नाती पोतों की मदद से 91 की उम्र में ग्रेजुएट हुई महिला
९ अगस्त २०१७
थाईलैंड के फायाओ में रहने वाली 91 साल की किमलुन ने पैसों की किल्लत के चलते अपनी पढ़ाई छोड़ दी थी. लेकिन अपने नाती पोतों को डिग्रियां लेते और नौकरियां करते देख उन्होंने एक बार फिर पढ़ने की ठानी.
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थाईलैंड में 91 वर्षीय किमलुन जिनाकुल सबसे अधिक उम्र में ग्रेजुएट होने वाली व्यक्ति बन गयी हैं. उनकी बैचलर डिग्री उन्हें थाईलैंड के राजा वजिरालॉन्गकोर्न ने खुद दी है.
इस मुकाम को हासिल करने में किमलुन जिनाकुल के परिवार ने उनकी खूब मदद की. वे अपनी डिग्री लेने के लिए थाईलैंड के उत्तर में स्थित फायाओ से 700 किलोमीटर दूर सुखोठाई की थमथिरिरेट ओपन यूनिवर्सिटी पहुंचीं जहां उन्होंने स्नातक की डिग्री हासिल की.
किमलुन ने स्थानीय टीवी चैनलों को दिये इंटरव्यू में कहा, "अपनी पढ़ाई जारी रखना हमेशा से मेरा सपना था." उन्होंने कहा कि उन्होंने जूनियर हाई स्कूल तक पढ़ाई की थी लेकिन वह उसके बाद अपनी पढ़ाई जारी नहीं रख सकीं क्योंकि उनके परिवार के पास उस वक्त उतने पैसे नहीं थे.
उन्होंने कहा, "जब मैं छोटी थी, मुझे अच्छे नंबर मिलते थे. मुझे पढ़ने में हमेशा मजा आया." किमलुन को अपनी औपचारिक पढ़ाई जारी रखने की प्रेरणा 2011 में मिली, जब उनके बच्चे और उनके नाती-पोते अपनी डिग्रियां ले चुके थे और नौकरी करना शुरू कर चुके थे.
आमतौर पर लोग कहते हैं कि अब उम्र हो गयी है या वक्त निकल गया है लेकिन किमलुन कहती हैं कि पढ़ाई करने में कभी देर नहीं होती है. किमलुन का पोता कहता है कि वह बहुत दृढ़ निश्चय वाली महिला हैं. परिवार के लोगों ने इस बात का हमेशा ध्यान रखा कि किमलुन का स्वास्थय ठीक रहे.
यूनिवर्सिटी ने कहा कि किमलुन को पढ़ाई के दौरान कोई अलग या खास सुविधा नहीं दी गयी. वे कई परीक्षाओं में फेल भी हुईं. किमलुन कहती हैं कि यूनिवर्सिटी ने उनकी काफी मदद की. यूनिवर्सिटी ने उनको ग्राउंड फ्लोर पर कमरे दिये ताकि उन्हें सीढ़ियां ना चढ़नी पड़ें.
थमथिरिरेट ओपन यूनिवर्सिटी थाईलैंड की पहली यूनिवर्सिटी है जो उम्रदराज लोगों के लिए डिस्टेंस लर्निंग के कोर्स कराती है. इस यूनिवर्सिटी में पढ़ने वाले लगभग 200 से भी ज्यादा लोगों की उम्र 60 से ज्यादा है.
एसएस/एके (डीपीए)
ऐसा कौनसा काम है जो औरतों के बस का नहीं?
आज हर तरह की नौकरी और कामकाज में महिलाएं और पुरुष कंधे से कंधा मिलाकर चल रहे हैं. पुरुषों का काम समझे जाने वाले कई क्षेत्रों में महिलाओं ने पुरानी धारणा को तोड़ नई पीढ़ी के लिए मिसालें छोड़ी हैं.
तस्वीर: Reuters/O. Orsal
"माचोवाद है कायम"
दुनिया भर में कामकाज की जगहों पर बेहतर लैंगिक संतुलन बनाने यानि अधिक से अधिक महिलाओं को वर्कफोर्स में शामिल करने का आह्वान हो रहा है. फायरफाइटर का काम करने वाली निकारागुआ की योलेना टालावेरा बताती हैं, "जब मैंने अग्निशमन दल में काम शुरू किया था, तब पुरुषों को लगता था कि सख्त ट्रेनिंग के चलते मैं ज्यादा दिन नहीं टिक सकूंगी. हालांकि मैंने दिखा दिया कि मैं भी कठिन से कठिन चुनौती संभालने के लायक हूं."
