1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

नाम में बहुत कुछ रखा है

२ फ़रवरी २०११

वेबसाइट पर लेख पढ कर हमारे बहुत से श्रोता हमें अपनी प्रतिक्रियाएं भेजते हैं. कुछ मानते हैं कि जो लिखा गया है वे ठीक है पर कुछ का कहना है....

तस्वीर: AP

गांधी से बड़े तेंदुलकर, नोकिया सबसे ऊपरः अपने प्रोडक्ट को किसी के नाम से कोई भी सेल करे, किसी को कोई इनकार नहीं तो फिर क्यों आप और हम बोले अब. बहुत से लोग गांधी के नाम का ही प्रयोग करते हैं. कभी कभी आवाज उठ जाती है वो भी जब कांग्रेस पार्टी के वोटों का टाइम हो. कहां, कब, किस का नाम अपने माल को बेचने का प्रयोग हो कोई कुछ नहीं कह सकता.

तस्वीर: picture alliance/dpa

अब देखिए शीला की जवानी और मुन्नी बदनाम हुई गाने के आने से इन महिलाओं के नाम से कितना शोर मचा. सच में इन नामों को बदनाम कर दिया. इस तथ्य से रूपा अंडरवियर कोई नहीं बोलता जबकि बहुत सी लडकियों का नाम रूपा होता है. भगवान श्रीगणेशजी को तो कहीं भी किसी रूप में उसका नाम जुड जाता है, बेचारे क्या करें. कहावत है कि उनको यही आशीर्वाद मिला कि जो भी दुनिया में कुछ करे, पहले तुम्हारे नाम से श्रीगणेश होगा. अब वो क्या कर सकते, उनके वक्त को वो ऐसा कर नहीं सकते तो सचिन या गांधी भी इनका कुछ नहीं कर सकते. इनके नाम से हमारा माल बिकता है और बच्चों को मालूम भी रहता है., वरना कौन जाने सचिन क्रिकेटर या फिल्म एक्टर यही बात है. सही हमारे देश के बहुत से लोगों को हमारे देश के प्रधानमंत्री का नाम ही नहीं पता. कुछ से पूछो तो कह देते है सिंह इज किंग, शहीदों के नाम नहीं जानते. यह विज्ञापन ही है जिसके जरिए लोगों की पहचान बनी रहती है, इस लिए कोई कुछ मत सोचों – तुम्हारे नाम से कमा रहा है वरना अपनी पहचान बनाने के लिए बहुत मशक्कत करनी पड़ती है.

"एयर इंडिया ने उठाया मिस्र के हालात का फायदा" इस समाचार से पता चलता है अब इस जमाने में किसी को कोई प्रवाह नहीं. यात्री को जितना लूट सको लूट लो. फिर मौका मिले या नहीं. देश की इज्जत का सवाल एयर इंडिया को भी नहीं पता ऐसा मौका फिर कहां हाथ लगे.

- बृजकिशोर खंडेलवाल

********

फ्रांस में हर साल 400 किसान करते हैं आत्महत्याः शीर्षक रिपोर्ट पढ़ कर मन दहल गया. परिस्थितियां चाहे जो हों, इतनी तादाद में खुदकुशी बहुत गंभीर मामला है. यकायक जीवन और काम का बोझ इसका मुख्य कारण बतलाया गया, तो क्या छोटे परिवार की अवधारणा गलत है. यह फिर शिक्षा के बदलते स्तर और नौकरीपेशा अपनाना इसके लिए जिम्मेदार हैं? कृपया इस पर भी रोशनी डालते तो अच्छा होता. विचारात्मक सामग्री पेश करने के लिए धन्यवाद.

सुरेश अग्रवाल , केसिंगा, उडीसा

********

- निरक्षरता से परेशान यूरोपः लेख पढ़कर आश्चर्य हुआ, लेकिन गरीब लोग भी सब स्थानों पर हैं और गरीबी अपने आप में सबसे बड़ा अभिशाप है. विस्तृत जानकारी देने के कारण आपकी वेबसाइट से किसी भी समाचार या घटना के बारे में मस्तिष्क में बहुआयामी तस्वीर बन जाती है. आपका तरीका प्रशंसनीय है.

- प्रमोद महेश्वरी, शेखावटी, राजस्थान

*******

संकलनः कवलजीत कौर

संपादनः ए जमाल

डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी को स्किप करें

डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी

डीडब्ल्यू की और रिपोर्टें को स्किप करें

डीडब्ल्यू की और रिपोर्टें