नेपाल में मिलता है गर्भवती महिलाओं को किराया और बोनस
२० जुलाई २०१८
नेपाल के एक दूर दराज के गांव में रहने वाली मीरा नेपाली को जब पहला बच्चा होने वाला था वह बहुत डरी हुई थी. घर पर सास के सिवा कोई नहीं था और अस्पताल मीलों दूर था.
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मीरा कहती हैं, "मैं डरी हुई थी. लेकिन ऐसा ही होता है. हमारे नजदीक में कोई डॉक्टर नहीं था." नेपाल के रामेछाप जिले के एक दूर दराज के गांव में रहने वाली मीरा अपनी तीन दिन की प्रसव पीड़ा के बारे में कुछ इस तरह बताती हैं.
इस साल मीरा ने अपने दूसरे बच्चे को जन्म दिया है. लेकिन इस बार उन्होंने एक ग्रामीण हेल्थ सेंटर में बच्चे को जन्म दिया. यह सब हो पाया एक पहल की बदौलत, जिसमें गर्भवती महिलाओं को अस्पताल तक जाने का किराया दिया जाता है.
'अम्मा सुरक्षा' नाम के इस कार्यक्रम से नेपाल में बीस लाख से ज्यादा महिलाओं की अब तक मदद की गई है और उन्होंने घर की बजाय डॉक्टरों और स्वास्थ्यकर्मियों की देखरेख में हेल्थ सेंटरों और अस्पताल में जाकर अपने बच्चों को जन्म दिया. संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष का कहना है कि बेहद गरीब देश नेपाल में बच्चों को जन्म देते समय बहुत सी महिलाओं की जान चली जाती है.
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शादी करना तो हर किसी के लिए बड़ा फैसला होता है, लेकिन कहीं कहीं तो ये बहुत मुश्किल भी होता है. जापान के अविवाहित लड़के शादी के लायक बनने के लिए सीखते हैं कुछ खास कौशल भी. जानिए इस अनोखी परंपरा 'इकुमेन' के बारे में.
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शादी की संभावना बढ़े
इसके लिए जापान में युवा अविवाहित लड़के व्यक्तित्व के बाकी गुणों के अलावा कुछ खास गुण भी विकसित कर रहे हैं. इसे 'इकुमेन' कहा जाता है और इसके बाकायदा कोर्स कराए जाते हैं.
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बच्चे पालने की कला
ऐसे युवाओं की शादी की संभावना बढ़ जाती है जिन्हें बच्चे पालने का सलीका आाता हो. जापान में केवल पुरुषों के लिए चलने वाले 'इकुमेन' कोर्स में शिक्षक उन्हें बच्चों को नहलाने, कपड़े बदलने से लेकर महिलाओं की मनोस्थिति और उनका नजरिया समझने की ट्रेनिंग भी देते हैं.
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गर्भ का बोझ
जापान के ओसाका स्थित "इकुमेन यूनिवर्सिटी" नाम की कंपनी ने इसकी शुरुआत की है. कोर्स करने वाले पुरुषों को शरीर पर करीब सात किलो भारी प्रेगनेंसी जैकेट बांध कर अभ्यास कराया गया जिससे उन्हें उस बोझ का अंदाजा लगे जो गर्भवती महिलाएं ढोती हैं.
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महिलाओं की पसंद
शारीरिक बोझ के अलावा होने वाली मानसिक परेशानियों से जूझने के गुर भी सिखाए जाते हैं. जैसे कि संभावित पार्टनर से अच्छा संवाद स्थापित करना और उनकी पसंद नापसंद को समझने का तरीका इत्यादि.
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सर्टिफाइड दूल्हा
पुरुषों से उन गुणों की एक लंबी सूची भरवाई जाती है जिन्हें आम तौर पर महिलाएं नापसंद करती हैं और उन्हें दूर कर पुरुषों को एक तरह का सर्टिफिकेट मिल जाता है कि वे शादी के लिए एक सुयोग्य उम्मीदवार हैं.
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बाजार में मांग
शादी के विज्ञापन देने वाले अखबार, पत्रिकाओं या वेबसाइटों पर लड़कों के परिचय में इस सर्टिफिकेशन का जिक्र करने से उन्हें बाकियों के मुकाबले ज्यादा अहमियत मिलती है. यह दिखाता है कि ना केवल वे शादी और परिवार को संभालने के लायक हैं बल्कि बच्चे संभालने में भी चैंपियन हैं.
