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नेपाल: 'महिला होने की वजह से' स्पीकर पद से हटाया

३ फ़रवरी २०२०

नेपाल की सबसे वरिष्ठ महिला राजनेताओं में से एक शिवमाया तुम्बाहाम्फे का कहना है कि उन्हें संसद के निचले सदन की स्पीकर पद से इसलिए हटाया गया क्योंकि वह महिला हैं. लेकिन वह हार मानने वाली नहीं हैं.

Shiva Maya Tumbahamphe Nepal
तस्वीर: picture-alliance/dpa/N. Maharjan

तुम्बाहाम्फे खुद को "पितृसत्ता की पीड़ित बताती हैं." नेपाली संसद के निचले सदन प्रतिनिधि सभा के स्पीकर कृष्ण बहादुर महारा को जब पिछले साल बलात्कार के आरोपों के बाद पद छोड़ना पड़ा तो तुम्बाहाम्फे ने कार्यवाहक स्पीकर के तौर पर जिम्मेदारी संभाली. लेकिन सत्ताधारी नेपाली कम्युनिस्ट पार्टी ने उन्हें अपना पद छोड़ने को मजबूर किया ताकि किसी पुरुष को उनकी जगह स्पीकर बनाया जा सके.

राजनीति शास्त्र में डॉक्टरेट करने वाली तुम्बाहाम्फे का कहना है कि अब नेपाल में महिलाओं के लिए हालात राजशाही के दौर से भी बदतर हैं. नेपाल में 2008 की माओवादी क्रांति के बाद राजशाही को खत्म कर गणतांत्रिक व्यवस्था लागू की गई थी.

तुम्बाहाम्फे ने थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को बताया, "राजशाही के दौर से तुलना करें तो अब पितृसत्ता ने अपनी जड़ें ज्यादा गहरी जमा ली हैं. अब हमारे देश में वह कहीं ज्यादा मजबूत है." जब नेपाल में राजशाही खत्म हुई तो पहले से ज्यादा समान समाज का वादा किया गया था, खासकर ऐसे समुदायों के लिए जो सदियों से हाशिये पर थे. इनमें महिलाएं भी शामिल हैं. लेकिन यह वादा पूरा नहीं किया गया.

महिला अधिकार कार्यकर्ता 2015 में लागू किए गए नए संविधान के उस प्रावधान से खास तौर पर नाराज हैं जिसके तहत महिलाएं अपनी नागरिकता अपने बच्चों को नहीं दे सकती हैं. वहीं पुरूषों के लिए ऐसी कोई पाबंदी नहीं है.

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तुम्बाहाम्फे कहती हैं कि उन्होंने खुद को स्पीकर पद से हटाए जाने का कड़ा विरोध किया. उन्होंने अपनी पार्टी के प्रमुख को कई कारणों की एक सूची देते हुए बताया कि वह क्यों इस पद के लिए सबसे योग्य हैं. उन्होंने नेपाल में महिला आंदोलन पर लिखी अपनी किताब की एक प्रति भी सौंपी.

अब एक पूर्व माओवादी नेता अग्नि प्रसाद सपकोटा को तुम्बाहाम्फे की जगह स्पीकर बनाया गया है. लेकिन उन पर गृह युद्ध के दौरान अपहरण और हत्या के आरोप हैं. इसलिए कई पीड़ित और मानवाधिकार कार्यकर्ता उनकी नियुक्ति का विरोध कर रहे हैं.

नेपाल के नए संविधान के मुताबिक, देश के सांसदों में एक तिहाई महिलाओं का होना अनिवार्य है. नेपाल में इस वक्त बिद्या देवी भंडारी के रूप में एक महिला देश की राष्ट्रपति है जबकि कुछ समय के लिए एक महिला चीफ जस्टिस के पद पर भी रही. लेकिन राजनीति के क्षेत्र में लंबे समय से सक्रिय कई महिलाओं का कहना है कि उन्हें अब भी पुरूषों के मुकाबले ज्यादा चुनौतियां झेलनी पड़ती हैं और अकसर उन्हें किनारे कर दिया जाता है.

तुम्बाहाम्फे बताती हैं, "मुझे राजनीति में 40 साल हो गए हैं, लेकिन महिलाओं की स्थिति को लेकर मैंने ज्यादा बदलाव नहीं देखे हैं. इसलिए मैंने भेदभाव और अन्याय के खिलाफ लड़ने का संकल्प लिया है."

तुम्बाहाम्फे का कहना है कि उनकी लड़ाई जारी रहेगीतस्वीर: picture-alliance/dpa/N. Maharjan

वह कहती हैं कि नेपाल की पार्टियों में महिला नेता तो हैं लेकिन उन्हें ज्यादातर छोटे मोटे काम ही दिए जाते हैं. उनके मुताबिक, "बहुत कम महिलाएं हैं जो नीति निर्धारण की प्रक्रिया का हिस्सा हैं." 56 साल की तुम्बाहाम्फे का जन्म नेपाल के पूर्वी पहाड़ी इलाके में एक आदिवासी समुदाय में हुआ. स्कूल के दिनों से वह राजनीति में सक्रिय हैं और महिला संगठनों में कई अहम पदों पर रह चुकी हैं.

हाल ही में तुम्बाहाम्फे को सत्ताधारी नेपाली कम्युनिस्ट पार्टी (एकीकृत मार्क्सवादी-लेनिनवादी) की केंद्रीय समिति में चुना गया है. वह कहती हैं कि पार्टी की सर्वोच्च नीति निर्धारण समिति में अपने पद का इस्तेमाल वह महिलाओं के लिए बदलाव लाने में करेंगी. वह कहती हैं, "महिलाओं को बराबर अवसर मिलने चाहिए और देश के संसाधनों और सत्ता पर उनका बराबर हक होना चाहिए. महिलाओं को उनका हक दिलाने के लिए मैं लड़ती रहूंगी."

एके/एमजे (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन)

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