नीम से होगा कैंसर का इलाज
६ सितम्बर २०१३नीम के औषधीय गुण तो सदियों से जगजाहिर हैं. अब तक इसकी पत्तियों का इस्तेमाल रोजमर्रा के जीवन में होने वाली छोटी मोटी बीमारियों के इलाज के अलावा जीवाणुओं और कीटाणुओं से लड़ने में किया जाता है. लेकिन अब कोलकाता स्थित चितरंजन नेशनल कैंसर इंस्टीट्यूट (सीएनसीआई) के वैज्ञानिकों ने नीम को कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी के खिलाफ लड़ने का एक असरदार हथियार बनाने का प्रयास कर रहे हैं. चूहों पर इसके सफल परीक्षण के बाद अब जल्दी ही मनुष्यों पर भी इसका परीक्षण किया जाएगा.
वैज्ञानिकों की टीम
कोलकाता स्थित संस्थान के वैज्ञानिकों की एक टीम ने लंबे अरसे तक चले परीक्षण के बाद छपे अपने दो पर्चों में बताया है कि नीम के पत्तियों से निकलने वाले एक खास किस्म के संशोधित प्रोटीन 'नीम लीफ ग्लाइकोप्रोटीन' यानी एनएलजीपी के जरिए चूहों में ट्यूमर कोशिकाओं की वृद्धि रोकने में कामयाबी मिली है. यह प्रोटीन कैंसर से सीधे लड़ने की बजाय ट्यूमर से निकलने वाले जहरीले व घातक रसायनों के खिलाफ शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत कर देता है. प्रतिरोधक कोशिकाओं कैंसर जैसी घातक बीमारियों से शरीर की रक्षा करती हैं.
इस शोध टीम के प्रमुख और सीएनसीआई के प्रतिरोधी विभाग के अध्यक्ष रथींद्रनाथ बराल कहते हैं, "हमने अपने अध्ययन में पाया कि एनएलजीपी में ट्यूमर कोशिकाओं और ट्यूमर के विकास में सहायक गैर परिवर्तित कोशिकाओं से जुड़ी ट्यूमर की सूक्ष्म पारिस्थितिकी को सामान्य करने की शक्ति मौजूद है. मूल रूप से एनएलजीपी ट्यूमर की सूक्ष्म पारिस्थतिकी में ऐसे बदलाव लाता है, जिससे उसका विकास रुक जाता है."
वह कहते हैं कि कैंसर कोशिकाएं धीरे धीरे विकसित होने पर प्रतिरोधक कोशिकाओं पर नियंत्रण कर लेती हैं. ऐसे में रोग से बचाने की जगह यह कोशिकाएं उल्टे कैंसर को फैलने में सहायता देने लगती हैं.
कैसा है परीक्षण
"ह्यूमन इम्यूनोलॉजी" नाम की मेडिकल पत्रिका में प्रकाशित शोध रिपोर्ट में इन वैज्ञानिकों ने सर्वाइकल कैंसर से पीड़ित 17 मरीजों की कैंसर कोशिकाओं पर किए प्रयोग के नतीजे का भी खुलासा किया है. इस अध्ययन से उन्हें नीम की पत्तियों की सहायता कैंसर के विकास पर अंकुश लगाने तरीके का पता चल गया. बराल कहते हैं, "इससे पहले के कुछ वैज्ञानिक अध्ययनों में कहा गया था कि नीम प्रजनन तंत्र पर प्रतिकूल असर डाल सकता है. लेकिन हमने अपने शोध के जरिए इस संभावना को खारिज कर दिया है." इस शोध से जुड़े चितरंजन कैंसर इंस्टीट्यूट के निदेशक और सर्जिकल ओंकोलॉजिस्ट जयदीप विश्वास कहते हैं, "अब तक के नतीजे काफी उत्साहजनक रहे हैं. जानवरों पर किए गए परीक्षणों में यह यौगिक बेहद सुरक्षित साबित हुआ है."
कोई 13 साल पहले जब इस टीम ने नीम की पत्तियों के कैंसररोधक गुणों का पता लगाने की दिशा में पहल की तो सबसे पहले कुछ प्रयोग किए गए. प्रयोगशाला में तैयार की गई कैंसर कोशिकाओं के अध्ययन पर उनके विचारों को बल मिला. इस पर टीम के सदस्यों ने बर्दवान विश्वविद्यालय के केमिस्ट्री के प्रोफेसर सुब्रत लस्कर के साथ मिल कर ग्लाइकोप्रोटीन की पहचान की.
आगे की राह
बराल बताते हैं कि उनकी टीम अब इस प्रोटीन की और बारीकी से जांच करके पता लगाएगी कि इसका कौन सा तत्व सही मायने में सक्रिय है. इसकी वजह यह है कि इस प्रोटीन में तीन हिस्से हैं. टीम की कोशिश यह पता लगाने की है कि यह प्रोटीन रेजिस्टेंट कैंसर के मामलों में भी प्रभावशाली होगा या नहीं. वह कहते हैं, "एक खास चरण के बाद कैंसर वाले ट्यूमर लाइलाज हो जाते हैं. उन पर रेडियोथेरेपी या कीमोथेरेपी का भी कोई असर नहीं होता." बराल को उम्मीद है कि नीम लीफ ग्लाइकोप्रोटीन ऐसे मामलों में कैंसर के इलाज को प्रभावशाली बना सकेगा.
वह बताते हैं कि प्रतिरोधक कोशिकाओं में कैंसर को मारने वाली कोशिकाओं का एक समूह होता है जिसे सीडी8 प्लस टी कोशिकाएं कहते हैं. ट्यूमर कोशिकाओं की वृद्धि के साथ ही एनएलजीपी की वजह से टी कोशिकाओं की तादाद भी बढ़ जाती है. इससे कैंसर को विकसित होने से रोकने में सहायता मिलती है. यही प्रोटीन टी कोशिकाओं को निष्क्रिय होने से भी बचाता है. संस्थान के निदेशक जयदीप विश्वास कहते हैं, "अब परीक्षण की इस प्रक्रिया को ड्रग कंट्रोलर जनरल आफ इंडिया समेत विभिन्न नियामक संस्थाओं के सामने पेश किया जाएगा. वहां से अनुमोदन मिलने के बाद मनुष्यों पर इसका परीक्षण शुरू किया जाएगा."
मरीजों की उम्मीद
संस्थान के वैज्ञनिकों के ताजा शोध के नतीजों से इस जानलेवा बीमारी से पीड़ित लोगों में उम्मीद की एक नई किरण पैदा हुई है. मुर्शिदाबाद से आए एक कैंसर पीड़ित दीपंकर दास कहते हैं, "यह जल्दी हो जाए तो अच्छा है. मेरे जैसे देश के हजारों दूसरे मरीजों की जान बच सकती है." अपने पिता का इलाज कराने सिलीगुड़ी से आए नवीन चंद्र दास कहते हैं, "नीम से बना होने की वजह से इलाज की यह प्रक्रिया काफी सस्ती होने की उम्मीद है. फिलहाल विदेशी दवाओं से इस बीमारी का इलाज बेहद महंगा है."
रिपोर्टः प्रभाकर, कोलकाता
संपादनः ए जमाल