नए साल में योजना आयोग की जगह नीति आयोग ने ले ली है. 64 साल के इतिहास में पंचवर्षीय और सालाना योजनाएं तैयार करने वाला योजना आयोग अब अतीत हो गया है. 'नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर ट्रांस्फॉर्मिंग इंडिया' भावी चुनौतियों से निबटेगा.
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, आयोग के पुनर्गठन की घोषणा बीते साल स्वतंत्रता दिवस के मौके पर लाल किले से अपने भाषण में कर चुके थे. योजना आयोग की स्थापना पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की अगुवाई में 1950 में हुई थी. मोदी के मुताबिक योजना आयोग अपनी प्रासंगिकता खो चुका है और इसे बदलने की जरूरत है. नीति आयोग सरकार के थिंक टैंक के तौर पर काम करेगा और उसका मूल काम नीतिगत निर्देश देना होगा. सरकार के मुताबिक नीति आयोग की स्थापना राज्यों को विकास की प्रक्रिया में साथ लेकर चलने की सोच पर आधारित है.
योजना आयोग की ही तरह नीति आयोग के अध्यक्ष प्रधानमंत्री ही होंगे. एक खास बात जो नए संस्थान को पुराने आयोग से अलग करती है वह है राज्यों का प्रतिनिधित्व. नीति आयोग की गवर्निंग काउंसिल में सभी राज्यों के मुख्यमंत्री और केन्द्र शासित प्रदेशों के राज्यपाल शामिल होंगे. जरूरत पड़ने पर क्षेत्रीय परिषदों का गठन भी किया जाएगा जिनमें उस क्षेत्र के मुख्यमंत्री और राज्यपाल शामिल होंगे. प्रधानमंत्री नीति आयोग के एक उपाध्यक्ष और चीफ ऑपरेटिंग अफसर की भी नियुक्ति करेंगे. संस्था में 4 पदेन सदस्य होंगे. पांच स्थायी सदस्य और दो अस्थायी सदस्य भी होंगे. अस्थायी सदस्य रोटेशन के आधार पर संस्था में लाए जाएंगे. अपने क्षेत्रों में माहिर लोग संस्था के आमंत्रित सदस्य बनाए जाएंगे. यह आयोग अंतरमंत्रालय और केंद्र-राज्य सहयोग के धीमी गति के ढर्रे को तोड़ेगा.
मोदी ने इस एलान से तीन हफ्ते पहले राज्यों के मुख्यमंत्रियों के साथ योजना आयोग को टीम इंडिया कॉन्सेप्ट पर आधारित बॉडी में पुनर्गठित करने पर चर्चा की थी. बैठक में कुछ कांग्रेसी मुख्यमंत्रियों ने मौजूदा ढांचे को खत्म करने का विरोध किया था. कांग्रेस ने इस फैसले को अदूरदर्शी और खतरनाक बताया है.
योजना आयोग की शुरुआत भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू के समय में की गई थी. इसका मकसद देश की कृषि पर आधारित अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के लिए रोडमैप तैयार करना था. इस आयोग का काम देश के लिए पंचवर्षीय योजनाएं और इन केंद्रीय योजनाओं के लिए राज्यों के बीच पैसे का बंटवारा करना था. नीति आयोग का विशेष ध्यान सहकारी संघवाद यानि राष्ट्रीय विकास की प्रक्रिया में राज्यों की भागीदारी, गावों को उचित योजनाओं के जरिए विकास की धारा से जोड़ने और तकनीकी विकास को महत्व देने पर होगा.
मॉडल गांवों के जरिए विकास
आजादी के सात दशक बाद भी भारत के गांवों की तस्वीर बहुत ज्यादा नहीं बदली है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विकास के लिए सांसद आदर्श ग्राम योजना शुरू की है, लेकिन सांसदों द्वारा गांवों को गोद लेने पर भी राजनीति हो रही है.
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मोदी की पसंद
भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश में बदलाव लाने के लिए कई पहलकदमियां की हैं. स्वच्छता अभियान में प्रमुख लोगों को शामिल करने के अलावा उन्होंने सांसदों से अपने अपने चुनाव क्षेत्र में एक गांव को गोद लेने का भी आग्रह किया. प्रधानमंत्री ने वाराणसी के जिस जयापुर गांव को गोद लिया है उसकी 100 फीसदी आबादी हिंदू है.
