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नाटो के लिए असाधारण सुरक्षा का तानाबाना

३ अप्रैल २००९

फ्रांस के शहर श्ट्रासबुर्ग में नाटो बैठक के लिए असाधारण सुरक्षा इंतज़ामों के बीच डॉयचे वेले रेडियो के दक्षिण एशिया प्रमुख ग्रैहम लुकस के कवरेज से जुड़े अनुभव रोचक रहे. नाटो बैठक के इतर अनुभवों पर उनकी ब्लाग टिप्पणी.

नाटो बैठक के लिए अभूतपूर्व सुरक्षातस्वीर: DW / Alen Legovic

नाटो सम्मेलन की सुरक्षा के लिए जैसे असाधारण इंतज़ाम किए गए थे वैसे मैने पहले कभी देखे नहीं... जर्मनी और फ्रांस को बांटने वाली राइन नदी को पार कर ट्रेन जैसे ही आगे बढ़ी, मुझे शहर में दाखिल होते हुए सड़कों पर लगाए गए दर्जनों अवरोध दिखे. शहर में घुसने वाले हर वाहन की हथियारबंद पुलिस जांच कर रही थी.

श्ट्रासबुर्ग से पहले आखिरी स्टेशन पर हथियारों से लैस पुलिस ट्रेन पर चढ़ी और उसने यात्रियों और सामान की तलाशी लेना शुरू किया.

उनके परेशान हावभाव बताते थे कि उन्हें संकट की आशंका है. और उन्हें स्पष्ट रूप से बताया गया था कि अपना काम पूरी मुस्तैदी से करना है. जब हम श्ट्रासबुर्ग के स्टेशन पर पहुंचे तो हथियारों और बख्तरबंद से लैस दर्जनों पुलिस कर्मी प्लेटफार्म पर गश्त लगा रहे थे.

और वे सही भी थे. क्योंकि उसी शाम सैकड़ों नाटो विरोधी प्रदर्शनकारियों ने अवरोधों को तोड़कर श्ट्रासबुर्ग में उत्पात मचाया था. तीन सौ से ऊपर गिरफ़्तार हुए. श्ट्रासबुर्ग में ही, मेरी टैक्सी जिस रास्ते से मुझे ले जा रही थी वो एक जगह जाकर बंद था. वहां पर बैरियर लगा था. शहर के सुंदर सेंटर का ये एक किनारा था जहां मध्य युग के लकड़ी के मकान और एक अद्भुत कैथेड्रल है.

पैरा मिलेट्री के एक जवान ने मुझे और ड्राइवर को बताया कि टैक्सी और उसके लिए सड़क बस यहीं तक है. ड्राइवर विरोध करता रहा लेकिन वो टस से मस नहीं हुआ. मुझे बाकी रास्ता पैदल तय करना पड़ा. मैने एक पुलिस वाले से रास्ता पूछा लेकिन उसने कंधे उचकाए और कहा कि वो यहां के रास्तों के बारे में नहीं जानता क्योंकि वो उस यूनिट से है जो आमतौर पर राजधानी में तैनात रहती है. ख़ुशकिस्मती से होटल ज़्यादा दूर नहीं था. वो दुनिया भर से आए पत्रकारों से भरा पड़ा था जो बैठक को कवर करने आए थे. जल्द ही सब आपस में घुल मिल गए. और हरेक के पास अपनी कहानी थी कि कैसे श्ट्रासबुर्ग की कवरेज उनसे छूट ही जाती.

नाटो का निशान

अगली सुबह मुझे जल्दी निकलना था. मीडिया सेंटर के रास्ते पर मुझे फिर से सड़क पर लगे अवरोधों से टकराना पड़ा. और फिर शुरू हुआ पैदल मार्च, इस बार ये अच्छी खासी दूरी थी. एक्रीडिटेशन सेंटर की तरफ़ जाती खूबसरत सड़कें . फिर शटल बस से मीडिया सेंटर.

वहां तो सुरक्षा और सघन थी. सुरक्षा टीम सारे कम्प्युटरों की जांच कर रही थी और हर तरह के सामान की स्केनिंग की जा रही थी. तभी स्केनिंग का उपकरण ख़राब हो गया. नाराज़ पत्रकारों की लंबी लाइन लग गयी थी. आधा घंटे के इंतज़ार के बाद मैं आखिरकार मीडिया सेंटर पहुंचा, अपने लिए एक जगह तलाश की और उन तीन हज़ार पत्रकारों में एक हो गया जो नाटो बैठक कवर कर रहे थे. ख़ुद को व्यवस्थित किया ही था कि राष्ट्रपति बराक ओबामा ने विशाल वीडियो स्क्रीन पर अपना संबोधन शुरू कर दिया. चलो भैया काम पर लग जाओ. मैंने खुद से कहा.


- ब्लाग टिप्पणी- ग्रैहम लुकस, प्रमुख-दक्षिण एशिया विभाग, डॉयचे वेले रेडियो.




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