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नाजी सैनिकों का एक अनोखा अध्ययन

२३ अप्रैल २०११

"बम फेंकना मेरी जरूरत बन गई है. एक अजीब सी सनसनी होती है, यह एक लाजवाब अहसास है. यह उतना ही खूबसूरत है, जितना कि किसी को गोली मारना".यह उद्धरण जर्मन भाषा में लिखी किताब में है, सैनिक - लड़ने, मारने और मरने के प्रोटोकॉल.

सैनिक - लड़ने, मारने और मरने के प्रोटोकॉल.

यह किताब नाजी जर्मनी की सेना वेयरमाख्ट के उन सैनिकों के बयानों पर आधारित है, जो ब्रिटेन और अमेरिका के युद्धबंदी थे. जर्मनी के सोशल साइकोलॉजिस्ट हाराल्ड वेल्त्जर और इतिहासकार जोइन्के नाइत्जेल ने इनका विश्लेषण किया है. सन 2001 में ब्रिटिश नेशनल आर्काइव में इतिहासकार जोइन्के नाइत्जेल को संयोग से कुछ ऐसी सामग्री मिली, जिन पर अभी तक किसी ने काम नहीं किया था. यह थे नाजी जर्मनी की सेना के युद्धबंदियों के बयान, जिन्हें छिपाकर रिकॉर्ड किया गया था. ये युद्धबंदी आपस में बात करते थे, और उनको पता भी नहीं होता था कि कोई उन्हें सुन रहा है और सारी बातें करीने से दर्ज की जा रही हैं. ब्रिटिश व बाद में अमेरिकी अधिकारियों को उम्मीद थी कि ऐसी बातचीत से उन्हें युद्ध के बारे में कुछ उपयोगी जानकारी मिल सकती है. लेकिन उन्हें हथियारों या सेना की स्थिति के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली. इसके बदले आए दिन की जंग, मृतकों और हत्या के बारे में लगातार बातें की जाती रहीं. जोइन्के नाइत्जेल को कुल मिलाकर प्रोटोकॉल के डेढ़ लाख पृष्ठ मिले. यह सामग्री उन्हें इतनी रोचक लगी कि उन्होंने तय किया कि वैज्ञानिक कसौटी पर इनका विश्लेषण किया जाए.

लेखक हाराल्ड वेल्त्जरतस्वीर: Thomas Langreder

रोंगटे खड़े करने वाला

जोइन्के नाइत्जेल ने सोशल साइकोलॉजिस्ट हाराल्ड वेल्त्जर के साथ मिलकर इस काम को पूरा किया. इस सिलसिले में वे कहते हैं, "हमने पूरी कोशिश की है कि सीधे सीधे मूल्यों के आधार पर इन्हें न जांचा जाए, क्योंकि हम इससे कुछ दूर तक जाना चाहते थे. सिर्फ इतना कहने के बजाय कि ये कितने भयानक थे. हम समझना चाहते थे कि कैसे यह संभव होता है, आज के परिप्रेक्ष्य में भी देखना चाहते थे. यह काम अब तक नहीं हुआ था."

इसके बावजूद दोनों वैज्ञानिकों और उनके कर्मियों के लिए ये प्रोटोकॉल दिल दहलाने वाले थे. सैनिक एक दूसरे के सामने डींग हांकते थे कि किसी को मारने में कितना मजा आया या उन्होंने कितनी महिलाओं से बलात्कार किया. शायद ही कभी किसी ने किसी को टोका. हाराल्ड वेल्त्जर कहते हैं कि यह अपने काम के बारे में मर्दों की आम बातचीत है. और उनका काम था जंग. जब इतिहासकार नाइत्जेल ने सोशल साइकोलॉजिस्ट वेल्त्जर को प्रोटोकॉल के बारे में बताया, तो उन्हें लगा कि यह अनोखी सामग्री है. आम तौर पर सैनिकों की चिट्ठियों या उनके संस्मरणों से जंग के उनके अनुभव के बारे में पता चलता है. लेकिन हाराल्ड वेल्त्जर की राय में उससे पूरी तस्वीर नहीं मिलती है, " उसमें जो सामग्री मिलती है, वह बेहद सीमित होती है. मसलन कोई अपनी मां को चिट्ठी में नहीं लिखता कि उसने बलात्कार किया है. इस सामग्री के जरिये हम नजदीक से देख सकते थे और यह एक सनसनीखेज बात है. आज की जंग, मसलन अफगानिस्तान से भी हमें ऐसी सामग्री नहीं मिलती. अगर होती भी, तो उन्हें मुहैया नहीं कराया जाता."

लेखक जोइनके नाइत्जेलतस्वीर: Petra A. Killick

मानसिकता का विश्लेषण

इस किताब में बुनियादी सवालों पर भी गौर किया गया है: सैनिकों मानसिकता की कैसी होती है, जंग के बारे में उनका क्या नजरिया होता है? एक दिलचस्प बात यह भी है कि सैनिकों की सामाजिक स्थिति, उनके पद या उनकी उम्र का बातचीत के विषयों पर शायद ही कोई असर पड़ता है. दोनों वैज्ञानिकों का कहना है कि नाजी सेना के सैनिकों के प्रोटोकॉल के आधार पर युद्ध और सैनिकों के बारे में आम निष्कर्ष निकाले जा सकते हैं. जोइन्के नाइत्जेल कहते हैं, "जंग कारीगरी है, इस बात को भूलना नहीं चाहिए. और बचने के लिए, कामयाबी के लिए कारीगरी बेहतरीन होनी चाहिए. चाहे नाजी सेना के सैनिक रहे हों या आज अफगानिस्तान में जर्मन सैनिक, गोली चलाना तो गोली चलाना है. वर्दी अलग है, हथियार अलग हैं, लेकिन काम वही है. वेयरमाख्ट का सैनिक नाजी विचारधारा के बारे में नहीं सोचता था, और आज का जर्मन सैनिक भी जर्मनी के लोकतांत्रिक संविधान के बारे में नहीं सोचता है."

बेशक सेना में ऐसे कट्टर नाजी थे, जो पूरी राजनीतिक निष्ठा के साथ यहूदियों की हत्या करते थे. लेकिन ऐसे सैनिकों की संख्या कम थी. नाइत्जेल और वेल्त्जर यहां तक कहते हैं कि नाजी हिंसा दूसरी हिंसा से अधिक हिंसात्मक नहीं थी. विचारधारा नहीं, बल्कि सैनिक मूल्यों के आधार पर मर्द हत्यारे बन जाते हैं.

रिपोर्टः उज्ज्वल भट्टाचार्य

संपादनः आभा एम

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