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जापान में ही क्यों
हाल में आया एक सर्वेक्षण दिखाता है कि जापान में विवाह योग्य आयु वाले यानी 18 से 34 की उम्र के करीब 70 फीसदी पुरुष और 60 फीसदी महिलाएं अविवाहित हैं. जापान में बुजुर्ग लोगों की तादाद युवाओं और बच्चों के मुकाबले बहुत अधिक है. देश को अगली पीढ़ी की सख्त जरूरत है.
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नेपाल में सुरक्षित प्रसव की राह में एक बड़ी अड़चन देश के दुगर्म इलाके हैं जहां से अस्पताल या स्वास्थ्य केंद्रों तक पहुंचने के लिए लंबा सफर करना पड़ता है. इसमें बहुत समय और धन लगता है. दूरदराज के इलाकों में पर्याप्त स्वास्थ्य केंद्रों की भी कमी है.
अम्मा सुरक्षा स्कीम के संस्थापकों में से एक सुरेश तिवारी कहते हैं, "हमने देखा कि बच्चे के जन्म के समय ग्रामीण महिलाओं के अस्पताल न जाने की एक बड़ी वजह यह है कि उनके पास आने जाने के लिए पैसे नहीं हैं," इस कार्यक्रम की शुरुआत 2005 में ब्रिटेन की तरफ से मिली मदद के साथ की गई. लेकिन उसके बाद नेपाल सरकार ने इसे अपना लिया.
आज इस स्कीम में न सिर्फ आने जाने का, बल्कि मां और शिशु की दवाओं का खर्च भी शामिल है. इतना ही नहीं, बच्चे के जन्म से पहले नियमित रूप से चेक अप कराने के लिए कैश बोनस भी दिया जाता है.
वर्ष 2017 इस कार्यक्रम के लिए एक मील का पत्थर था जब पहली बार नेपाल में घर से ज्यादा बच्चे अस्पतालों में हुए. अब यह कार्यक्रम सरकार के परिवार स्वास्थ्य विभाग की निगरानी में चलता है.
शिशुओं की देखभाल के टिप्स
नवजात शिशुओं के लिए 12 टिप्स
जीवन का पहला साल बच्चे के विकास के लिए बेहद अहम होता है. बच्चे अपने आस पास की चीजों को समझना और पहले शब्द बोलना सीखते हैं. इस दौरान माता पिता कई सवालों से गुजरते हैं. यदि आप भी उनमें से हैं, तो इन टिप्स का फायदा उठाएं.
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मालिश करें
भारत में बच्चों की मालिश का चलन नया नहीं है. लेकिन माता पिता अक्सर इस परेशानी से गुजरते हैं कि बच्चे की मालिश कब और कैसे की जाए. शिशु को दूध पिलाने के बाद या उससे पहले मालिश ना करें. घी या बादाम तेल को हल्के हाथ से बच्चे के पूरे शरीर पर मलें. नहलाने से पहले मालिश करना अच्छा होता है.
ध्यान से नहलाएं
नवजात शिशुओं की त्वचा बेहद नाजुक होती है. बहुत ज्यादा देर तक पानी में रहने से वह सूख सकती है. ध्यान रखें कि पानी ज्यादा गर्म ना हो. शुरुआती तीन हफ्ते में गीले कपड़े से बदन पोंछना काफी है. अगर आप बेबी शैंपू का इस्तेमाल कर रहे हैं, तो एक हाथ से बच्चे की आंखों को ढक लें. नहाने के बाद बच्चे बेहतर नींद सो पाते हैं.
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आराम से सुलाएं
ब्रिटेन की शिशु रोग विशेषज्ञ डॉन केली बताती हैं कि माता पिता बच्चों को सुलाने से पहले उन्हें कपड़ों की कई परतें पहना देते हैं, "खास कर रात को, वे उन्हें बेबी बैग में भी डाल देते हैं और उसके ऊपर से कंबल भी ओढ़ा देते हैं." केली बताती हैं कि इस सब की कोई जरूरत नहीं. बहुत ज्यादा गर्मी बच्चे के लिए नुकसानदेह साबित हो सकती है.
