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नेल्सन मंडेला 93 केः हैप्पी बर्थडे टाटा मदीबा

१८ जुलाई २०११

दक्षिण अफ्रीकी स्वतंत्रता के हीरो नेल्सन मंडेला 93 साल के हो गए. रंगभेद के खिलाफ पूरा जीवन लगा देने वाले मंडेला अपने गांव में शांति के साथ अपना जन्मदिन मना रहे हैं. वह राजनीति से बहुत पहले संन्यास ले चुके हैं.

तस्वीर: AP

मंडेला ने इस दिन लोगों से 67 मिनट तक स्वयंसेवी काम करने की अपील की है. यह 67 मिनट उनके 67 सालों का प्रतीक चिह्न है, जो उन्होंने दक्षिण अफ्रीका की आजादी के लिए लगाए. इसी मौके पर लाखों बच्चों ने हैप्पी बर्थडे टाटा मदीबा नाम का गाना गाया, जो खास इसी मौके के लिए तैयार किया गया है.

मंडेला का अतीत

वह शाही परिवार से जुड़े थे. पिता की मौत के बाद भी उन्हें अच्छे स्कूलों में जाने का मौका मिला. अच्छी पढ़ाई करने का मौका मिला. स्कूल में उन्होंने बॉक्सिंग की, एथलेटिक्स में हिस्सा लिया. लेकिन काला होने का मतलब क्या है, इसका पता उन्हें कॉलेज में चला. एक विरोध प्रदर्शन में हिस्सा लेने की वजह से उन्हें सस्पेंड कर दिया गया. और इसके बाद जब वह शादी से बचने के लिए घर से भागकर आगे पढ़ने जोहानिसबर्ग गए, तो बहुत साल उन्हें भागते, छिपते बिताने पड़े. 1940 के दशक में उन्होंने जाना कि जिस अफ्रीका में वह रह रहे हैं, वहां दो दुनिया हैं. एक दुनिया गोरों की है जो राज करते हैं. और दूसरी कालों की, जो सिर्फ मरते हैं. मंडेला ने तभी मरने से इनकार कर दिया. उन्होंने लड़ने का फैसला किया.

1943 में अफ्रीकी नेशनल कांग्रेस का सदस्य बनने के सिर्फ 10 साल के भीतर मंडेला गोरी सरकार के लिए बड़ा खतरा बन गए. उसके बाद तो मंडेला आगे आगे और पुलिस पीछे पीछे. कभी वह माली बनकर रहे तो कभी ड्राइवर. लेकिन अफ्रीकी नेशनल कांग्रेस की यूथ लीग के प्रमुख के रूप में उनका लोगों को जोड़ने और लड़ने के लिए तैयार करने का काम जारी रहा. वह देश के हर हिस्से में पहुंचे और लोगों को तैयार किया.

जागते, भागते मंडेला

यह वक्त कितना मुश्किल रहा होगा, उनकी डायरी के एक पन्ने से पता चलता है. वह लिखते हैं, "हम आधी रात तक जागते रहे. फिर हमें निकलना था. जब मैं घर से निकलने लगा तो मेरी दो साल की बेटी ने मेरा हाथ पकड़ लिया. उसने पूछा कि क्या मैं आपके साथ आ सकती हूं." उस एक पल में मंडेला की दुनिया थम गई. उन्हें अहसास हुआ कि अपने परिवार से वह कितना कुछ छीन रहे हैं. वह लिखते हैं, "कुछ सेकेंड के लिए अपराध बोध ने मुझे घेर लिया. यात्रा का उत्साह खत्म हो चुका था. मैंने उसका माथा चूमा. उसे बिस्तर में लिटाया. और जैसे ही उसकी आंख लगी, मैं घर से निकल गया."

1956 में मंडेला 150 लोगों के साथ गिरफ्तार हुए. मुकदमा पांच साल चला और सब छूट गए. तभी एक नरसंहार हुआ. 1960 के इस शार्पफिल नरसंहार में 67 लोगों को कत्ल कर दिया गया. बच्चे, औरतें, बुजुर्ग.. सब. मंडेला को लगा कि सिर्फ विरोध से काम नहीं चलेगा. लड़ना होगा. भिड़ना होगा. उन्होंने हथियार उठाने का फैसला किया. बैन हो चुकी अफ्रीकन नेशनल कांग्रेस का हथियारबंद दस्ता तैयार किया गया. जंग की तैयारियों में भागते छिपते विदेशों में भी घूमे. पैसा जुटाया. मदद जुटाई. लेकिन 5 अगस्त को 1962 को लौटते ही उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया.

27 साल की कोठरी

उस दिन के बाद उन्होंने आजादी का सूरज 27 साल तक नहीं देखा. लेकिन कैद का अंधेरा मंडेला के जज्बे को छिपा नहीं सका. वह अंदर से लड़ते रहे. गोरी सरकार ने उन्हें लुभाने, दबाने, चुप कराने, अपनी तरफ मिलाने के लिए क्या क्या नहीं किया. लेकिन मंडेला फूटे नहीं. टूटे नहीं. अपनी आत्मकथा में इस बारे में उन्होंने लिखा, "बहादुर वो नहीं है जो डरता नहीं है. बहादुर वो है, जो उस डर पर जीत हासिल करता है."

गोरी सरकार झुकी. मंडेला रिहा हुए. लेकिन उनकी लड़ाई अभी खत्म नहीं हुई थी. 1990 में 71 साल की उम्र में उन्होंने जंग वहीं से शुरू की, जहां 27 साल पहले छोड़ी थी. लेकिन इस बार उनके अंदर वह ताकत थी जो 27 साल के दमन ने पैदा की थी. और सिर्फ चार साल बाद 27 अप्रैल 1994 को नेल्सन मंडेला लोकतांत्रिक अफ्रीका के पहले राष्ट्रपति बने.

अपनी जेल की जिंदगी के बारे में मंडेला बताते हैं कि कैसे कैदियों से खदानों में काम कराया जाता था. वे ईंटें बनाते थे. उन्हीं ईंटों से जेल की दीवारें बनाई जातीं. यानी वे अपनी जेल खुद ही बनाते रहे. यह कोई आसान बात नहीं. उन्हें भी परिवार की याद आती रही. वह भी घर को तरसते रहे. 23 मई 1980 की शाम उन्होंने लिखा, "मैं सपना देखता हूं कि देर रात घर पहुंचा हूं. लगभग सुबह होने वाली है. और घर के दरवाजे खुले हुए हैं." लेकिन उनके लिए दूसरों की आजादी हमेशा अपनी आजादी से बड़ी रही.

रिपोर्टः ए जमाल/वी कुमार

संपादनः महेश झा

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