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अस्पताल के बिस्तरों से ज्यादा कोरोना के मरीज

२५ मई २०२०

भारत कोरोना प्रभावित दुनिया के शीर्ष 10 देशों में शामिल हो गया है. इसके साथ ही अस्पतालों में बिस्तरों की कमी की बात सामने आने लगी है. बुरी तरह से प्रभावित मुंबई में अस्पताल के बिस्तर कम पड़ने लगे हैं.

Indien | Coronavirus: Ärtzte mit Sicherheitsanzügen in Ahmedabad
तस्वीर: Reuters/A. Dave

मनीत पारीख की मां के जब कोरोना से संक्रमित होने का पता चला तो उन्हें आनन फानन में मुंबई के लीलावती अस्पताल ले जाया गया लेकिन वहां के अधिकारियों ने बताया कि अस्पताल में क्रिटिकल केयर बेड खाली नहीं है. पांच घंटे की मेहनत और दर्जनों फोन कॉल के बाद परिवार को बॉम्बे अस्पताल में भर्ती किया गया. एक दिन बाद 18 मई को पारीख के 92 साल के दादा को घर पर सांस लेने में दिक्कत होने लगी तो वो उन्हें लेकर ब्रीच कैंडी अस्पताल गए लेकिन वहां जगह नहीं मिली.

पारीख ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स को बताया, "मेरे पिता उनके आगे गिड़गिडा रहे थे. उन्होंने कहा कि उनके पास बेड खाली नहीं है, सामान्य बेड भी नहीं." उन्हें बाद में उसी दिन बॉम्बे हॉस्पिटल में जगह मिल गई लेकिन कुछ ही घंटों बाद उनकी मौत हो गई. उनके टेस्ट के नतीजों से पता चला कि वो कोरोना वायरस से संक्रमित थे. पारीख मानते हैं कि इलाज में देर होने की वजह से उनके पिता की जान गई. लीलावती अस्पताल के अधिकारियों ने रॉयटर्स से बात करने से मना कर दिया और ब्रीच कैंडी अस्पताल के प्रतिनिधियों ने इस पर प्रतिक्रिया के अनुरोध का कोई जवाब नहीं दिया.

निजी अस्पतालों पर संदेह

बीते कई सालों से भारत में निजी अस्पतालों ने देश के स्वास्थ्य सेवा की कमान एक तरह से संभाल रखी है. सरकारी अस्पतालों की दुर्दशा और धन की कमी का निजी अस्पतालों ने जम कर फायदा उठाया है. हालांकि पारीख परिवार के साथ जो हुआ उसे देख कर यह आशंका मजबूत होने लगी है कि कोरोना वायरस के मामले अगर ज्यादा बढ़ गए तो भारत के निजी अस्पताल भी उसका बोझ उठाने की स्थिति में नहीं हैं.

सोमवार को भारत में कोरोना के 6,977 मामले सामने आए जो देश के लिए एक दिन में संक्रमित होने वाले लोगों की अब तक की सबसे बड़ी तादाद है. सरकारी आंकड़े बता रहे हैं कि दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी आबादी वाले देश में कोरोना के मामले 13 दिन में दोगुने हो रहे हैं. सोमवार को संक्रमण में हुई बढ़ोत्तरी के साथ ही भारत ईरान को पीछे छोड़ कोरोना से सबसे ज्यादा प्रभावित 10 देशों में शामिल हो गया है.

मिशिगन यूनिवर्सिटी में जैव सांख्यिकी और महामारी विज्ञान के प्रोफेसर भ्रमर मुखर्जी का कहना है, "बढ़ती दर नीचे नहीं जा रही है, हम कर्व को फ्लैट होते नहीं देख रहे हैं." मुखर्जी की टीम का अनुमान है कि भारत में जुलाई की शुरुआत तक 630,000 से 21 लाख तक की आबादी कोरोना की चपेट में आ सकती है.

भारत में कोरोना के 20 फीसदी मामले केवल मुंबई में हैं. भारत इतने अधिक मरीजों को कैसे संभालेगा? स्वास्थ्य मंत्रालय से कोरोना के बढ़े मामलों को संभालने के बारे में प्रतिक्रिया मांगने पर कोई जवाब नहीं मिला. भारत के अस्पताल सामान्य दिनों में ही मरीजों से भरे रहते हैं. केंद्र सरकार ने मीडिया ब्रीफिंग में कहा है कि सारे मरीजों को अस्पताल में भर्ती करने की जरूरत नहीं पड़ती और वह अस्पतालों में बेड की संख्या बढ़ाने और स्वास्थ्य उपकरणों को हासिल करने के लिए तेज कदम उठा रही है.