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विपक्ष का चुनाव
मुलायम सिंह की समाजवादी पार्टी मुसलमानों के प्रतिनिधित्व का दावा करती है. उनके बेटे और यूपी के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव सांसद हैं. प्रधानमंत्री को जवाब देने के लिए उन्होंने अपने संसदीय क्षेत्र इत्र नगरी कन्नौज के सैय्यदपुर सकरी गांव को गोद लिया जहां 85 फीसदी मुस्लिम बसते हैं.
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परंपरा पर जोर
कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने पुश्तैनी चुनाव क्षेत्र रायबरेली में उड़वा को चुना है जबकि उनके बेटे राहुल गांधी ने अमेठी के जगदीशपुर को गोद लिया है. 1857 में भारत की आजादी की पहली लड़ाई में यहां के लोग अंग्रेजों की गोलियों का निशाना बने थे. इन्हें इलाके में शहीदों के गांव के रूप में जाना जाता है.
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सड़कें नहीं
सांसदों द्वारा गांवों को गोद लेने में सबसे ज्यादा सियासत उत्तर प्रदेश में हो रही है. इस प्रांत ने भारत को सबसे ज्यादा प्रधानमंत्री दिए हैं. विकास के साथ गांवों में भी समृद्धि आई है लेकिन संरचनाओं का सही विकास नहीं हुआ है. बच्चे अभी भी पैदल चलकर कई किलोमीटर दूर स्कूलों में जाते हैं.
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नई तकनीक
आधुनिक तकनीक गांवों तक भी पहुंची है. किसानों को खेतों में काम करते समय मोबाइल फोन पर बातें करते देखना बड़ी बात नहीं है. मोबाइल फोन ने उन्हें तत्काल सूचना पाने की नई संभावनाएं भी दी हैं.
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खेतों में मस्ती
कितनी आसान बना दी है मोबाइल ने जिंदगी. खेतों पर फसल कटवाने के बाद फसल की रखवाली करना बहुत बोरियत भरा होता था. अब यह समय मोबाइल या टैबलेट पर गाना सुनते हुए या फिल्म देखते हुए काटा जा सकता है.
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संरचना का अभाव
कभी गांवों में चूल्हा जलाने के लिए लकड़ी या उपले का इस्तेमाल होता था. अब वहां भी गैस खरीदने की हैसियत हो गई है लेकिन उपभोक्ताओं को पहुंचाने के साधन नहीं हैं. लोगों को गाड़ियों या साइकिल पर गैस का सिलेंडर लाना होता है.
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पैसा आया रोड नहीं
किसानों के पास पैसा आया, कारें उनके पहुंच में आईं हैं. लेकिन गांवों में रोड नहीं बने हैं. गांवों का विकास करने के लिए सांसदों को बहुत श्रम करना होगा. गांवों की काया पलटने के लिए उन्हें रहने योग्य भी बनाना होगा.
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गृह मंत्री का गांव
गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने लखनऊ के जिस गांव बेंती को गोद लिया है उसकी करीब ढाई हजार की आबादी पिछड़ों और दलितों की है. बेंती के लोग राजनाथ सिंह के इस फैसले से बेहद खुश हैं. अब वहां जल्द ही बैंक की शाखा खुलेगी.
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पलायन रुके
डिश एंटेना ने टेलिविजन को गांव गांव तक पहुंचा दिया है. उसकी वजह से आधुनिक विकास की खबरें पहुंची हैं और लोगों की उम्मीदें जगी हैं. अब जरूरत है विकास का ढांचा बनाने की ताकि गांव रहने लायक हों और लोग शहरों की ओर न भागें.
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कब पटेंगी दूरियां
राजीव गांधी की बेटी प्रियंका वाड्रा प्रधानमंत्रियों के परिवार में दिल्ली में पैदा हुई और वहीं रहती भी हैं. गांवों को कर्मभूमि बताने वाले उनके जैसे नेताओं को सोचना होगा कि गांवों का विकास कैसे हो. ये घर क्या हमेशा फूस के ही रहेंगे.