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नोटबंदी के एक साल के भीतर नगदी फिर राजा

८ नवम्बर २०१७

जब भारत में नोटबंदी का एलान हुआ तो एक स्टील कारखाने के मालिक ने बिना लिखा पढ़ी के कारोबार से तौबा कर ली, लेकिन एक साल पूरा होने से पहले ही ग्राहकों के जोर देने पर पुरानी व्यवस्था में लौट आए हैं.

Indien Einführung neuer Währung - neue Rupie
तस्वीर: Reuters/J. Dey

नोटबंदी का उपाय सरकार ने काले धन पर लगाम कसने के लिए किया था लेकिन इस तरह की घटनाओं से पता चल रहा है कि सरकार के दावे विफल रहे हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ऊंची कीमत वाले नोटों को वापस लेने का फैसला इसलिए किया ताकि टैक्स नहीं चुकाने की जो आदत बन चुकी है उसे बदला जा सके. भारतीय जनता पार्टी ने 2014 में चुनाव भी भ्रष्टाचार को मिटाने के वादे पर जीता था. हालांकि सरकार के इस कदम ने कारोबारी समुदाय को इतना डरा दिया कि आर्थिक विकास की दर मोदी के शासन काल में नोटबंदी के बाद सबसे नीचे चली गयी.

तस्वीर: Reuters/J. Prakash

अब हालत यह है कि गली मुहल्ले के दुकानदारों से लेकर बड़े व्यापारियों तक ने एक बार फिर नगदी का दामन पकड़ लिया है. प्रधानमंत्री पर यह दबाव है कि वह अपने इस महत्वाकांक्षी कदम से देश और लोगों को होने वाले लाभ को साबित करें. नाम नहीं बताने की शर्त पर इस स्टील कारोबारी ने बताया कि खाता बही रखने की कोशिशों को तब बड़ा झटका लगा जब खरीदार ने नगद भुगतान के लिए दबाव बनाया और अपने भुगतान को खाते में नहीं दर्ज करने के लिए कहा. समाचार एजेंसी एएफपी से बातचीत में उन्होंने बताया कि ग्राहक कहते हैं, "हमारे पास घर में पैसा है अगर आप भुगतान चाहते हैं तो हम तुरंत कर सकते हैं लेकिन बैंक से भुगतान नहीं कर सकते."

तस्वीर: Reuters/J. Prakash

सरकार ने अचानक फैसला कर ये उम्मीद की थी को लोग पैसा खर्च नहीं कर सकेंगे और उन्हें बैंक में जमा करा देंगे. इससे लोगों को डिजिटल पेमेंट की तरफ ले जाया जा सकेगा जो तब तक महज 3 फीसदी थी. इसमें यह मंशा भी थी कि डिजिटल पेमेंट की जानकारी होने के कारण उस पर टैक्स वसूला जा सकेगा. प्रधानमंत्री मोदी ने इसके लिए लोगों से खूब अपील की और डिजिटल क्रांति का आगाज करने की कोशिश की. नोटबंदी के दौर में जब नगदी का भारी संकट था तब भी कार्डों के जरिये होने वाली बिक्री में 13 फीसदी की गिरावट आई. मोबाइल बैंकिंग के आंकड़े बताते हैं कि इस साल अगस्त में करीब 16 अरब अमेरिकी डॉलर का लेनदेन हुआ जो बीते साल नवंबर की तुलना में करीब 20 फीसदी कम है. 

तस्वीर: AP

दिल्ली में चाय बेचने वाले संजय मौर्य कहते हैं कि नोटबंदी के बाद के हफ्तों में उन्हें करीब आधा भुगतान ऐप से मिलता था लेकिन उसके बाद से डिजिटल भुगतान लगातार नीचे गिरता चला गया. वो बताते हैं, "मैं किसी भी जरिये से पैसा ले सकता हूं लेकिन लोग ज्यादातर अब नगद ही देते हैं."

तस्वीर: Reuters/P. Kumar

अर्थशास्त्री सुनील सिन्हा कहते हैं, "क्या इसका कोई फायदा हुआ? बिल्कुल नहीं, इससे लोगों को काफी दिक्कत हुई और व्यवस्था को भी, लोगों ने अपना जीवन, अपना रोजगार खो दिया." अधिकारियों को उम्मीद थी कि टैक्स नहीं देने वाले बहुत से लोग अपनी बची हुई रकम बैंक में नहीं डालेंगे क्योंकि इससे यह पैसा सामने आ जाएगा. हालांकि अगस्त में रिजर्व बैंक ने घोषणा की कि जिन रुपयों को बंद किया गया था उसमें से 99 फीसदी पैसा वापस लौट आया. मतलब साफ है कि काला धन सामने नहीं आया.

अब कारोबारी कह रहे हैं कि उनका लेन देन पहले की तरह ही चल रहा है और नगदी एक बार फिर अहम हो गयी है. पुरानी दिल्ली में एक ड्राइ फ्रूट बेचने वाले ने कहा, "हम नगदी का हिस्सा बढ़ाने के लिए इंतजार कर रहे हैं, हम देख रहे हैं कि सरकार हम पर कितनी नजर रख रही है. हर कोई ऐसे ही करता है, भारत में ऐसे ही व्यापार होता है."

एनआर/एमजे (एएफपी)

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