करीब ढाई सौ सालों की राजशाही के बाद माओवादी हिंसा का दौर और फिर 2008 में जाकर नेपाल में एक चुनी हुई सरकार बनी. राजा के समय में "मुखे कानून छ" व्यवस्था के बाद अब नेपाल को मिले पहले लिखित संविधान पर भारत की प्रतिक्रिया.
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नेपाल के नए संविधान को कहीं स्वागत, तो कहीं तमाम स्थानीय समुदायों का विरोध भी झेलना पड़ा है. विरोध करने वालों में मधेशी समुदाय प्रमुख है जो कि मुख्य रूप से नेपाल के दक्षिणी तराई भाग के रहने वाले हैं.
नेपाल में मधेशियों की संख्या सवा करोड़ से अधिक है, जिनमें से करीब 56 लाख लोगों को अब तक नेपाल की नागरिकता नहीं मिल पाई है. जिन्हें नागरिकता मिली है, उन्हें भी सरकारी नौकरी या संपत्ति में कोई अधिकार नहीं मिले हैं. इसी के खिलाफ मधेशी लोगों का आंदोलन चला आ रहा है. मधेशी नेपाल में एक अलग मधेशी राज्य की मांग कर रहे थे. इनका कहना है कि संविधान में घोषित हुई 7 प्रांतों वाली संघीय संरचना में मधेशी समुदाय के लिए समुचित राजनीतिक प्रतिनिधित्व नहीं है.
भारतीय अखबार हरिभूमि ने अपने संपादकीय में लिखा है, "पड़ोसी देश नेपाल के लिहाज से इसे ऐतिहासिक उपलब्धि कहा जाना चाहिए. हालांकि बेहतर होता कि यह सर्वसम्मति से पारित हुआ होता क्योंकि मधेशी दल सहित करीब दो दर्जन सांसद अभी भी संविधान के कुछ प्रावधानों पर अपना विरोध व्यक्त कर रहे हैं." अखबार आगे लिखता है, "यह उचित नहीं कि आरंभ से ही कुछ मुद्दों पर देश बंटा नजर आए. किसी भी देश के संविधान की रचना इस तरह होनी चाहिए जिससे कि वहां के हर नागरिक को लगे कि उसमें उसके अधिकारों की रक्षा की गई है. यानि हर नागरिक को लगना चाहिए कि संविधान उससे जुड़ा हुआ है."
नेपाल को मिला नया संविधान
सात सालों से चले आ रहे अंतरिम संविधान की जगह ली नेपाल के पहले लिखित संविधान ने. देखिए इसकी खास बातें.
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नेपाल के कई छोटे छोटे राजनीतिक दलों के विरोध के बावजूद राष्ट्रपति राम बरन यादव ने 20 सितंबर को नए संविधान पर हस्ताक्षर कर दिए. राजधानी काठमांडू में संविधान सभा के सामने इस घोषणा का जोरदार स्वागत हुआ.
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राष्ट्रपति यादव (बीच में) ने कहा, "हमें विश्वास है कि नए संविधान को स्वीकार करने के साथ ही देश के विकास का मार्ग प्रशस्त हो गया है." नए संविधान ने उस पुराने अंतरिम संविधान की जगह ली है जो 2007 से ही नेपाल में लागू था.
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संविधान सभा के बाहर इकट्ठे हुए हजारों लोगों ने नए संविधान की घोषणा का स्वागत किया. उन्होंने राष्ट्रीय ध्वज फहराए और पटाखे छोड़े. काठमांडू की सड़कों पर लोगों ने तेल के दिये और मोमबत्तियां जलाईं और इमारतों को रंगीन लाइटों से सजाया गया.
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सात साल तक चली बातचीत और सौदेबाजी के बाद नेपाल हिंदू राष्ट्र से धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक गणराज्य बन गया है. सात राज्यों के संघीय ढांचे वाले नेपाल के हर राज्य का एक मुख्यमंत्री होगा और एक विधायिका होगी.
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मधेशी समुदाय समेत नेपाल के कई दूसरे स्थानीय और धार्मिक गुटों ने नए संविधान का विरोध किया है. उनका कहना है कि विधिनिर्माताओं ने राज्यों के निर्माण की प्रक्रिया में उनकी चिंताओं की अनदेखी की है. वे जातीय आधार पर बने और भी अधिक राज्य चाहते थे, साथ ही संसद और सरकार में जातीय अल्पसंख्यकों के लिए अधिक सीटें भी.
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लागू होने के कुछ हफ्तों पहले से चली हिंसक मुठभेड़ों में कम से कम 45 लोगों की जान चली गई है. संविधान का समर्थन करने वाली नेपाल की तीन प्रमुख राजनीतिक पार्टियों ने मधेशी समुदाय से वार्ता करने की फिर से अपील की है. प्रधानमंत्री सुशील कोइराला ने उनसे फिर अपील की.
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नेपाल में 100 से भी अधिक जातीय समूह हैं. इनमें से कईयों का मानना है कि नया संविधान उनका समुचित प्रतिनिधित्व नहीं करता. संसद सदस्यों को आनुपातिक प्रतिनिधित्व के नियम से चुना जाना है. अल्पसंख्यक समूहों ने सीटों की संख्या बढ़ाने की मांग की है.
