नेपाली किसानों की किस्मत बदलता सोलर पंप
८ मार्च २०१९भद्री कभी एक घंटे से ज्यादा चल कर सिर्फ एक सेब के पेड़ को देने के लिए पानी लेकर आती थीं. पर जब से उनके गांव में सोलर पंप लगा है तब से वो अपने पूरे बाग को कुछ घंटों में पानी दे सकती हैं. उनका गांव नेपाल की राजधानी काठमांडू से करीब 350 किलोमीटर दूर है.
सारकी का कहना है कि हमारे खेतों में पर्याप्त पानी है. अब बस काम बचता है अपने पेड़ों को पानी देने का. अधिकारियों और स्थानीय लोगों का कहना है कि पानी की उपलब्धता होने से इन पहाड़ी इलाकों से रोजगार की तलाश में होने वाला पलायन भी रुका है.
सारकी के घर में उनकी मानसिक रूप से कमजोर बच्ची है. उनके बिल्डर पति काम की तलाश में कभी कभी भारत भी जाते हैं. ऐसे में इस पंप के आने से पहले उन्हें दिनचर्या के काम करना मुश्किल होता था. साथ ही, अक्सर बीमार होने की वजह से उन्हें अस्पताल भी जाना होता था लेकिन अब पंप आने की वजह से उन्हें खेती की ज्यादा चिंता नहीं रही है. अब पैदावार भी अच्छी हो रही है जिससे आमदनी बढ़ रही है. सारकी के पति को भी अब बार-बार भारत जाने की जरूरत नहीं पड़ती है.
सारकी की तरह ही नेपाल के सबसे गरीब राज्य करनाली के जुमला जिले की अधिकांश महिलाओं का जीवन सोलर पंप की वजह से आसान हो गया है. ये पंप यूरोपियन यूनियन और जर्सी ओवरसीज ऐड संस्था ने मिल कर लगवाया है. इसकी लागत करीब 13 लाख रुपये है. 14 पंप टीला नदी से रोज करीब 20,000 लीटर पानी निकालते हैं. इसे टंकियों में भर लिया जाता है और जरूरत के मुताबिक खेतों तक पहुंचाया जाता है.
प्रैक्टिकल एक्शन की प्रबंधन समन्वयक मेनिला खरेल के मुताबिक यह पंप 90 मीटर तक पानी को लिफ्ट करके धौलापानी गांव के 70 घरों तक पानी पहुंचा रहा है. इस गांव में अभी तक बिजली नहीं पहुंची है.
यूके आधारित इस चैरिटी समूह ने जुमला और मुगू जिले में अलग-अलग जगह 6 पंप लगाए हैं. यहां पर सेब, अखरोट और एक खास तरह के चावल की पैदावार होती है.
(सौर ऊर्जा के चैंपियन देश)
धौलापानी में इस स्कीम की सफलता के बाद स्थानीय सरकार ने इसे बड़े पैमाने पर दूसरी जगह भी लागू करने का फैसला किया है. तातोपानी नगरपालिका की उपाध्यक्ष गंगादेवी उपाध्याय का कहना है कि स्थानीय निकाय ने डागीवाडा गांव में एक करोड़ रुपये की लागत से सोलर पंप लगाने का काम शुरू किया है जिससे 300 घरों को फायदा होगा. इस तकनीक से जुमला जिले की महिलाओं को खासतौर पर फायदा होगा क्योंकि उनका अधिकांश समय खेतों में काम करते ही बीतता है.
प्रधानमंत्री आधुनिक कृषि परियोजना के अधिकारी टीका राम शर्मा का कहना है कि जुमला में साल भर अच्छी धूप रहती है और टीला साल भर बहने वाली नदी है. अब तक इन दोनों प्राकृतिक संसाधनों का सही से उपयोग नहीं किया जा रहा था. पर अब इनका पूरा सदुपयोग किया जा रहा है.
पहले इस इलाके में स्नो हार्वेस्टिंग (बर्फ जमा करना) तकनीक का इस्तेमाल पानी के लिए किया जाता था. लेकिन अब जलवायु परिवर्तन के चलते बर्फबारी भी अनिश्चित हो गई है. ऐसे में उस पर निर्भर नहीं रहा जा सकता है. जैसे पिछले दस सालों में जुमला में इस बार समय से बर्फबारी शुरू हुई.
जुमला को साल 2007 में ही नेपाल का पहला ऑर्गेनिक जिला घोषित कर दिया था. लेकिन वहां के किसानों के पास जरूरी सुविधाओं के अभाव के कारण वो यहां अच्छी खेती नहीं कर पा रहे थे. लेकिन अब सिंचाई के अच्छे साधन आ जाने के बाद से उनकी पैदावार में बढ़ोत्तरी हुई है.
धौलापानी गांव की ही रहने वाली पार्वती रावत का कहना है कि पहले जो फसल वो लोग उगाते थे वो बस उनके परिवार के लिए ही पर्याप्त हो पाती थी. लेकिन अब वो सेब और राजमा बेचकर अच्छा पैसा कमा पा रही हैं. पहले पानी की कमी के चलते सेब पीले हो जाया करते थे लेकिन अब सेबों की गुणवत्ता अच्छी होती है. रावत ने अब सेबों के साथ सब्जियों की पैदावार भी शुरू कर दी है.
पंप लगने के बाद से गांव के लोगों को भी काम के लिए गांव से पलायन करने की जरूरत नहीं रही है. सारकी की तरह रावत भी कहती हैं कि उनके पति को पहले काम के लिए कई बार भारत जाना पड़ता था लेकिन अब ऐसा नहीं है. उनके पति हस्तबहादुर कहते हैं कि उन्होंने एक ही सीजन में सेब बेचकर करीब 42,000 रुपये कमा लिए हैं.
तातोपानी नगरपालिका उपाध्यक्ष के मुताबिक सर्दियों में जुमला से बहुत से पुरुष पलायन करते हैं. लेकिन धीरे-धीरे ये संख्या कम होती जा रही है. पहले लोग यहां से जड़ी बूटियां इकट्ठी कर बेचा करते थे. अब बेहतर ट्रांसपोर्ट सुविधाओं और बिजली आधारित सिंचाई सुविधाओं के आने से सेब उत्पादन को एक व्यवसाय की तरह लेना शुरू कर दिया है. सौर पंपों के आने के बाद से सेब बेचने को व्यवसायिक स्तर पर ले जाने में और भी मदद मिलेगी.
आरकेएस/ओएसजे (रॉयटर्स)