प्रशांत और कैरिबिक सागर के बीच बसे निकारागुआ में तनावपूर्ण शांति है. राष्ट्रपति डानिएल ऑर्तेगा के खिलाफ हाल में हिंसक प्रदर्शन हुए जिसमें 15 लोगों की मौत हो गई. फिलहाल संघर्ष विराम है, लेकिन हालात कभी भी बिगड़ सकते हैं.
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तानाशाह अनस्तासियो सोमोसा को 1979 में सत्ता से उखाड़ने वाले वामपंथी नेता ऑर्तेगा ने जब गद्दी संभाली तो लगा कि वह देश की बड़ी उम्मीद बनकर उभरेंगे. लेकिन आलोचकों की मानें तो दशकों राज करने वाले राष्ट्रपति खुद एक तानाशाह के तौर पर सामने आए हैं और अपने आदर्शों को ताक पर रख दिया. उन्होंने अपने विरोधियों को खदेड़ना शुरू किया और सारा ध्यान अपने कारोबार को बढ़ाने व परिवार के लिए धन जुटाने में लगा दिया.
अब देश में सरकार का विरोध करने वालों में सिर्फ छिटपुट उपद्रवी नहीं हैं, बल्कि छात्र, कारोबारी व आम लोग उनकी सरकार का विरोध कर रहे हैं. सोमोसा के सत्ता से जाने के बाद ऐसा विरोध देश में पहली बार हो रहा है. पिछले हफ्ते सरकार और विरोधियों ने संघर्ष विराम की घोषणा की और तय किया कि पिछले दिनों हुई हिंसा की निष्पक्ष जांच विदेशी जांच एजेंसी से कराई जाए. हालांकि इस घोषणा के कुछ घंटे बाद ही सरकार समर्थक एक गुट ने कथित तौर पर राजधानी मानागुआ के एक घर में आग लगा दी जिसमें 6 लोग जिंदा जलकर मर गए. सरकार ने घटना से पल्ला झाड़ा, लेकिन मानवाधिकार संगठन ईएनआईडीएच ने आरोप लगाया कि यह सरकार का लोगों के खिलाफ आतंक है.
सीरिया पर हमला: कौन किसके साथ?
सीरिया पर बीती रात हमले के बाद एक अंतरराष्ट्रीय तीखी बहस शुरू हो गई है. एक तरफ जहां सीरिया और राष्ट्रपति असद का समर्थन करने वाले देश इसकी निंदा कर रहे हैं तो दूसरी तरफ अमेरिकी हमले को उचित बताने वाले देश भी लामबंद हैं.
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सीरिया
सीरिया के विदेश मंत्रालय ने कहा है, "सीरियाई अरब रिपब्लिक क्रूर अमेरिकी, ब्रिटिश और फ्रेंच हमलों की कड़ी निंदा करती है, यह अंतरराष्ट्रीय कानून का घोर उल्लंघन है."
रूसी राष्ट्रपति के दफ्तर से जारी बयान में कहा गया है, "रूस इन हमलों की निंदा करता है, जहां रूसी सेना कानूनी सरकार को आतंकवाद से लड़ने में मदद दे रही है." रूस ने यह भी कहा है कि वह संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की आपात बैठक बुलाने की मांग कर रहा है.
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चीन
चीन ने अपनी प्रतिक्रिया में कहा है कि वह अंतरराष्ट्रीय संबंधों में "ताकत का इस्तेमाल" करने के खिलाफ है. चीन ने इस विवाद का राजनीतिक समाधान और "अंतरराष्ट्रीय कानून के दायरे में वापस लौटने की मांग की है."
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ईरान
सीरियाई राष्ट्रपति बशर अल असद के प्रमुख क्षेत्रीय सहयोगी ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्लाह अली खमेनेई ने इन हमलों के बाद अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप, फ्रांस के राष्ट्रपति एमानुएल मैक्रां और ब्रिटेन की प्रधानमंत्री थेरीजा मे को "अपराधी" कहा है.
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कतर
खाड़ी देशों की तरफ से प्रतिक्रिया देने वालों में कतर पहला देश था. सरकारी समाचार एजेंसी में जारी बयान में आम लोगों पर सीरियाई सरकार के हमले रोकने के लिए इन हमलों का समर्थन किया गया है.
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नाटो
नाटो के महासचिव जेन्स स्टोल्टेनबर्ग ने एक बयान जारी कर हमलों का समर्थन किया है. बयान में कहा गया है. हमले, "सीरिया के लोगों पर सत्ता के और रासायनिक हमले करने की क्षमता को कम कर देंगे."