बिस्तरों की कमी

भारत सरकार के पिछले साल के आंकड़े बताते हैं कि देश के अस्पतालों में करीब 714,000 बिस्तर हैं. 2009 में यह संख्या 540,000 थी. भारत की बढ़ती आबादी की तुलना में प्रति 1000 लोगों पर अस्पताल के बिस्तरों की संख्या में बहुत मामूली सुधार ही हुआ है.  आर्थिक सहयोग और विकास संगठन ओईसीडी के ताजा आंकड़ों के मुताबिक देश में प्रति 1000 लोगों पर 0.5 बिस्तर मौजूद हैं.  इसकी तुलना अगर दूसरे देशों से करें तो चीन में यह आंकड़ा 4.3 और अमेरिका में 2.8 है.

भारत के करोड़ों लोग सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं पर निर्भर हैं, खासतौर से ग्रामीण इलाकों में. हालांकि अस्पताल में भर्ती होने वाले 55 फीसदी लोग निजी अस्पतालों में जाते हैं. बीते दो दशकों में देश के बड़े शहरों में निजी अस्पतालों का बड़ी तेजी से विकास हुआ है और भारत के अमीर होते मध्यवर्गीय लोग इनका उपयोग कर रहे हैं. मुंबई के म्युनिसिपल अथॉरिटी का कहना है कि उसने सरकारी अधिकारियों को कम से कम 100 निजी अस्पतालों के बेड अपने नियंत्रण में लेने का आदेश दिया है ताकि कोरोना वायरस के मरीजों के लिए बिस्तर मुहैया कराए जा सकें. हालांकि इसके बाद भी लोगों को इंतजार करना पड़ रहा है.

कर्मचारियों की कमी

अस्पतालों में सिर्फ बिस्तरों की कमी नहीं है. 16 मई को मुंबई की म्युनिसिपल अथॉरिटी ने कहा कि उसके पास कोविड-19 के गंभीर मरीजों की देखभाल के लिए पर्याप्त कर्मचारी नहीं हैं. नतीजा यह हुआ है कि रेसिडेंट डॉक्टरों को आराम के लिए केंद्र सरकार से निर्धारित समय से भी कम समय मिल रहा है. कुछ डॉक्टरों ने रॉयटर्स को बताया कि वे पहले से ही बहुत सारे मरीजों का इलाज कर रहे हैं. कई बार उनके पास पर्याप्त सुरक्षा उपकरण भी नहीं होते और उन्हें खुद को संक्रमण के जोखिम में डाल कर दूसरों का इलाज करना पड़ रहा है.

बीते हफ्तों में मुंबई, पश्चिमी गुजरात, आगरा और कोलकाता के अस्पतालों को आंशिक या पूरी तरह से बंद करना पड़ा क्योंकि कुछ स्वास्थ्य कर्मचारी कोरोना वायरस की चपेट में आ गए थे. केंद्र सरकार का कहना है कि अब तक किसी मेडिकल स्टाफ के वायरस से मौत होने की सूचना नहीं है.

कोरोना के कारण भारी मुश्किल में ट्रांसजेंडर

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नई दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान के 2500 रेजिडेंट डॉक्टरों के संघ के प्रमुख डॉ आदर्श प्रताप सिंह का कहना है, "हमारे देश में स्वास्थ्य सेवाओं को कभी प्रमुखता नहीं दी गई. सरकार को अब सच्चाई का अहसास हो रहा है मगर अब बहुत देर हो चुकी है." एम्स के डॉक्टरों ने पर्याप्त सुरक्षा उपकरणों की कमी को लेकर प्रदर्शन भी किया है. उन्होंने अपने वेतन का कुछ हिस्सा कोरोना वायरस फंड में दान करने के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अपील को भी सार्वजनिक रूप से ठुकरा दिया.

स्वास्थ्य मामले के कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि भारत ने स्वास्थ्य सेवाओं पर बहुत कम निवेश किया है. भारत सरकार अपनी जीडीपी का महज 1.5 फीसदी हिस्सा स्वास्थ्य सेवा पर खर्च करती है. 1980 के दशक में तो यह महज 1.3 फीसदी था और पांच साल पहले 1.3 फीसदी.

इस साल नरेंद्र मोदी की सरकार ने स्वास्थ्य बजट को छह फीसदी बढ़ा दिया. हालांकि इसके बावजूद यह सरकार के अपने ही लक्ष्य से काफी पीछे है. ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन के मुताबिक सरकार ने स्वास्थ्य सेवा पर खर्च 2025 तक जीडीपी का ढाई फीसदी करने की बात कही थी.

कोरोना के बढ़ते संक्रमण के बीच मरीजों की तादाद लगातार तेजी से बढ़ रही है और ऐसे में अब अस्पताल में बिस्तरों की कमी का मामला उठ रहा है.

एनआर/एमजे (रॉयटर्स)

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