में ही मिल सकती थी." जर्मन संस्था डीएएडी की एक साल की छात्रवृत्ति की वजह से उनका जर्मनी आना संभव हुआ. इस बीच वे इंगलैंड वापस लौट गई हैं और कुर्टोल्ड आर्ट इंस्टीट्यूट में अपनी थिसिस को पूरा करने का काम कर रही हैं.
बर्लिन के रिसर्च सेंटर के लिए छात्रों का सहयोग बहुत जरूरी है. छात्रों का रिसर्च संस्थान के काम का महत्वपूर्ण हिस्सा है, क्योंकि जितने दस्तावेज इस बीच संस्थान के पास पहुंच रहे हैं उनका निबटारा उसके चार कर्मचारियों और दो सहयोगियों के लिए संभव नहीं है. खासकर पूर्वी यूरोपीय देशों से नई सूचनाएं आ रही हैं, जहां युवा पीढ़ी संग्रहालयों में जिम्मेदार पदों पर आ रही है और ऐतिहासिक दस्तावेजों को जारी कर रही है.
फ्री यूनिवर्सिटी का "डिजेनेरेट आर्ट" रिसर्च डिवीजन इस साल दस साल का हो रहा है. फर्डीनांड माएलर फाउंडेशन की मदद से चलने वाला यह संस्थान ऐसी करीब 10,000 कलाकृतियों के बारे में जानकारी जुटा चुका है जो नाजियों ने जब्त की थीं. संस्थान के कर्मी छात्रों की मदद से जर्मन इतिहास के एक भूले पहलू को सामने लाने का महत्वपूर्ण काम कर रहे हैं.
रिपोर्टः बियांका श्रोएडर/एमजे
संपादनः निखिल रंजन