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नीदरलैंड्स भी जनसंहार का जिम्मेदार

१७ जुलाई २०१४

स्रेब्रेनित्सा जनसंहार के लिए डच अदालत ने अपने ही देश नीदरलैंड्स को जिम्मेदार ठहराया. बोस्निया युद्ध के दौरान हुए इस जनसंहार में 8,000 लोगों की हत्या हुई. इनमें से 300 लोगों को डच सेना ने सर्बियाई सेना के हवाले किया.

तस्वीर: DW/M. Sekulic

स्रेब्रेनित्सा दूसरे विश्वयुद्ध के बाद यूरोप में हुआ सबसे बड़ा जनसंहार है. 1995 में बोस्निया युद्ध के दौरान यूएन शांति सेना के तौर पर नीदरलैंड्स की सेना स्रेब्रेनित्सा में तैनात थी. इस दौरान सर्बियाई सेना ने वहां हमला किया. युद्ध खत्म होने से कुछ ही महीनों पहले हुए इस बर्बर हमले में 8,000 बोस्नियाई मारे गए.

पीड़ित परिवारों का संगठन यह केस नीदरलैंड्स की अदालत में लेकर आया. संगठन में 6,000 विधवाओं समेत मृतकों के कई रिश्तेदार हैं. उनका आरोप है कि डच सेना 8,000 लोगों के जनसंहार को रोकने में असफल रही.

बुधवार को जज लारिसा एल्विन ने अपने फैसले में कहा, "देश, उन रिश्तेदारों के नुकसान के लिए जिम्मेदार है, जिनके पुरुषों को बोस्नियाई सर्बों ने पोटोकारी की डच बटालियन के परिसर से 13 जुलाई 1995 को बाहर निकाला."

1995 में स्रेब्रेनित्सा में तैनात डच सैनिकतस्वीर: AFP/Getty Images

"डच बटालियन को यह बात ध्यान में रखनी चाहिए थी कि ये लोग जनसंहार के शिकार हो सकते हैं और ठोस आधार पर यह बात कही जा सकती है कि वे लोग जिंदा रह सकते थे. इन लोगों को निकालने में डच बटालियन का सहयोग गैरकानूनी कार्रवाई थी." हालांकि कोर्ट ने सभी 8,000 मौतों के लिए नीदरलैंड्स को जिम्मेदार नहीं ठहराया. अदालत ने कहा नीदरलैंड्स 300 लोगों की हत्या के लिए जिम्मेदार है.

नीदरलैंड्स के रक्षा मंत्रालय ने कहा, कोर्ट के फैसले में कहा गया है कि "परिसर के ढहने के लिए देश जिम्मेदार नहीं है." हालांकि इसके बाद रक्षा मंत्रालय ने जनसंहार पर खेद भी जताया, "उस वक्त वहां स्थानीय जनता के साथ जो हुआ उस पर हमें अफसोस है.

मदर्स ऑफ स्रेब्रेनित्सा ग्रुप की प्रतिनिधि मुनीरा सुबासिच ने डच कोर्ट के फैसले से बहुत खुश नहीं, "आज हमें एक जगह से न्याय मिला है." इसके आगे बोलते हुए मुनीरा की आंखें भर आईं. कंपकंपाती आवाज में उन्होंने कहा, "लेकिन आप एक मां को कैसे समझाएंगे कि बाड़े के एक तरफ खड़े उसके एक बेटे की मौत के लिए डच जिम्मेदार हैं, लेकिन दूसरी तरफ खड़े बेटे की मौत के लिए वो जिम्मेदार नहीं हैं."

19 साल पहले के उस दिल दहला देने वाले नरसंहार को याद करते हुए वो कहती हैं, "डच परिसर इतना बड़ा था कि उसमें हर कोई आ सकता था. हम लगतार सच और न्याय पाने की कोशिश करेंगे." अदालत के फैसले के खिलाफ पीड़ित उच्च अदालत में अपील करेंगे.

युद्ध के दौरान 11 जुलाई 1995 तक स्रेब्रेनित्सा में एक बड़ा परिसर संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा में था. परिसर में आस पास के गांवों से आए हजारों मुसलमानों ने शरण ली थी. तभी रात्को म्लादिच की अगुवाई वाली नस्लीय सर्ब सेना वहां पहुंची. म्लादिच की सेना ने मामूली हथियारों से लैस डच शांति सैनिकों को एक किनारे में किया. इसके बाद एक एक कर 8,000 मुस्लिम पुरुषों और युवाओं को अलग कर उन्हें साथ ले जाया गया. बाद में उनकी हत्या कर दी गई और उनके शवों को पास ही गाड़ दिया गया. इस सामूहिक कब्र को जांच में अहम कड़ी मानते हुए दो अंतरराष्ट्रीय अदालतों ने इस जनसंहार करार दिया. म्लादिच के खिलाफ बोस्निया युद्ध और स्रेब्रेनित्सा जनसंहार के मामले में मानवता के खिलाफ अपराध का मुकदमा चल रहा है.

जनसंहार के बाद ऐसे मिली सामूहिक कब्रतस्वीर: Odd Andersen/AFP/Getty Images

इसी साल अप्रैल में डच सरकार ने 1995 में यूएन परिसर से बाहर निकाले गए तीन मुस्लिम पुरुषों के रिश्तेदारों को 20,000 यूरो का हर्जाना देने का फैसला किया. लेकिन बुधवार के फैसले को ऐतिहासिक कहा जा रहा है. यह पहला मौका है जब किसी अदालत ने यूएन मिशन के तहत सेना द्वारा की गई कार्रवाई के लिए किसी देश को जिम्मेदार ठहराया है.

ओएसजे/एमजे (एएफपी)

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