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देश की हिंदुबहुल आबादी में से भी कईयों का मानना है कि संविधान में नेपाल के हिन्दू राष्ट्र के स्वरूप को बरकरार रखना चाहिए था. इस प्रस्ताव को संविधान सभा में बहुमत नहीं मिला. विपक्षी दलों ने नए संविधान के खिलाफ आम हड़ताल का आह्वान किया था जो बहुत अधिक प्रभावी नहीं रहा.
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नेपाल के पड़ोसी भारत के विदेश मंत्रालय की ओर से एक बयान जारी कर नेपाल के कई हिस्सों में व्याप्त तनावपूर्ण माहौल पर चिंता जताई गई है. भारत ने प्रदर्शनकारियों से बातचीत की जरूरत पर जोर दिया ताकि नए संविधान को "व्यापक स्वीकृति मिले."
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समलैंगिकों के अधिकार के लिए काम करने वाले सामाजिक कार्यकर्ताओं ने संविधान का जोरदार स्वागत किया है. उनका मानना है कि इसमें समलैंगिकों की पहचान, सहभागिता और अधिकारों को स्थान मिला है.
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अंग्रेजी अखबार द हिन्दू में प्रकाशित अपने लेख में वरिष्ठ पत्रकार सुहासिनी हैदर ने नेपाल के संविधान को भारत के लिए उत्सव मनाने का पल नहीं बताया है. उन्होंने भारत द्वारा जारी संदेश में मधेशी समुदाय के हितों की नजरअंदाजी की बात को प्रमुखता दी है.
दैनिक ट्रिब्यून ने संविधान को पास किए जाने का श्रेय नेपाली कांग्रेस, नेकपा एमाले, एकीकृत नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी), राष्ट्रीय जनमोर्चा के साथ कुछ निर्दलीय सभासदों को दिया है. मधेशी समुदाय पर टिप्पणी करते हुए अखबार लिखता है, "अब तक विश्लेषक यही मान कर चलते थे कि नेपाल में संविधान निर्माण में जो देरी हुई, या अड़ंगेबाज़ी होती रही, उसकी जिम्मेदार नेपाल की धुर राष्ट्रवादी शक्तियां रही हैं. अब उनकी जगह तराई के नेताओं ने ले ली है."`
नेपाल में समलैंगिकों की परेड
नेपाल के समलैंगिक, उभयलिंगी और ट्रांसजेंडर समुदाय ने काठमांडू में समलैंगिकों की सालाना 'गायजात्रा' परेड में लगातार पांचवें साल हिस्सा लिया.
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अल्पसंख्यकों का हित
काठमांडू की सड़कों पर सैकड़ों समलैंगिक और किन्नर झूमते, नाचते, गाते परेड में शामिल हुए. नेपाल में मनाए जाने वाले गायजात्रा पर्व का मतलब है गायों का पर्व. इस दिन उन लोगों को याद किया जाता है जिनकी उस साल मृत्यु हो गई हो. पारंपरिक तौर पर यह एकलौता दिन हुआ करता था जब महिलाएं पुरुषों के और पुरुष महिलाओं की पोशाक पहन सकते हैं. पिछले पांच सालों से एलजीबीटी समुदाय इसमें बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेना लगा है.
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परंपरा से ऊपर
सैकड़ों सालों से धार्मिक रीति रिवाजों में बंधे नेपाल में लोकतंत्र और भाईचारे की हवा प्रवेश कर चुकी है. भूख, गरीबी और रूढ़िवाद से जूझने के बावजूद हिन्दू बहुल देश नेपाल दक्षिण एशिया का पहला देश है जिसने 2007 में समलैंगिकता को कानूनी दर्जा दिया.
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शादी के रास्ते
नेपाल की सर्वोच्च अदालत द्वारा समान सेक्स में शादी के बारे में सर्वे की मांग के बाद अब सरकारी कमेटी भी नए संविधान में इसे कानूनी दर्जा दिए जाने की सलाह दे रही है. ऐसा हो जाने पर समलैंगिक दंपतियों के पास संपत्ति खरीदने, बच्चा गोद लेने, साथ में खाता खोलने या फिर एक दूसरे की संपत्ति के उत्तराधिकार का हक होगा. देश की सभी राजनीतिक पार्टियां प्रस्ताव का समर्थन कर रही हैं.
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जवां हौसला
पर्यटकों की भीड़ भाड़ वाले इलाके थामेल से शहर के मुख्य चौराहे तक नाच गाने से भरपूर इस परेड को देखने सड़क के दोनों ओर लोग खड़े थे. नेपाल के युवाओं को उम्मीद है कि बहुत जल्द हवा में ताजगी होगी. अरेंज शादियों को ही नहीं प्रेम विवाह को भी समाज में और जगह मिलेगी.
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तीसरा लिंग
2006 में नेपाल में राजशाही की जगह लोकतंत्र ने ली. विश्लेषकों के मुताबिक उस समय अन्य अल्पसंख्यकों के अलावा अधिकार मांगने वालों में सबसे आगे समलैंगिक थे. 2007 में देश के उच्चतम न्यायालय ने इन्हें तीसरे लिंग का दर्जा दिया.
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बदलाव की लहर
"मेरा देश, मेरा संविधान, मेरे अधिकार, मेरी पहचान, मेरा गर्व", यह रहा इस साल की समलैंगिक परेड का स्लोगन. परेड में कई लोग बैनरों के साथ शामिल हुए जिन पर समलैंगिकों के विवाह को कानूनी दर्जा देने की मांग लिखी थी. प्रधानमंत्री सुशील कोइराला ने इस काम को इस साल के अंत तक अंजाम देने का वादा किया है.