तस्वीर: Reuters/O. Rivas
"अपनी काबिलियत में हो यकीन"
खावला शेख जॉर्डन के अम्मान में प्लंबर का काम करती हैं और दूसरी महिलाओं को प्लंबिंग का काम सिखाती भी हैं. शेख का अनुभव है, "हाउसवाइफ महिलाएं अपने घर में मरम्मत के लिए महिला प्लंबर को बुलाने में ज्यादा सुरक्षित महसूस करती हैं." इसके अलावा वे, "लैंगिक असामना को कम करने के लिए सभी ऐसे सेक्टरों में महिलाओं और पुरुषों दोनों को काम सीखने के बराबर मौके दिए जाने की वकालत करती हैं."
तस्वीर: Reuters/M. Hamed
"लड़कों को भी औरतें ही बड़ा करती हैं"
फ्रांस के ऑइस्टर फार्म में अपनी नाव पर खड़ी फोटो खिंचवाती वैलेरी पेरॉन कहती है कि लैंगिक बराबरी की सीख बचपन में जल्द से जल्द दे देनी चाहिए. वैलेरी कहती हैं, "यह तो हमारे ऊपर है कि जब लड़कों को बड़ा करें तो उनमें बचपन से ही औरतों से बराबरी का जज्बा डालें. बचपन की परवरिश को सुधारने की जरूरत है. लड़के चाहें तो गुड़िया से खेलें और लड़कियां चाहें तो खिलौना कारों से."
तस्वीर: Reuters/R. Duvignau
"मैं पुरुषों से बेहतर हूं!"
फिलीपींस की ओकॉल एक बैकहो ऑपरेटर हैं. तीन बच्चों की इस मां को अपनी काबिलियत पर पूरा भरोसा है. वे कहती हैं, "बड़े ट्रक चलाने वाली और बैकहो चलाने वाली बहुत कम महिलाएं हैं. लेकिन अगर पुरुष कोई काम कर सकते हैं तो महिलाएं क्यों नहीं? मैं तो पुरुषों से इस मामले में बेहतर हूं कि वे तो केवल ट्रक चलाते हैं जबकि मैं दोनों चला सकती हूं."
तस्वीर: Reuters/E. De Castro
"होता है लैंगिक भेदभाव"
चीन के बीजिंग में डेंग चियान निर्माण स्थलों पर डेकोरेटर का काम करती हैं. उनका सीधा सादा उसूल है, "कई बार लैंगिक भेदभाव होता है. इस बारे में हम कुछ कर भी नहीं सकते. आखिरकार, हमें उस अप्रिय स्थिति को भी झेलना होता है और आगे बढ़ना होता है. चियान भी तीन बच्चो की मां हैं और अपने काम से घर चलाती हैं.
तस्वीर: Reuters/J. Lee
"भेदभाव की शुरुआत दिमाग से"
इस्तांबुल, तुर्की की सेर्पिल सिग्डेम एक ट्रेन ड्राइवर हैं. वे बताती हैं, "23 साल पहले जब मैंने ड्राइवर की नौकरी के लिए आवेदन किया था, तब मुझे कहा गया कि यह पुरुषों का पेशा है. इसीलिए मुझे लिखित परीक्षा में पुरुषों से बहुत आगे निकलना था तभी नौकरी की संभावना बनती."
तस्वीर: Reuters/O. Orsal
"समाज बदला है"
जॉर्जिया की सेना में कैप्टन एकाटेरीने क्विलिविडे एयर फोर्स के हेलिकॉप्टर के सामने खड़ी होकर 2007 में सेना में भर्ती होने के समय को याद करती हैं. वे बताती हैं, "शुरू में कई परेशानियां थीं, कभी ताने तो कभी लोगों का सनकी रवैया झेला. हमेशा लगा कि वे मेरा यहां होना बिल्कुल पसंद नहीं करते. लेकिन पिछले 10 सालों में समाज भी काफी बदला है और महिला पायलट होना एक सामान्य बात हो गई है.
तस्वीर: Reuters/D. Mdzinarishvili
"हर दिन होती है औरतों की परीक्षा"
स्पेन के मैड्रिड में पालोमा ग्रानेरो इनडोर स्काईडाइविंग के विंड टनेल की हवा में गोते लगाती हुई. ग्रानेरो खुद एक स्काईडाइविंग इंसट्रक्टर हैं. कहती हैं, "पुरुषों को कुछ साबित नहीं करता पड़ता, जैसे हमें करना पड़ता है. यहां भी इंसट्रक्टर का काम ज्यादातर पुरुषों को जाता है और ज्यादातर औरतों को प्रशासनिक काम ही करने को मिलता है." (नादीने बेर्गहाउसेन/आरपी)