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संयुक्त राष्ट्र
संयुक्त राष्ट्र के महासचिव अंटोनियो गुटेरेस ने अपने बयान में कहा है, "मैं सभी सदस्य देशों से इन खतरनाक परिस्थितियों में संयम दिखाने और ऐसे कदमों से बचने का अनुरोध करता हूं जिससे स्थिति बिगड़ेगी और सीरियाई लोगों की हालत खराब होगी."
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तुर्की
तुर्की के विदेश मंत्रालय ने कहा है, "हम इस अभियान का स्वागत करते हैं, जिसने डूमा पर हुए हमले के बाद मानवीय अंतरात्मा को थोड़ी राहत दी है." तुर्की ने सीरिया पर "मानवता के खिलाफ अपराध" का आरोप लगाया है.
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यूरोपीय संघ
यूरोपीय परिषद के अध्यक्ष डॉनल्ड टस्क ने ट्वीटर पर कहा है कि यूरोपीय संघ इन हमलों का समर्थन करता है और, "न्याय के पक्ष में अपने सहयोगियों के साथ खड़ा रहेगा."
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जर्मनी
जर्मनी की चांसलर अंगेला मैर्केल ने इन हमलों को एक "जरूरी और वाजिब सैन्य दखलंदाजी कहा है."
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नीदरलैंड्स, पुर्तगाल, रोमानिया, स्लोवेनिया, स्पेन
चेक गणराज्य, नीदरलैंड्स, पुर्तगाल, रोमानिया, स्लोवेनिया और स्पेन ने इन हमलों का बचाव किया है और इसे रासयानिक हमलों के सबूतों के माध्यम से न्यायोचित बताया है.
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सरकार समर्थक गुटों का आम लोगों पर हमला
दो महीने से ज्यादा से चल रहे आंदोलन में की सड़कों पर चारों ओर टूटे-फूटे बैरिकेड्स दिखाई पड़ रहे हैं. आरोप है कि सरकार समर्थक गुटों ने हर दिन विरोधियों को निशाना बनाकर हमला किया है. चश्मदीदों का कहना है कि नकाबपोश हमलावर पुलिस के साथ मिले है और एके-47 से फायरिंग कर रहे हैं.
एक मानवाधिकार संगठन का दावा है कि सरकार विरोधी लोगों पर जहरीले कीटनाशक का छिड़काव किया जा रहे है. 18 अप्रैल से शुरू हुए प्रदर्शन में अब तक 215 लोगों की मौत हो चुकी है जबकि करीब 1400 लोग घायल हैं. सरकारी आंकड़ों में सिर्फ 46 मौत की रिपोर्ट है और इन्हें सरकार ने अपराधी बताया है.
इस्तीफे से कम मंजूर नहीं
संघर्ष विराम समझौते के बाद सड़कों से बैरिकेड्स और बाधाओं को हटाने का काम शुरू हो गया है. कुछ सरकार विरोधी गुट अब भी बैरिकेड्स को नहीं हटाना चाह रहे हैं. मजदूरों के नेता फ्रांसिस्का रेमिरेस का कहना है कि वे तब तक सड़कों से नहीं हटेंगे जब तक राष्ट्रपति ऑर्तेगा इस्तीफा नहीं दे देते. 2 मीटर लंबा बैरिकेड लगाने वाली लुसिला का कहती है, "हम ऑर्तेगा और उनकी दमनकारी नीतियों से तंग आ चुके हैं. उपराष्ट्रपति और ऑर्तेगा की पत्नी रोसारियो मुरिलो ने भी जनता को ठेस पहुंचाई है."
हिंसक हालात में सेना ने निष्पक्ष होकर काम किया है. सेना के पूर्व मेजर रॉबेर्तो सैमकैम के मुताबिक, पेंशन सुधार न होने से एफएसएलएन में कई विरोधी पैदा हो गए और ऑर्तेगा के कारोबार को लेकर उनकी नाराजगी बढ़ती चली गई. देश के हालात को देखते हुए राष्ट्रपति पर अमेरिका का दबाव बढ़ गया है, लेकिन वह अपने और अपने परिवार के लिए सुरक्षा सुनिश्चित कर लेना चाहते हैं.
विरोधियों के प्रवक्ता अजाहलिया सोलिस का मानना है कि हो सकता है कि ऑर्तेगा 2021 के चुनाव को आगे बढ़ा दे जिससे उन्हें हालात को संभालने का मौका मिले, लेकिन निकारागुआ की आम जनता ऐसा होने नहीं देगी और उसे राष्ट्रपति के इस्तीफे से कम कुछ मंजूर नहीं है.
