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नाटो की वापसी और अफगानिस्तान का भविष्य

२१ मई २०१२

शिकागो में हजारों प्रदर्शनकारी अफगानिस्तान युद्ध के खिलाफ आवाज उठा रहे हैं. अमेरिकी शहर में आयोजित शिखर सम्मेलन अफगानिस्तान से विदेशी सैनिकों की वापसी पर अहम फैसले लेने जा रहा है, लेकिन उसके बाद कैसा होगा अफगानिस्तान?

शिकागो में सम्मेलनतस्वीर: picture-alliance/dpa

अमेरिका में आर्थिक मंदी और इराक और अफगान लड़ाइयों में मारे गए सैनिकों से तंग नागरिक कुछ ऐसी बातें कर रहे हैं, "अंतरराष्ट्रीय शासक वर्ग की सेना है नाटो और हम आम जनता के टैक्स से लिए गए लाखों अमेरिकी डॉलर से वहां मौत और दहशत पैदा कर रहे हैं." रविवार को हो रहे प्रदर्शनों में पुलिस के साथ प्रदर्शनकारी भिड़े भी. चार पुलिस अधिकारी घायल हुए और प्रदर्शनकारियों के मुताबिक उनमें से 12 लोगों को गहरी चोटें आईं. कई लोगों को पुलिस की लाठी से चोट लगी. अफगानिस्तान युद्ध के खिलाफ प्रदर्शन में इराक और अफगान लड़ाइयों में हिस्सा लेने वाले कई अफसर शामिल थे. हालांकि प्रदर्शनों में उम्मीद से कम लोगों ने हिस्सा लिया. आयोजक कोएलिशन एगेंस्ट नाटो-जी8 की मांग है कि अमेरिका अफगानिस्तान को पूरी तरह छोड़ दे.

जर्मन चांसलर मैर्कल और नाटो प्रमुख रासमुसेन के साथ ओबामातस्वीर: picture-alliance/dpa

शिकागो में नाटो शिखर सम्मेलन हो रही है. बैठक के दौरान अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा की अगुवाई में नाटो देश अफगानिस्तान से अपने सैनिकों की वापसी पर चर्चा करेंगे. माना जा रहा है कि 2014 तक ज्यादातर देश सैनिक वापस लाना चाहते हैं. सम्मेलन के शुरू होने से पहले भी पांच लोगों को आतंकवाद और बम बनाने के आरोप में पकड़ा गया. यह लोग राष्ट्रपति ओबामा के चुनाव प्रचार दफ्तर के साथ पुलिस स्टेशनों और सरकारी दफ्तरों पर हमला करना चाहते थे.

अमेरिका के साथ साथ अफगानिस्तान में भी अमेरिकी और नाटो सेना से अफगानिस्तान परेशान है. एक ओर अफगान सैनिकों को डर है कि पुराने हथियारों से वे तालिबान का मुकाबला नहीं कर पाएंगे और दूसरी तरफ उन्हें अमेरिकी सैनिकों के रवैये पर भी भारी आपत्ति है. कई अफगान सैनिकों का मानना है कि विदेशी सैनिक बहुत जल्दी लौट रहे हैं और अफगानिस्तान को कुछ और दिनों तक उनकी जरूरत है. वहीं, ऐसे कई मामले हैं जिनमें अफगान सैनिकों ने विदेशी सैनिकों पर हमला किया. अफगान जवान मानते हैं कि विदेशी सैनिक उनका अपमान करते हैं, उन्हें अमेरिका से सस्ते और घटिया हथियार मिलते हैं, अमेरिकी सैनिक मृत शरीरों पर पेशाब करते हैं और चाहे वह तालिबान क्यों न हो, अफगान सैनिक इसे अपमान समझते हैं. अब्दुल करीम अफगान सेना के जवान हैं. उनका कहना है, "रूस के कलाशनिकोव अमेरिका के एम16 से बेहतर हैं. अमेरिकी हमें पुराने हथियार दे रहे हैं, उसे रंग कर नया सा बनाने की कोशिश की जाती है. हम उनका फेंका हुआ सामान नहीं चाहते." पिछले साल के सर्वेक्षण में पाया गया कि अफगान सुरक्षा बल अमेरिकी सैनिकों को घमंडी समझते हैं और कई बार उन्हें अफगानों की कोई चिंता नहीं होती. अफगान सैनिकों को इस बात से भी आपत्ति है कि अमेरिकी सैनिक बिना पूछे मस्जिदों में घुस जाते हैं और बिना वजह के सख्ती दिखाते हैं.

अफगान सेना का भविष्य खतरे मेंतस्वीर: dapd

अंतरराष्ट्रीय समुदाय अब अफगानिस्तान पर किस तरह का फैसला लेती है, यह तो आने वाले दिनों में ही पता चलेगा. लेकिन फ्रांस जैसे देश अभी से अपनी जनता को खुश करने और कई सालों से अफगानिस्तान में जूझ रहे सैनिकों को लाने का प्रण ले चुके हैं. लेकिन इस सब के बावजूद अफगानिस्तान में लोगों का मानना है कि विदेशी सैनिकों को कुछ दिन और वहां रुकना चाहिए.

रॉयटर्स/एपी/(एमजी/एएफ)

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