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नेपाल की कुंग फू बौद्ध भिक्षुणियां

१३ मई २०१२

नेपाल की राजधानी काठमांडू की सीमा पर अमिताभा द्रुपका मठ में कूंग फू का अभ्यास करती बौद्ध भिक्षुणियां. उनका कहना है कि मन की एकाग्रता के लिए कूंग फू से तन को स्वस्थ रखना जरूरी है.

नेपाल की कुंग फू भिक्षुणियांतस्वीर: picture-alliance/dpa

काठमांडू की सीमा पर गर्म सुबह का एक दिन. महरून पायजामा और शर्ट पहने ये समूह रोज सुबह बौद्ध मठ में इस सख्त फर्श पर खड़ा होता है. एक साथ सांस लेते हुए ये कुंग फू के अभ्यास की शुरुआत करता है. समूह में सभी बौद्ध भिक्षुणियां हैं जो हर दिन मार्शल आर्ट का अभ्यास करती हैं. दुनिया भर में यही मठ ऐसा है जहां की भिक्षुणियां कुंग फू की एक्सपर्ट हैं.

अमिताभा द्रुपका मठ में नौ से लेकर 52 साल की भिक्षुणियां रहती हैं. ये नेपाल, भारत, तिब्बत और भूटान से चीनी मार्शल आर्ट कूंग फू सीखने यहां आई हैं. उनका मानना है कि कूंग फू की ट्रेनिंग उन्हें बेहतर बौद्ध बना सकती है. हर दिन आध्यात्म की पढ़ाई के बदले नब्बे मिनट तक वे इस मार्शल आर्ट की कलाबाजियां, किक और वार सीखती हैं.

भूटान से आई 14 साल की जिग्मे वांगचुक ल्हामो कहती हैं, "कुंग फू सीखने का मुख्य कारण फिटनेस और स्वास्थ्य है. लेकिन यह आत्मरक्षा और ध्यान में भी बहुत मदद करता है. जब हम कुंग फू का अभ्यास करते हैं तो हम ऐसा कुछ कर रहे होते हैं जो हमारे शरीर को मजबूत नहीं बनाता बल्कि दिमाग की ताकत भी बढ़ाता है."

बौद्ध भिक्षुणियों को भिक्षुओं से कम आंका जाता रहा है. उन्हें खाना पकाने और सफाई जैसे कम मिहनत वाले काम दिए जाते रहे हैं. लेकिन 800 साल पुराने द्रुपका (ड्रैगन) संप्रदाय में तेजी से बदलाव हो रहा है. अब भिक्षुओं को प्रशिक्षण में ध्यान से लेकर मार्शल आर्ट्स तक सब कुछ शामिल किया जा रहा है ताकि महिला भिक्षुओं की ताकत बढ़ाई जा सके. यहां महिला भिक्षुओं को प्रार्थना का नेतृत्व करने, बिजनेस और गेस्ट हाउस या कॉफी शॉप चलाने की शिक्षा दी जाती है. इतना नहीं उन्हें काठमांडू जाने के लिए जीप चलाना भी सिखाया जाता है.

द्रुपका मठ में कुंग फू चार साल पहले आया. जब 12वें ग्यालवांग द्रुपका वियतनाम गए और वहां भिक्षुणियों को मार्शल आर्ट सीखते देखा. लड़ाई का यह तरीका वहां पहले विएत कोंग गुरिल्ला इस्तेमाल करते थे. वह इससे इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने चार वियतनामियों को मठ में बुलवाया. और अच्छे कर्मों को बढ़ावा देने के लिए भिक्षुणियों को योग, और मार्शल आर्ट की ट्रेनिंग देनी शुरू की. ग्यालवांग द्रुपका अपने ब्लॉग में लिखते हैं, "हमारी महिला भिक्षुओं में आधुनिकता और आत्मविश्वास की कमी है. मैं नहीं कहता कि मैं अच्छा टीचर हूं लेकिन जो रास्ता मैंने चुना है वह लैंगिक समानता को बढ़ावा देगा और हमारी भिक्षुणियों में बेहतरी लाएगा."

लगतार लोकप्रिय होता मठतस्वीर: picture-alliance/dpa

भारत से आई जिग्मे कोंचोक ल्हामो 18 साल की हैं. वह कहती हैं, "कुंग फू सीखने से हम सभी ताकतकवर हुई हैं. और बौद्ध धर्म में महिलाओं और पुरुषों की समानता की बात शुरू हुई है. हमारे गुरू महिलाओं को पुरुषों के बराबर बनाना चाहते हैं, जिन्हें एक ऐसे अधिकार हों. इसलिए हमें सब कुछ करने का मौका मिलता है सिर्फ कुंग फू ही नहीं. हम टेनिस. स्केटिंग सहित कई चीजें सीख रहे हैं. हमारे पास इंग्लिश और तिब्बती सीखने के अलावा वाद्य यंत्र सीखने का भी मौका है. पहले कुछ डांस सिर्फ पुरुष ही कर सकते थे. अब हम भी उसमें हिस्सा ले सकते हैं."

कुंग फू की शुरुआत के साथ इस मठ की लोकप्रियता भी बढ़ी है. अब करीब 300 भिक्षुणियां यहां मार्शल आर्ट की तकनीक सीख रही हैं. वे कहती हैं कि शाओलीन कुंग फू की दुहराने वाले अभ्यास के कारण शरीर पर नियंत्रण बढ़ता है और फोकस अच्छा होता है. काठमांडू आई 21 साल की जिग्मे मिग्युर पाल्मो जैकी चेन की बड़ी फैन हैं. वह कहती हैं कि कुंग फू के कारण उनके काम और ध्यान में तालमेल बढ़ा है. "मैं बौद्ध दर्शन सीखने काठमांडू आई थी. अब मैं घर नहीं जाना चाहती. यहीं जिंदगी भर रहना चाहती हूं."

रिपोर्टः आभा मोंढे (एएफपी)

संपादनः महेश झा

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