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नाटो अधिकारी के बयान की आलोचना

२३ नवम्बर २०१०

अफगानिस्तान में आए दिन होने वाले हमलों की वजह से उसे बेहद असुरक्षित माना जाता है. इसलिए नाटो के एक अधिकारी ने जब अपने बयान में कहा कि काबुल के बच्चे लंदन, न्यू यॉर्क की तुलना में ज्यादा सुरक्षित हैं तो आलोचना शुरू हो गई.

तस्वीर: picture-alliance/ dpa

अफगानिस्तान में ब्रिटेन के पूर्व राजदूत मार्क सेडविल के इस बयान की राहत एजेंसियों और मानवाधिकार संगठनों ने आलोचना की है. बच्चों के लिए खबरों के विशेष कार्यक्रम न्यूजराउंड को उन्होंने बताया, "काबुल में बच्चे शायद लंदन और न्यू यॉर्क, ग्लासगो और अन्य कई शहरों की तुलना में ज्यादा सुरक्षित हैं." हाल ही में अफगान बच्चों ने कहा था कि बम हमलों के खतरे की वजह से वे सड़कों पर निकलने में असुरक्षित महसूस करते हैं.

तस्वीर: AP

लेकिन सेडविल काबुल को लंदन और न्यू यॉर्क की अपेक्षा ज्यादा सुरक्षित मानते हैं. उनके मुताबिक काबुल और अन्य अफगान शहरों में बरामद होने वाले बमों की संख्या बेहद कम है. "अधिकतर बच्चे अपनी जिंदगी सुरक्षित ढंग से गुजार रहे हैं. यह परिवार आधारित समाज है. इसलिए ऐसा लगता है कि जैसे यह गांवों का शहर हो."

लेकिन सेडविल के इस बयान की आलोचना भी शुरू हो गई है. सेव द चिल्ड्रन संगठन ने कहा है कि सेडविल का यह बयान सही तस्वीर पेश नहीं करता है. संगठन के मुताबिक आसानी से इलाज होने वाली बीमारियों जैसे निमोनिया और डायरिया की वजह से अफगानिस्तान में बच्चों की मौत हो रही है.

अफगानिस्तान में शिक्षा दर बेहद कम है. लड़कियां स्कूल नहीं जा पातीं. गरीबी और लंबे समय से चल रही लड़ाई के चलते बच्चों के भविष्य को नुकसान पहुंच रहा है. उन्हें छोटी उम्र में ही अपने परिवार का पालनपोषण करने के लिए काम करना पड़ता है.

अफगानिस्तान बाल मृत्यु दर के मामले में दुनिया में दूसरे नंबर पर है. सेव द चिल्ड्रन के मुताबिक एक बच्चे के रुप में जन्म लेने के लिए अफगानिस्तान सबसे खराब जगह है. पांच साल की उम्र तक पहुंचने से पहले ही चार में से एक बच्चे की मौत हो जाती है. संगठन के मुताबिक अफगानिस्तान में बच्चों की आवाज समझने की कोशिश होनी चाहिए.

वहीं अफगान इंडिपेंडेंट ह्यूमन राइट्स कमिश्नर नादर नादेरी का मानना है कि अफगानिस्तान में बच्चे अन्य बड़े शहरों की तुलना में ज्यादा कष्ट झेलते हैं. आस पास के देशों के शहरों से भी ज्यादा. गरीब और अनाथ बच्चों के लिए सामाजिक कल्याण की कोई व्यवस्था नहीं है.

रिपोर्ट: एजेंसियां/एस गौड़

संपादन: महेश झा

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