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नासा का यान भी चला मंगल की ओर

१९ नवम्बर २०१३

भारतीय मंगलयान के धरती से रवाना होने के दो हफ्ते बाद अमेरिकी एजेंसी नासा ने भी एक मानव रहित अंतरिक्ष यान मंगल की ओर रवाना कर दिया है.

तस्वीर: Getty Images

नासा का अंतरिक्ष यान मावेन पृथ्वी के पड़ोसी ग्रह के वातावरण की पड़ताल करेगा. सफेद एटलस वी 401 रॉकेट की मदद से मार्स एटमॉस्फेयर एंड वोलाटाइल इवॉल्यूशन (मावेन) अमेरिकी प्रांत फ्लोरिडा के समय के मुताबिक दोपहर 1 बजकर 28 मिनट पर अंतरिक्ष के सफर पर रवाना हुआ. एक घंटे के अंदर ही यह रॉकेट से अलग हो कर मंगल ग्रह की यात्रा पर चल पड़ा. मंगल ग्रह तक पहुंचने में इसे 10 महीने लगेंगे. मिशन के प्रमुख खोजकर्ता ब्रुस जाकोस्की ने कहा, "यह दिन शुरू से लेकर आखिर तक एकदम शानदार रहा." नासा के फ्लाइट डायरेक्टर ओमर बाएज ने उड़ान भरने से लेकर रॉकेट से अलग होने तक के कार्यक्रम को पूरी तरह 'दोषरहित' कहा.

70 करोड़ किलोमीटर दूर मंगल ग्रह तक यह ऑर्बिटर सितंबर 2014 में पहुंचेगा. इसके दो महीने बाद इसका वैज्ञानिक मिशन शुरू होगा. यह अभियान नासा के पिछले मिशन से अलग है क्योंकि यह रूखे सतह की नहीं बल्कि ऊपरी वातावरण के रहस्यों की पड़ताल करेगा. मावेन के साल भर लंबे मिशन का ज्यादातर हिस्सा मंगल की सतह से ऊपर 6000 किलोमीटर लंबे परिक्रमा पथ पर घूमते हुए बीतेगा. इस दौरान पांच बार ऐसा होगा कि यह मंगल ग्रह की धरती से महज 125 किलोमीटर की दूरी पर होगा. ऐसा इसलिए किया जाएगा ताकि मंगल ग्रह के वातावरण के अलग अलग स्तरों से आंकड़े जमा किए जा सकें.

तस्वीर: picture-alliance/dpa

रिसर्चर इस मिशन को मंगल के वातावरण में अरबों साल पहले हुई कुछ घटनाओं की गुम हुई कड़ियां तलाशने वाला बता रहे हैं. वैज्ञानिकों का अनुमान है कि शायद उन्हीं घटनाओं के कारण पृथ्वी का पड़ोसी ग्रह जीवन के लिए उपयुक्त पानी वाली धरती से बंजर रेगिस्तान में तब्दील हो गया.

मावेन पर मौजूद तीन अहम उपकरणों में एक सोलर विंड और आयनोस्फेयर गेज या पार्टिकल्स एंड फील्ड्स पैकेज भी है जिसे कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी के बर्केले स्पेस साइंस लैब में बनाया गया है. दूसरे प्रमुख उपकरण का नाम है रिमोट सेंसिंग पैकेज जिसे कोलोराडो यूनिवर्सिटी की लेबोरेट्री फॉर एटमोस्फेरिक एंड स्पेस फीजिक्स ने बनाया है. यह ऊपरी वातावरण और आयनोस्फेयर के गुणों का पता लगाएगा. मावेन पर मौजूद तीसरा अहम उपकरण है न्यूट्रल गैस और आयन मास स्पेक्ट्रोमीटर जिसे नासा के गोडार्ड स्पेस फ्लाइट सेंटर ने बनाया है. यह न्यूट्रल और आयनों के आइसोटोप की संरचना का अध्ययन करेगा.

अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने मंगल की सतह का अध्ययन करने के लिए लाल ग्रह पर कई रोवर भेजे हैं जिनमें सबसे नया है क्यूरियोसिटी, जो पिछले साल मंगल की सतह पर पहुंचा. इसी महीने की शुरुआत में भारत ने जो मंगलयान भेजा वह ग्रह के वातावरण में मीथेन गैसों की मौजूदगी का पता लगाएगी. भरतीय मंगलयान मावेन के दो दिन बाद वहां पहुंचेगा. 2016 में एक और ऑर्बिटर मंगल पर भेजा जा रहा है जो यूरोपीय और रूसी अंतरिक्ष एजेंसियां भेज रही हैं. एक्सोमार्स ट्रेस गैस ऑर्बिटर मंगल के वातावरण में मीथेन और दूसरी गैसों के बारे में पता लगाएगी जिससे जीवन की संभावना का संकेत मिल सके.

एनआर/एजेए (एएफपी)

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