सुधारवादी दल बना भ्रष्ट
राष्टपति की सैंडिनिस्ता पार्टी एफएसएलएन ने देश के विकास के लिए कई काम किए हैं. सत्ता में आने के महज 5 महीने के अंदर ही देश में साक्षरता दर 50 फीसदी से 87 फीसदी हो गई. स्वास्थ्य सेवा के लिए कई योजनाएं शुरू की गई और भूमि अधिग्रहण की नई नीति बनाकर करीब 2 लाख परिवारों को जमीन दी गई. लेकिन वक्त के बीतने के साथ ही सैंडिनिस्ता संगठन के ऊपर भ्रष्टाचार और तानाशाही के आरोप लगने लगे. 2007 में ऑर्तेगा के दोबारा पद पर आने के बाद स्थिति बदतर हो गई.
2017 में 4.5 फीसदी आर्थिक विकास दर के बावजूद लैटिन अमेरिका का सबसे कम विकसित देश था. विश्व बैंक के आंकड़े बताते है कि 60 लाख की आबादी वाले इस देश में एक चौथाई लोग गरीबी में जीवनयापन कर रहे हैं. अर्थशास्त्री अडोल्फो एस्वेडो कहते हैं कि जिस तरह से आंदोलन चल रहा है, निकारागुआ को आर्थिक रूप से स्थिर होने में वक्त लगेगा.
सीरिया में जंग के सात साल, क्या हुआ हासिल
सीरिया का गृहयुद्ध आठवें साल में दाखिल हो गया है. 2011 में राष्ट्रपति बशर अल असद के खिलाफ बगावत से शुरू हुआ यह संघर्ष एक बर्बर गृहयुद्ध में तब्दील हो गया. एक नजर इस जंग की बर्बादियों पर जो चंद आंकड़े बन कर रह गई हैं.
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मौतों का अंबार
सीरिया के गृहयुद्ध में बीते सात साल के दौरान लगभग 5.11 लाख लोग मारे गए हैं. दोनों तरफ से होने वाली सैन्य कार्रवाइयों में बड़ी संख्या में आम लोग भी मारे जाते हैं.
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दरबदर सीरियाई
गृहयुद्ध के कारण 60 लाख से ज्यादा लोग बेघर हुए हैं जिनमें पचास लाख से ज्यादा लेबनान, जॉर्डन और तुर्की जैसे देशों में शरण लिए हुए हैं. हजारों लोग यूरोप तक भी पहुंचे हैं.
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गरीबी में जिंदगी
लेबनान में रहने वाले तीन चौथाई सीरियाई शरणार्थी हर दिन करीब ढाई सौ रुपये से भी कम पर गुजारा कर रहे हैं. वहीं उनके बच्चों पर बाल मजदूरी और छोटी उम्रों में शादी का खतरा मंडरा रहा है.
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घर वापसी
इस बीच हजारों शरणार्थी सीरिया लौटे भी हैं. 2017 में सीरिया लौटने वालों की संख्या लगभग 66 हजार रही. हालांकि वहां नई जिंदगी की शुरुआत आसान नहीं, क्योंकि बहुत से लोगों के घर मलबे में तब्दील हो गए हैं.
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खाने के लाले
संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि 29 लाख सीरियाई ऐसे इलाकों में रहते हैं जहां लड़ाई के कारण पहुंचना मुश्किल है. 65 लाख सीरियाई लोगों के पास पर्याप्त खाना नहीं है जबकि 40 लाखों पर भूख का खतरा मंडरा रहा है.
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स्वास्थ्य कर्मियों पर हमले
राष्ट्र का कहना है कि 2018 के शुरुआती दो महीनों में स्वास्थ्य केंद्रों और स्वास्थ्य कर्मियों पर 67 हमले हुए हैं. यह 2017 में इस अवधि के दौरान होने वाले हमलों की तुलना में दोगुना है.
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मजबूत होते असद
रूस 2015 में राष्ट्रपति असद के समर्थन में सीरियाई गृह युद्ध में कूदा. इसके अलावा सीरियाई सरकार को ईरान का भी समर्थन मिल रहा है. इसी के बूते सरकारी बल बड़े इलाके को फिर हासिल करने में कामयाब रहे हैं. विद्रोहियों के कई बड़े गढ़ अब सरकार के नियंत्रण में हैं.
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कानूनी जंग
माना जा रहा है कि सीरिया के लोग 20 लाख से ज्यादा मुकदमे ठोंक सकते हैं ताकि उन्हें अपने ध्वस्त घरों और संपत्ति की बर्बादी का हर्जाना मिल सके. (स्रोत: यूनिसेफ, यूएनएचसीआर, विश्व खाद्य कार्यक्रम, सीरियन ऑब्जरवेट्री फॉर ह्यूमन राइट्स)