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रोने से घबराएं नहीं
बच्चे रोते हैं और इसमें परेशान होने वाली कोई बात नहीं है. जच्चा बच्चा सेहत पर किताब लिख चुकी अमेरिका की जेनिफर वॉकर कहती हैं, "बच्चे रोने के लिए प्रोग्राम्ड होते हैं. उनके रोने का मतलब यह नहीं कि आप कुछ गलत कर रहे हैं, बल्कि यह उनका आपसे बात करने का तरीका है." मुंह में पैसिफायर लगा हो, तो बच्चे कम रोते हैं.
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दांतों की देखभाल
न्यूयॉर्क स्थित डेंटिस्ट सॉल प्रेसनर कहती हैं कि कई बार मां बाप बहुत देर में बच्चों के हाथ में ब्रश थमाते हैं. दूध के दांत बहुत नाजुक होते हैं और इन्हें बहुत ज्यादा देखभाल की जरूरत होती है. प्रेसनर का कहना है कि जब दांत आने लगें, तो बच्चे को ठीक सोने से पहले दूध पिलाना बंद कर दें. अगर ब्रश कराना शुरू नहीं किया है, तो दूध पिलाने के बाद गीले कपड़े से दांत साफ करें.
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कुदरत के साथ
बच्चों को जितना हो सके कुदरत के साथ जोड़ें. आज के हाई टेक जमाने में माता पिता बच्चों को मोबाइल, टेबलेट और टीवी के साथ ही बढ़ा करने लगे हैं. अमेरिका की अकेडमी ऑफ पीडिएट्रिक्स का कहना है कि कम से कम दो साल की उम्र तक बच्चों को स्क्रीन से दूर रखना चाहिए.
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रंगों के बीच
बच्चों के आसपास रंग होना अच्छा है. आठ से नौ महीने के होने पर बच्चे अलग अलग तरह के रंग, सुगंध, शोर और स्पर्श को पहचानने लगते हैं. यही उन्हें सिखाने का सही समय भी है.
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खेल खेल में
बच्चे खेल खेल में नई चीजें सीखते हैं. सिर्फ वस्तुओं को पहचानना ही नहीं, बल्कि खुशी और गुस्से जैसे भावों को भी समझने लगते हैं. बच्चों से बात करते हुए मुस्कुराएं और उनकी आंखों से संपर्क बना कर रखें. याद रखें कि बच्चे बोल नहीं सकते, इसलिए आंखों के जरिए संवाद करते हैं.
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मम्मी के साथ पढ़ाई
बच्चे के साथ बातें करें. जब वह कोई आवाजें निकाले, तो उन्हें दोहराएं और उसके साथ कुछ शब्द जोड़ दें. इस तरह बच्चे का जल्द ही भाषा के साथ जुड़ाव बन सकेगा. किताबों से पढ़ कर कहानियां सुनाने के लिए बच्चे के स्कूल पहुंचने का इंतजार ना करें. छोटे बच्चे इन कहानियों के जरिए नई आवाजें और शब्द सीखते हैं.
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पापा के साथ ब्रश
बच्चों को नई नई चीजें सिखाने का सबसे अच्छा तरीका है उनके साथ वही चीज करना. बच्चे देख कर वही चीज दोहराते हैं. इसी तरह से आप उन्हें कसरत करना भी सिखा सकते हैं. शुरुआत में ध्यान लगने में वक्त लग सकता है लेकिन बाद में बच्चे नई चीजें करने में आनंद लेने लगते हैं.
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पहले कदम
जब तक बच्चे चलना नहीं सीख लेते उन्हें जूतों की जरूरत नहीं होती. इन दिनों फैशन के चलते माता पिता नवजात शिशुओं के लिए भी जूते खरीदने लगे हैं. शिशुओं के लिए मोजे ही काफी हैं. ये उनके लिए आरामदेह भी होते हैं.
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पहला जन्मदिन
बच्चे वयस्कों की तरह पार्टी नहीं कर सकते. वे जल्दी थक जाते हैं और भीड़ से ऊब भी जाते हैं. इसे ध्यान में रखते हुए अपने बच्चे की पहली बर्थडे पार्टी को एक से दो घंटे तक ही सीमित रखें ताकि पार्टी बच्चे की मुस्कराहट का कारण बने, आंसुओं का नहीं.
