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समाज

नौकरी के लिए भटक रही हैं ऑस्कर जीतने वाली महिलाएं

समीरात्मज मिश्र
७ जून २०१९

सैनिटरी नैपकिन्स पर बनी डॉक्यूमेंट्री फिल्म 'पीरियड: द एंड ऑफ सेंटेंस’ में अहम भूमिका निभाने वाली दो महिलाएं नौकरी के लिए दर-दर की ठोकरें खा रही हैं. जिस एनजीओ में वो काम करती थीं, उसने उन्हें नौकरी से निकाल दिया है.

Indien Suman und Sneha, Protagonistinnen des Films "Period: End of Sentence"
तस्वीर: Rahul Gujjar

उत्तर प्रदेश के हापुड़ जिले के गांव काठीखेड़ा में रहने वाली स्नेहा को लेकर बनाई गई फिल्म 'पीरियडः एंड ऑफ सेंटेंस' को इसी साल फरवरी में शॉर्ट डॉक्यूमेंट्री श्रेणी में ऑस्कर अवॉर्ड मिला था. स्नेहा ने इस फिल्म में मुख्य भूमिका निभाई थी जबकि उनकी रिश्तेदार सुमन ने भी फिल्म में काम किया था. पुरस्कार मिलने के बाद न सिर्फ उनके गांव में बल्कि देश भर में जश्न मना था और इन दोनों महिलाओं की तारीफ हुई थी.

पुरस्कार जीतने वाली सुमन और स्नेहा के लिए यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने एक-एक लाख रुपये का इनाम भी दिया था. स्नेहा बताती हैं, "अखिलेश यादव जी ने टीम की सभी सदस्यों को एक-एक लाख रुपये का इनाम दिया था. जिस एनजीओ में हम काम करते थे, उन्होंने संस्था के नियम तोड़ने का आरोप लगाकर नौकरी से निकाल दिया. एनजीओ की तरफ से हमें कहा गया कि चूंकि यह पूरी डॉक्यूमेंट्री उनके प्रयास और कामों के इर्द-गिर्द घूमती है, इसलिए उन्हें पैसा दिया जाना चाहिए.”

हापुड़ की महिलाओं की कहानी ऑस्कर में दर्ज

स्नेहा बताती हैं कि मार्च में उनकी संस्था ने नियमानुसार चेक लौटाने या फिर संस्था में जमा करने को कहा. उनके ऐसा न करने पर संस्था ने अपने यहां काम करने से मना कर दिया. हालांकि एक्शन इंडिया नामक संस्था, जहां ये लोग काम करती थीं, उनका कहना है कि इन लोगों ने नौकरी खुद छोड़ी है.

संस्था की प्रतिनिधि नाम न छापने की शर्त पर कहती हैं, "सुमन ने चेक वापस न करने पर खुद नौकरी छोड़ी है. संस्था में उसका कुछ भी बकाया नहीं है. जबकि स्नेहा ने तो छह महीने पहले ही नौकरी छोड़ दी थी. इन्हें पता है कि अब ये सेलिब्रिटी हो गई हैं, कुछ कहेंगी तो मीडिया में छपेगा. उसी का फायदा उठा कर संस्था को बदनाम कर रही हैं.”

ख्याति मिली और नौकरी गईतस्वीर: Rahul Gujjar

वहीं दूसरी ओर, एक्शन इंडिया के प्रॉजेक्ट मैनेजर देवेंद्र कुमार ने मीडिया से बातचीत में कहा कि नौकरी से निकालने संबंधी आरोप बेबुनियाद हैं. उनके मुताबिक, "अवॉर्ड जीतकर लौटने के बाद से इन लोगों का रवैया बदल गया और काम पर आना भी बंद कर दिया, इस वजह से यूनिट चलाने में दिक्कत होने लगी.”

वहीं इन महिलाओं का कहना है कि एक संस्था ने तो नौकरी से निकाल दिया है जबकि दूसरी जगह उन्हें नौकरी मिल नहीं रही है. सुमन बताती हैं कि दूसरी जगह नौकरी इसलिए नहीं मिल रही है क्योंकि उनकी निगाह में हम लोग ‘सेलिब्रिटी' बन चुके हैं.

सुमन की शादी साल 2010 में काठीखेड़ा गांव में हुई थी. सुमन गांव में ही एक एनजीओ 'एक्शन इंडिया' से जुड़ गईं जो महिलाओं के लिए काम करता है. यहीं से सुमन को गांव में सैनिटरी पैड बनाने की प्रेरणा मिली और इस काम में उन्होंने अपनी एक रिश्तेदार स्नेहा को भी साथ में ले लिया और कुछ दूसरी महिलाओं को भी जोड़ा.

स्नेहा बताती हैं, "समाज में मौजूद तमाम पाबंदियों और शर्म के कारण शुरू में इन्होंने परिवारवालों को बताया तक नहीं कि वे पैड बनाती हैं.” हालांकि जब घर वालों को पता चला तो उन्होंने परिवार वालों को इस बारे में बताया कि वो इसके जरिए लोगों को जागरूक कर रही हैं. डॉक्यूमेंट्री फिल्म इन महिलाओं के इसी संघर्ष पर आधारित है और इन्हीं महिलाओं ने उसमें अभिनय भी किया है.

हालांकि मीडिया में ये खबरें आने के बाद ऑस्कर अवार्ड विजेता सुमन और स्नेहा की मदद के लिए केंद्र सरकार ने पहल की है. स्नेहा ने बताया कि इलेक्ट्रानिकी एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय की सीएससी इकाई के मुख्य महाप्रबंधक डॉ. दिनेश त्यागी ने गांव काठीखेड़ा में आकर इन लोगों से मुलाकात की और सरकारी योजनाओं के माध्यम से हर संभव मदद दिलाने का आश्वासन दिया है.

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(पीरियड्स पर "चुप्पी तोड़ो")

 

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