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इस विभाग के प्रमुख तारा नाथ पोखरेल कहते हैं, "मुफ्त सेवा और आने जाने का खर्च देने से ज्यादा से ज्यादा महिलाएं अस्पताल और स्वास्थ्य केंद्रों में पहुंच रही हैं, जहां बच्चे के जन्म के दौरान मुश्किल होने पर उन्हें पूरी मदद मिलती है."
मीरा नेपाली ने भी इस कार्यक्रम का फायदा उठाया है. जनवरी में वह रामेछाप के जिला अस्पताल में तीन दिन तक रही और इसके लिए उसे कोई पैसा नहीं देना पड़ा. जब वह अस्पताल से निकली तो उसे एक हजार रुपया आने जाने का किराया दिया गया और नियमित रूप से चेकअप कराने के लिए 400 रुपया बोनस भी.
गोद में अपने बच्चे को लिए मीरा कहती है, "मैं एंबुलेंस में घर लौटी. हमें लगभग कुछ नहीं खर्च करना पड़ा. मैं इस सुविधा के लिए शुक्रगुजार हूं."
नेपाल 1990 से 2015 के बीच प्रसव के दौरान होने वाली मौत के मामलों को 71 प्रतिशत तक कम करने में कामयाब रहा है. इस तरह वह संयुक्त राष्ट्र के मिलेनियम विकास लक्ष्यों से थोड़ा ही पीछे है जिसमें 75 प्रतिशत तक की कमी का लक्ष्य दिया गया है.
फिर भी नेपाल में स्वास्थ्य सेवाओं को सब लोगों तक पहुंचाने के लिए अभी लंबा रास्ता तय करना होगा. नेपाल में सेफ मदरहुड नेटवर्क फेडरेशन नाम के गैर सरकारी संगठन से जुड़ी बिंजवाला श्रेष्ठ कहती हैं, "सिर्फ अस्पतालों तक पहुंच जाना ही काफी नहीं है."
एके/एमजे (एएफपी)
यहां बच्चा होने पर नहीं मिलती छुट्टी
यहां बच्चा होने पर भी छुट्टी नहीं मिलती
दुनिया में ऐसे भी कुछ देश हैं, जहां माओं को बच्चा पैदा होने पर भी छुट्टी नहीं मिलती. अगर वे दफ्तर से दूर रहें, तो सैलरी काट ली जाती है. अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन आईएलओ इसके खिलाफ आवाज उठता रहा है.
तस्वीर: imago/Science Photo Library
अमेरिका
दुनिया के सबसे उन्नत और समृद्ध देशों में गिना जाने वाला अमेरिका महिलाओं को बच्चा होने पर एक भी पेड लीव नहीं देता. महिलाएं 12 हफ्ते के लिए दफ्तर से छुट्टी तो ले सकती हैं लेकिन इस दौरान वेतन नहीं मिलता.
तस्वीर: picture alliance/Chromorange/Media for Medical
स्वाजीलैंड
अफ्रीका के दक्षिणी हिस्से में बसे छोटे से देश स्वाजीलैंड में भी महिलाएं बिना वेतन के 12 हफ्तों के लिए काम से दूर रह सकती है. दुनिया में सुपरपावर कहे जाने वाले अमेरिका का नाम खराब अर्थव्यवस्था वाले से इस देश के साथ एक ही सूची में होना हैरान करता है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/F. Heyder
लेसोथो
यह देश स्वाजीलैंड के करीब ही है और यहां भी कामकाजी महिलाओं के लिए स्वाजीलैंड जैसे ही कानून हैं. इस देश की आबादी महज 20 लाख है. महिलाएं बिना वेतन 12 हफ्ते काम से दूर रह सकती हैं.
तस्वीर: Imago/ZumaPress
पापुआ न्यू गिनी
ऑस्ट्रेलिया के करीब इस द्वीप का कानून कामकाजी महिलाओं के लिए सबसे बुरा है. यहां महिलाओं को केवल छह हफ्ते ही दफ्तर से दूर रहने की अनुमति मिलती है और इस दौरान कोई वेतन नहीं दिया जाता है.